पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/५०

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४४ वाटी . सामोको पुष्प होता है एवं हृदयमें इरिभक्तिका । दिन गृहस्वामी प्रातःकाल प्रातक्रिया त मानादि संचार होता है। प्रातःकाल तुलसीपक्षके दर्शनसे | समापन करके यथाशिनालणको काञ्चनादि दान करें। स्वर्णदान करनेका फल प्राप्त होता है। शिविर या इसके बाद गृहप्राङ्गणमें द्वारके सामने एक जलपूर्ण कुम्भ बासस्थानके मध्य निम्नोक्त पुष्पादि द्वारा उधान तैयार स्थापन करना चाहिये। इस कुम्भके गाल में दधि लगा कर लेगा तय है। यधा-मालती, यूधिका. कुन्द, | फर ऊपर भाम्रपल्लर गौर फल पुष्पादि रखना होता है। माधवी, कनकी, नागेश्वर, मल्लिका, काञ्चन, चकुल, और गृहस्वामी नये पत्र तथा पुष्पमाल्यादिसे भूपित हो अपराजिता । शुभाशुभ पुष्पोंका उद्यान पूर्व तथा दक्षिण | कर एवं पत्नीको वाई ओर ले कर उस कुम्भके मस्तक पर को ओर लगाना चाहिये। इससे गृहस्थोंका शुम-समा- | धानसे भरा हुमा सूप रखें। इसके याद गोपुच्छ स्पर्श गम अवश्यम्भावी है। करके नये गृहमें प्रवेश करें। गृहस्थ लोग सोलह हाश ऊंचा गृह एवं वीस पीछे मामय होने पर यथाविधान गृह-प्रवेशोक्त हाथ ऊना प्राकार तैयार नहीं करें। इस नियम- पूजादि स्वयं करें। असमर्थ होने पर पुरोहित द्वारा पूजादि फे व्यतिक्रमसे अशुभ फल मिलता है। मकागके निकट | करावे। व्यवहार है, कि इस समय गृहिणी नपे गृहमें पढ़ई, तेली या सोनार प्रभृतिको वसाना ठीक नही। प्रवेश फरको नये पात्र में दूध उबालती है, यह दूध उपल दूरदशों गृहस्थ यथासाध्य ग्राममें भी इन लोगोंको । कर गृहमें गिर जाता है। यसने न देंगे। शिविरके निकट ब्राह्मण, क्षत्रिय, - गृहप्रवेशमें पूजापद्धति-पुरोहित स्वस्तियाचन कर. चैश्य, ऊ'चे शूद्र, गणक, भट्ट, चैध मिया मालोको हो । फे संपला करें। ॐ अद्यत्यादि नवगृहमवेशनिमित्तिक पसाना चाहिये। वास्तुदोषोपशमन कामः यास्तु पूजनमहं करिष्ये । - इस शिघिर या किलेको लाई सौ हाथको होनी चाहिये एवं तरह संकल्प और तत्सूक्त पाठ कर यथाविधि घट. शिविरके पास ही रहनी चाहिपे। उसको गहराई दश स्थापनादि करके स्वामी पूजा करें। शालग्रामकी भी पूजा हायसे कम होना ठीक नहीं । इसके द्वारा सांकेतिक होना | की जा सकती है। पहले नपगृह तथा गणेशाधिको प्रण- जरूरी है। ऐमा सांकेतिक द्वारा बनाना चाहिये जो यादि नमोस्त द्वारा पूजा करके निम्नोक देवगणको पूजा शन मोह लिये गगम्य, किन्तु मित्रों के लिये सुगम हो।। करनी चाहिये। ' गणेशाय नमः" इत्यादि रूपसे शाल्मली, तिन्तिड़ी, हिन्ताल, निम्म, सिन्धुपाय, अट पूजा करनी होती है, पीछे इन्द्र, सूर्य, सोम, मङ्गल, बुध, म्यर, धुस्तूर, घर किंवा परंड, इन सब च क्षोंके जातिरिक | गृहस्पति, शुक्र, शनैश्चा, राहु, केतु, और इन्द्रादि दश और सय वृक्षोंफे काष्ठ शिविरमें लगायेंगे। यहत दिकपालोको पूमा करनी चाहिये । इसके बाद वृक्ष शिविर या यासस्थान में रखना उचित नहीं, उससे | क्षेत्रपाल समूह, फरमहसमूद, तथा फूर भून स्रो, पुन और गृह सभीका नाश हो जाता है। समूहको पूजा करेंगे। ॐ क्षेनेवालेभ्यो नमः भूत- (मय ० पु० कृष्णजन्मस्य ० १०२०म०) फरमहेभ्यो नमः ॐ फूरभूतेभ्यो नमः इस तरह पूजा नया मकान तैयार होने पर घास्तु याग करके उसमे करनी पडतो है। इसके पश्चात् .ग्रामा यास्तुपुरुष, प्रवेश करना चाहिये। यास्तु यागमें असमर्थ होने पर शिग्यो, ईश, पर्यन्य, जयन्त, सूर्य, सत्य, भृश, आकाश, याविधान गृहमें प्रवेश करमा युक्तिसंगत है। गग्नि, पूषा, वित, प्रइनक्षत, गा, गन्धर्च, मृग, पितृगण, पास्तुयागफा विषय वास्तुयाग शम्दमें देखो।। दीयारिक, सुप्रीव. पुष्पदन्त, पक्षण, शेष, पाप, रोग, महि, कृत्यायमे गृहप्रवेश करनेको निधि इस प्रकार | मूख्य, विश्वकर्मा, भलाट, श्री, दिति, पाप साथित, यियस्थत निदि :-गृहारम्भमें जिस तरह नादि करनी पड़नी इन्द्रात्मज, मित, यद, रामयक्ष्मन, पृथ्वोधर, ग्राहमण, है. गृहप्रयतमो उमौतरहकरनी चाहिये। घाको, यिदारो, पूतना, पापराससी, द. अपंमा और शुभ दिनमें सितिगृह प्रवेश परना.हो, उस ! पिलपिनकी पूजा करके ममम्ते यरूपाय पिये