पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४९४

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४१० विधि . . . "वर्गकामो यजेत" यह एक विधि है। यह विधि | जो लिङादि प्रत्यय योजित रहता है, वह प्रत्ययको मुख्य अर्थी विद्वान और समर्थ श्रोतृपुरुषोंको यागकरणक, और | अर्थभावना. अधया नियोग है। भावना शब्दका अर्थ स्वर्गफलक भावनामें { उत्पादन विशेष ) प्रवृत्ति उत्पन्न उत्पादना है अर्थात् यह कुछ उत्पादन, करने में प्रवृत्ति . फरती है अर्थात् उसको स्वर्गजनक यागानुष्ठानमें नियुक्त कराती है। भायना शाग्दो और आधी भेदसे दो प्रकार... करती है । जो जो स्वर्गार्थी अथच अधिकारी हैं घे सब की है। "यजेत" इस वाक्यके पकदेशमै जो लिङ्ग प्रत्यय याग करें तथा अपने में स्वर्गजनकः अपूर्व (पुण्यविशेष) | है, [ यज्-मते (लिङ)] उसका अर्थ है भावना। मन.. उत्पादन करें। लक्षणका निष्कर्ष यह है, कि जो घाफ्य | प्रय "यजेत-भावयेत्' अर्थात् उत्पन्न करेगा। यह .. कामोपुरुषको काम्यफल, लाभका उपाय बतला, कर उसमें भावना माथी है अर्थात् प्रत्ययार्थ लभ्य है। इसके बाद उसकी भानुष्ठानिक प्रवृत्ति पैदा करता है, वही वाक्य किफेन' कथं' अर्थात् क्या, किससे? किस प्रकार' . विधि है ।: :. ...: ... इस प्रकारको आकाङक्षा वा प्रश्न उठने पर तत्पूरणार्थ वाक्य षा पदमात्र हो धातु और प्रत्यय इन दोनोंके | "स्वर्गः, यागेग, अग्न्याधानादिभिः" स्वर्गको यागके द्वारा .... योगसे निष्पन्न होता है। वाक्य या पदके एक देशमें इन सब पदों के साथ मन्वित हो कर समस्त वापय एक विधि समझा जाता है। . . ... सत्कारपूर्विका व्यापारया" 1..के यटने भाष्यकारधृत उक्त पाठ. .. लिङयुक्त लौकिक वाषय सुन कर भी ऐसी प्रतीति की ऐसी व्याख्या की है, "विध्यधीष्टयोरिति । उभयोरपि होती है, कि यह व्यक्ति मुझे इस वाक्यसे अमुक विषयमें नियोगरूपत्वादिति पूरनः । पेषामिति,भृत्यादेः कस्याञ्चित क्रियाय, प्रवृत्त होने के लिये कहता है और में अमुक कार्यमें प्रवृत्त नियोजनमित्यर्थः । मधीष्ट' नामेति. गुर्वादेस्तु पूज्यस्य व्यापा- होता है, यही इसका अभिप्रेत है।, पकाका अभिप्राय : रणमधीष्टमित्यर्थः। प्रपञ्चाणे न्यायव्युत्पादनार्थं वा मर्थ : तदुक्त विधियाफ्यस्थ लिङादि प्रत्ययका पोय है । गत. '. भेदमाश्रित्य भेदेनोपादानं विधिनिमन्त्रणादानां कृतम् । विधि... पर वह वक्त गामो है। फिर अपौरुषेय वेदवाक्यों वह रूपता हि रावप्रान्वयिनी विद्यते ।" दोनों जगह एक ही नियोग- शब्दगामी है, अर्थात् लिङादि शब्द हो उस थोताको वतला । रूप ब्यापार होने पर भी, विधि और अघीष्टमें भेद यह है, कि देता है। . यह शब्द गमिता होने के कारण शाब्दी मायना विधि प्रेषण थर्थात् भत्यादिको किसो कार्यमें नियोग फरना।। नामसे प्रसिद्ध है "वास्थ्यकारी प्रातभ्रमण करें"' जैसे--"भयान ग्राम गच्छेत्" त् या तुम. ग्राममें। जायेगा या यह एक लौकिक विधिवाक्य है। यह वाक्य सुननेसे दो जाभोगे। पूजनीय व्यक्तियों के सत्कार करनेका नाम अधीष्ट प्रकारका बोध होता है, एक मातभ्रमण स्वास्थ्यलाभ: है। जैसे "भयान पुत्रमध्यापयेत्" आप मेरे पुत्रको पदावे । इन का उपाय जो हम लोगोंका कर्तव्य है और दूसरा वक्ताका दोनो हो। जगह नियोग समझा जाता है, किन्तु पहले अमत्कार, अभिप्राय-मैं प्रातभ्रंमण कर सुस्थ है। ऐसी दशामें और पीछे सत्कार पूर्वक, बस सिर्फ इवना ही प्रभेद है। भयं..पापय वैविक होनेसे कहा जाता है..किप्रथम वोध अर्थ प्रपञ्च (विस्तृति ) अथवा नाना प्रकारकी न्यायव्युत्पत्ति के लिये और द्वितीय वोध शाब्दी है। . . . . . . . . ही आचार्यने भूल सूत्रमें विधि, निमन्त्रण, मामन्त्रण आदिफा भेद मूल बात यह है, कि विधिका, लक्षण जो, जिस बतलाया है। फलतः एक नियोगरूप विधि ही सर्वप्र.अन्वित / प्रकारसे क्यों न करें, सभी जगह , अप्रातार्थ विषयमें रहेगी अर्थात् विधि, निमन्त्रण, 'मामन्त्रण, मघौट भादि सभी प्रवर्तनका भाव दिखाई देगा, क्योंकि सभी स्थानों में । जगह साधारणतो एक नियोगार्ग ही समझा जायेगा। क्योंकि विधिका माकार है,-'कुर्यात्' कियेत 'कर्तव्य त्यादि "इह भयान भुञ्जीत" भाप या भोजन करें। भवानिहामीत' रूप! ... . . . .... आप यहां बैठे इत्यादि यथाक्रम निमन्त्रण और भामंन्त्रणक. मीमांसादर्शनकार जैमिनिके, मतसे वेद-विधि, अर्थ- स्थानमें भी प्रायः एक : नियोगको छोड़ और कुछ भी नहीं देखा | पाद, मन्त्र गौर नामधेय इन चार मांगों में विभक्त है।। जाता । ... ... ... . : :;:... उक्त दर्शनकारको पूर्णमीमांसा..नामक सूत्रके थ्याम्या..'