पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४५७

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विद्यानगर ३८३ ४. नुनिज ( Nunix) नामक एक पुर्तगोज-परि- पथ, उद्यान और वायुसेवन-स्थल बहुत लम्बे चौड़े प्राजकने लिखा है, कि जब विद्यानगराधिपतिने रायचूड़ है। सभी जगह जनता ठसाठस भरो हुई है । व्यवसाय युद्धौ यात्रा को, उस समय उनके साथ ७०३००० पदाति, और वाणिज्य मानो अनन्त गौरवसे विद्यानगर विराज ३२६०० अश्वारोही सेना तथा ५६१ गजारोही सेना थी। कर रहा है। फोलखानेमें १०० हाथी और अस्तयलमें विद्यानगरके राजाधिराज नेभयका कुछ भाभास | २०००० घोड़े हमेशा मौजूद रहते हैं। राजा चेतन- पाठकों को इस वृत्तान्तसे हो प्राप्त हो सकता है। उन्होंने भोगी १००००० (एक लाख ) सेना सर्वदा उपस्थित रहती हैं।" यह भी कहा है, कि पदाति और अश्वारोही सेनाके | अलावा ६८०० घुड़सवार और ५०००० पैदल सिपाही । सीजर फेडरिक नामक एक परिव्राजकका राजाको देहरक्षाका कार्य करते हैं। इन लोगों को राजासे कहना है, "मैंने बहुत-सी राजधानियाँ देखो हैं, पर विद्या- नगर जैसी राजधानो कहीं भी देखने मे न आई।" घेतन मिलता है। इनके अलावा २०००० बालमधारी और टाकास्तेन हेडा (Casten Heda) नामक एक पर्याटक ३००० दालघारी सेना हाथियोंकी प्रहरीरूपमें उपस्थित १५२६ ई०को विद्यानगरमें आये। ये कहते हैं, "विद्या. रहती हैं। इनके अश्वरक्षकों की संख्या १६००, अश्वशिक्षक | नगरका पैदल सिपाही सचमुच असंख्य है। ऐसा जनता- ३०० और राजकीय शिल्लरीको संख्या २००० है । २०००० पूर्ण स्थान और कहीं भी देखने में नहीं आता । राजाफे पाकी राजकार्यके लिये हमेशा तय्यार रहती है। . पास एक लान वेतनभोगी अश्वारोही सैन्य और चार ५। पिज (: Paes ) नामक एक दूसरे पुर्रागोज एजार गजससैन्य है ।" इन सब विवरणोंसे विद्यानगरको पर्याटकने कहा है, "कृष्णदेव रायालुके दश लाख सुशि अतुल समृद्धिका परिचय पाया जाता है। १००००० क्षिा पदाति और ३५ हजार घुड़सवार सेना युद्धफे लिये पदाति, ३०००० अश्यारोही और ४००० गजारोही सैन्य हमेशा सुसजित रहती हैं। इन्हें राजासे वेतन सिर्फ विद्यानगरको रक्षाके लिये ही नियुक्त रहते थे। मिलता है। राजा इन्हें जप चाहें, तथ युद्धफे लिपे भेज राजाकी देहरक्षाके लिये ६००० सुशिक्षित सुसजित अश्या सकते हैं। यहुत दिनोंसे में इस प्रान्तमें है। एक दिन रोही सेना हमेशा राजाके साथ घूमा करतो थी । राजाके राजा कृष्णदेव रायालुने समुद्रफे किनारे एक युद्ध में अपने व्यवहार के लिये एक हजार घोड़े थे, राजमहिपियोंको १५०००० सेना गौर ५० सैनिक कर्मचारी भेजे थे । इनमें संघाटदल के लिये मणिमुक्ता रताभरणसे खचित १२००० घुड़सवार सेनाकी संख्या अधिक थी। राजा कृष्णदेय जोरी रहती थी। विदेशीय पर्याटक अलङ्कार देख कर इन्हें • थोड़े ही दिनों में २० लाख सुसजित सेनाका संग्रह कर ही राजमहिपो समझते थे। राजसरकारके नित्य प्रयो. सकते हैं। इससे कोई ऐसा न समझे, कि वे राज्यको जनीय कार्यव्यवहारेके लिये जो सब लिपिकार, कर्मकार, प्रजाशून्य करके ही सैन्यसंख्या बढ़ाते थे। विद्यानगरफे रजक और अन्यान्य कार्यकारी रहते थे, उनको संख्या साम्राज्यको जनसंख्या इतनो अधिक है, कि वीस लाग्न २००० थी। भृत्य-संख्याका पारावार न था। राजमहल- मनुष्यफ चले जाने पर मो कोई हर्ज नहों। यह भी कह में सिर्फ राजाके दो सौ पाचक हमेशा नियुक्त रहते थे। वेना अच्छा है, कि पे सव सैन्य सदके भिखारी या मये. कृष्णदेवराय जय रायचूड़-युद्ध में गये थे, तब २०००० नर्स- शीके चरवाहे नहीं थे ये सभी प्रशत वोर और दुःसा- कियां युद्धक्षेत्रमें लाई गई थीं। राजप्रतिनिधि, शासन- इसी योद्धा थे।" कर्ता, सैन्याध्यक्ष आदि ६। दुमाते यारयोसा (Duarte Barbosa ) नामक चे ओहदे फे राजपुरुपों की संख्या २०० थी। इनके सहचर अनुचर देहरक्षक सैन्य एक पर्याटक १५०६ से १५१३६०फे मध्य समामले भ्रमण सामन्त और भृत्यादिको संख्या भी १००००० से कम न करते हुए यहां माये। इन्होंने लिखा है, "विद्यानगरको थी। जहां सैन्यसंख्या इतनी थी, यहां घोड़े की साईस- मावादी बहुत ज्यादा है। राजप्रासाद सुदर और बड़े आदिकी संख्या कितनी हो सकती है, पाठक स्वयं अनु- पड़े हैं। इस नगरमें बहुत घनिकों का वास है। राज- मान कर सकते है।