पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४४३

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विद्यानगर ३७३ का माई सायण उनके प्रधान मन्त्री थे। इनके मुदा भौर में पहुंचे। इस सभामें देवरायके पुत्र उपस्थित थे। पे एमग नामके दो सेनापति थे । २य हरिहर धर्ममतमें बड़े लोग नाना प्रकारके क्रीड़ाकौतुफ दिखाने लगे। अंतमे उदार थे । चे दूमरे दूसरे सम्प्रदायके मन्दिर और मठादि- तलवारका खेल शुरू हुआ। तलशर चलाते चलाते शेपमें के प्रति बड़ी श्रद्धा रखते थे। गुडा नामक उनके और इन दुष्टोंने देवरायके पुत्र को और पत्तो घुमा कर सामने एक सेनापतिका परिचय मिलता है। हरिहरको राज्य जिसको पाया मार डाला । देवराय कहीं दूरमें थे, संवाद ' पाते ही लहाईकी तैयारी करनी पड़ी थी। उन्होंने गोया- | पाते ही वे शोकसे मलिन हो गये। दूसरे दिन सेनाओं के नगरोसे मुसलमानोंको निकाल बाहर कर दिया था। | साथ ये अपनी राजधानी लौटे। मुसलमान-सेना प्रचुर इनको पाटरानीका नाम मलाम्बिका था। शासनादि पढ़ने धन और द्रव्यादि लूट कर ले गई । यह सेना विद्यानगरके से मालूम होता है, कि महिमुर, धारवाड़, काञ्चीपुर, चारों ओर हमला करके घूमने लगी। उस समय सैकड़ों चेङ्गलपट और निचिनापल्ली में भी इनका अधिकार फैल ब्राह्मण भी मुसलमानोंके हाथ वन्दी हुए थे। अन्तमें गया था। पे विरूपाक्ष शियके उपासक थे। प्रचुर धन दे सुलतानको परितुष्ट कर विदा किया - घुस्कराय श्य ! गया। हरिहर श्य तीन पुत्र को छोड़ परलोक सिधारे । उनके फिरोज शाहफे इस अत्याचारसे विद्यानगरके प्रथम पुत्रका नाम सदाशिव महाराय, द्वितीयका पुक्कराय दक्षिण-पश्चिमाञ्चल प्रदेशमं भीषण शोचनीय दशा उप- २य (धे युकराय देवराय नामसे भी विख्यात थे) और | स्धिन हुई थी। देवराय ( श्म) हरिहर ( श्य) रायके तृतीयका विरूपाक्ष महाशय था। इनमेंसे चुक्कराय २य व प्रतिविम्मस्वरूप थे। किसी किसी ऐतिहासिकका कहना देवरायने १४०४ ई०से १४२४ ई. तक राज्यशासन किया है, कि देवरायके राजत्वकालमें उनके सेनानायकने धार- घुक्कराय या देवराय दड़े पराक्रमी थे। पिताकी मौजूदगोमे वाडका दुर्ग बनाया। उस समय फिरोज शाहने इतना ये अनेक बार मुसलमानी सेनाका मुकाबला करने के लिये जुल्म किया था, कि उनके भयसे हिन्दुओंको हमेशा शंका समरक्षेत्र भेजे जाते थे । देवरायको निहत करने के लिये बनी रहती थी। एक घटनाकी बात लिखी जाती दाक्षिणात्यके मुसलमानोंने यही चेष्टा को थी। दिल्लीके है। वाहनी राज्य के अन्तर्गत मुद्गलके एफ सुनारकी सुलतानने पहली लड़ाई कर देवरायको निहत करनेके लिये कन्या फिरोज शाह द्वारा हर ली गई थी। इससे देवराय प्रस्ताव किया। किन्तु यह परामर्श सुविधाजनक न होने- घडे भीत हुए गौर उस समय उन्होंने इसकी फन्याको से अन्तमें देवरायको या उनके पुत्रको छिपके मारनेका धारवारके राजाके साथ व्याह कर दिया। १४६७ में प्रस्ताय हुआ। सरानजी नामक एक काजी इस उद्देश्यसे | इन्होंने फिरोज शाहको समुचित शिक्षा दी थी। उन्होंने कतिपय बंधुओं के साथ फफोरके घेशमें देवरायके शिविर- दलबल के साथ वाहनीराज्यमे प्रवेश कर गाय और नगर में समुपस्थित हुआ। देवरायके शिविरमें उस समय | आदि लूटे। १४२२ ई०में महम्मद शाइके अतर्कितमायसे नर्तकी नाच करती थी। फकीरवेशो काजी और राजाके | देवरायके खेमे पर माममण करने पर उन्होंने इसके धन्धुगण उसी स्थान पर पहुंचे । दुष्ट काजीने एक नर्तकी- जंगल में भाग कर अपनी जान बचाई। महम्मद शाहने को देख कर प्रणयो होनेका यहाना किया। यहां तक,.: उस समय घेरेक-टोक देवालय, प्राम और नगरको कि उसका पांव पकड़ कर उससे अनुरोध किया, कि | - लूटा तथा राज्यका भी कुछ अंग अपने राज्यमें शामिल तुम मुझे छोड़ राजसमामें जा नहीं सकती। नर्तकीने कर लिया था। १४४४ ई०में देवरायने यह श फिर कहा-राजसभामें वादकके अलाया किसीको भी जानेबदाया! १४५११०में उन्होंने मागवलीला संघरण की। का हुपम नहीं है। काजी साइप कर छोड़नेवाले थे। देवरायके राजत्वकाल सम्बन्धमें इस ऐतिहासिक.की नर्तको उसके गुण पर मुग्ध हो कर उसे सभामें ले गई। उक्तिके साथ रायवशावलोका पार्थक्य दिखाई देना काजी और उसके बाम्धय स्त्रोका रूप घर कर रंगभूमि है। - Vol. xx 94 .