पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४२७

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विदुष्मन–विदेह विदुमत् (स.लि.) विद्वानस्ति अस्यामिति विद्वस्- | कारण कामकेलिमें सहायक होता है। इसे भाड़ भी मतुप् । विद्वद्युक्त, पण्डितसमन्वित । । कह सकते हैं। विद्वष्मती (स' स्रो०) पण्डिता स्त्री। ____साहित्यदर्पणमें लिखा है, कि नारकादिमें जो कुसुम- विदुस् (सं० त्रि०) विद्वान् , पण्डित । घसम्तादिक नामसे तथा वसन्त वा उस ऋतुसम्बन्धीय किसी भी नामसे पुकारा जाता है और जिसकी क्रिया, विदू (सपु०) विदु, हाथोके मस्तकके घोचका भाग। विदूर (स' त्रि०) विशिष्ट दूर पस्य । १ अतिदूर स्थित, हाय माय, वेशभूषा और वातचीतसे लोगोंके मनमें हंसी जो बहुत दूर हो। (पु०) २ बहुत दूरका प्रदेश ३ एक उत्पन्न होती हैं, जो अपने कौशलसे दो आदमियों में झगड़ा देशका नाम। ४ एक पर्वतका नाम। कहते हैं, कि कराता है, जो अपना पेट भरना या स्वाथसिद्ध करना पैदूर्गामणि इसी पर्वतमे मिलती है । ५ मणिविशेष।। खूब जानता है, उसीको विदूपक कहते हैं। यह विद्वपक वैदूर्य देखो। तथा तथा विट, चेट आदि नायक शृङ्गार रसमें सहायक तथा मातिमा नायिकाको मनाने वात कुशल होता विदूरग (स.नि.) यिदूर गच्छतीति - गम ड। अति- प्राचीन कालमें राजाभों और बड़े भादमियांक दूरगन्ता, बहुत दूर जानेवाला। मनोविनोदके लिये उनके ववार इस प्रकारकं मसपरे विदूरज (स. क्लो०) विदूर पर्वते जायने जने । १ रहा करते थे जो अनेक प्रकारके कौतुक करके बेवकूफ विदूरपर्णतजात रत्न, विदूर पर्वतसे उत्पन्न वैदूर्य मणि । धन कर गया वात बना कर लोगोंको हसोया करते २ (खि०) अतिदूरजात, बहुत दूर उत्पन्न होनेवाला। थे। प्राचीन नाटक आदिमें भी इन्हें यथेष्ट स्थान मिला विदूरत्व (स० क्लो०) विदूरस्य मावा स्व । निदूर होने. है, क्योंकि इनसे सामाजिकका मनोरञ्जन होता है। का भाव, बहुत अधिक दर होना । (त्रि०) ४ दूपणकारक। (भागवत० ५६१०) घिदूरथ (संपु०) १ पुराणानुसार एक राजाका नाम । (गाहपु०८७०)२ कुरुक्षेत्र । ( भारत १९६५।३६) | | विदूषण (सं० लो०) घिदूष-ल्युट। किसी पर विशेष रूपसे दोष लगानेको क्रिया, ऐव लगाना। ३ पृष्णिय शोय एक राजाका नाम । इनके पुत्र शूर थे। विदूपना ( हि० कि०) १ सताना, दुःन देना। २ दोप विदूरभूमि (स स्त्री० ) विदरस्य भूमिः। घिदूर नामक | लगाना, दोपी ठहराना १३ दुःखी होना, पोड़ाका अनुभव देश। कहते हैं, कि वैदूर्यमणि इसी देश में होती है। करना। विदूरविगत (सं० पु० ) अन्त्यज ।' विद्गति (सं० स्त्रो० ) मस्तकहीन, यह स्त्री जिसे सिर न विदूराद्रि (सपु०) घिदूरनामकोऽदिः । विदूर पहात हो। (ऐतरेय उप० ३.१२) (जटाधर) | | विदश् (सं० त्रि०) विगतौ दशौ चक्षुपी यस्य । अन्ध, विदूषक (म. वि०) घिदूपयति मात्मानमिति विदूष- णिच् ण्वुल । १कामुक, यह जो यहुत अधिक विषयो । विदेश (E0) एक प्राचीन ऋयिका नाम ।विदेह । हो। पर्याय-पिड़ ग, व्यलोक, पंटप्रह, कामकेलि, पीठ. विदेह देखो। फेलि, पोठमह, भपिल, छिदुर, विट, चाटुबटु, यास-विदेव (सं० पु०) १ राक्षस । (भयपै० १२॥३॥४३) २ यश । न्तिक, फेलिफिल, हासिक, प्रहासी, प्रीतिद। (हेम) (फाठक २६।६) । २ परनिन्दक, यह जो दूमरों की निन्दो 'फरता हो। विदेश ( स० पु ) विप्रप्टो देशः। अपने देशको छोड़ पर्याय--खल, रक्षक, अभीक, क्रूर, सूचक, कएठक, माग, कर इसरा देश, परदेश। मलिनास्य, परदे पी। (शब्दमाजा) विदेह (सं० पु०) विगतो-देदो देहसम्बन्धो यस्य । १राजा ३ चार प्रकारके नायकोंमसे एक प्रकारका नायक। जनक । जनक देखो । २प्राचीन मिथिला (वर्तमान तिर- पीठाई, विट, चेट और विदूषक यही चार प्रकारके | हुत)का एक नाम । ३ इस देशके निधासी। ४ राजा नायक हैं। यह अपने कौतुक और परिहास मादिक ' . निमिका एक नाम । निमि देखो। न पडे। जिसे