पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४१६

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विड्मोजिन्-पितद्र, यिह भोजिन् (सं०नि०) विषं विष्ठां गोयतुं शलं यस्य के प्रतिपक्षकी पराजय तथा अपनी जय मालक र बिदभुक, विष्टा सानेवाला। जो कथा प्रवर्तित होती है, टसका नाम जल्प है। जन्मे यिह भोजी (० त्रि०) यिह भोगिन देखो। यादी प्रतिवादी दोनों ही अपने पक्षको स्थापन भौर पर पिड लयण (सं० ) यिटलयण, सांबर नमक। पक्षको प्रतिपेच करते हैं । अपना कोई भी पक्ष निग यिड़ वराह (स.पु.) विट प्रियो बराहः। प्राम्यशकर, न काफे केवल परपक्ष परएडनके उसे शिविगायु गायोमै रहनेवाला सूअर । व्यक्ति जिस कथाकी प्रवर्त्तना करते हैं, उसका नाम यिह पल (सपु० ) १ गोपक। २ निशादल। यितण्डा है। (पर्यायगु०) जस्म और पितएडामें प्रतिपक्षकी परामयके लिये विध विधात (सं० पु०) एक प्रकारका मूत्रघातरोग। | न्यायोत छल, जाति और निप्रस्थानका उहायन उदायत रोगमे दुल धीर यक्ष व्यक्तिको विष्ठा, कुपित किया जा सकता है। यह कथा फेघल सत्यनिर्णयफे, गायुके द्वारा मूत्रनोत प्राप्त होने से यह रोगी उस समय लिये उपन्यस्त होती है, इस कारण उसमें समाको मरत व करसे रिट सन्ष्ट और विड़ गन्धयुक्त मृतत्याग नहीं, किन्तु जल्प गौर धितएडा समाफी जरुरत होती करता है। रोगीकी इस अवस्थाको शास्त्रकारोंने है। जिस जगतामे राजा या फाई क्षमतावाली पनि विड़ गिधात कहा है। ( माधवनि०) नेता तथा कोई व्यक्ति मध्यस्य रहते हैं, उसी जनताको सिड बभे ( मपु०) विड़ विधातरोग। नाम सभा है। घाद गौर न्याय देखो। विमा ( पु.) मलद्वार, गुदा। ___ २ ध्यर्थका झगड़ा या कहा-सुनी। कच्चा साग पित ( स० ० ) यिष्ठा और मूत्र । और फन्द । ४ गिलाइय, शिलाजीत । ५ करयो। 14स ( स० पु०) मि त स प्रम् । यतिस, मृग नथया । ६ दीं । पक्षी पारिको फंसानका जाल । यितत (सं०नि०) गितम.क्त । १ पिस्ता, फैला हुमा । चितएर ( स० पु० ) १ मर्गलभेद, मगरी। २ हस्ती (को०) २ चोणा मया उससे मिलता जुलता हुमा दायी। भोर कोई वाना। वितरक (स० पु०) एक मन्यातका नाम । यितताध्या ( स० स० ) यायेदीसम्बन्यो । वितएडा ( स० सी०) वितण्यते यिन्यने परपक्षोऽन (भषय ६२ ति वि-तएड गुराश्चेत्यः राप।१ दूसरे पक्षको दवातयितति ( सं० रनो०) पि-तनति । पिस्तार, पोलाय। हुप सपने मतको स्थापना करना। (भमर) यतकरण (सं००) लोगों का मानन्दित कर्म, यित. ___कथा, पाय, जवा मोर वितण्डा इन तानों का भाषण । कथा कहते हैं। गौतमसूत्र में इसका लक्षण इस प्रकार वितस्य (सं. पु०) विदथ्य एक पुत्रका माम। लिखा- • (मारत १३t') "सदिस्यानरोनी पिरायटा।" (गौतमसूत्र ||४) वितथं (सं० लि. ) fer, मेट। २. निल, यर्थ, __तिपक्ष स्थापनाहीन होनसे उमप वितएडा कहने पेशायदा । है। तस्यनिर पा विजय गात् पाविपराजपके मिता ( रबी०) वितधाय मापा टाप । विनय. से ग्यापसद्गत यमनारम्पराका माम कथा कामाय या धर्म, freपाय | या तीन प्रकारको ६, थार, अल्प मौरवितासमय (म' शियितधन्यम् । EिO, मसत्प, भूट। गया पराजय श प नहीं, कंपन तस्यनिय विनर यिमनातीति नितन ( नाम। काश फर सो सरप्रमाणादि पायत उप सरपः । पाक वितता या R, उसका नाम पार है। तस्यनिर्णय प्रति . देशम ACCI