पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/४०६

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३३६ विज्ञानाचार्य-विज्वर विधानानार्य (२०१०)आचार्यभेद । . , विज्ञानेश्वरके पिताका नाममा पद्मनाभ। उनका विधानात्मा-शानामाफे शिष्य । इनके रचे नारायणोपनिमिताक्षरा समस्त भारतका प्रधान धर्मशास्त्रनिवाकर पनिवरण गौर श्वेताश्वतरोपनिपद्धविवरण मिलते हैं। कर प्रथित है। विशेषता माज कल भी महाराष्ट्र प्रदेश- विज्ञानानन्यायतन (संसो०) यौहमउमेद। में मिताक्षराके मतानुमार हो सभी भावार और प्यार. विज्ञानामृत (सी0 )शानामृन। कार्य सम्पन्न होते हैं। मिताक्षराफे अलावा विशामेश्वर विशामिक (संत्रि०) विज्ञानमस्त्यस्येति विज्ञान उन् ।। अष्टावक्रटोका और निशच्छाकाभाष्यको रसना कर गपै १ जिशान हो, शानशिट । २ विश, पण्डित । ३ वैशा निक देखो। | विज्ञापक (स.पु.) वह जो विज्ञापन करता हो। सम. विशानिता (सं० स्रो० ) विज्ञानमस्त्यस्येति विज्ञान-इन् । माने, बतलाने या जतलानवाला। ..., तल्-टाप । विज्ञान का भाव या धर्म, विज्ञानवेत्ता। विज्ञापन (सं०. ० ) दिशा मिच् न्युट् । किसी विज्ञान (स.पु०) पिज्ञानी देखो। | घातको यतलाने या जतलानेको किया, जानकारी कराना, पिशामो (स.पू.) १ वह जिसे किसी विषयका अछा। सूचना देना। २ वह पत्र.या सूचना भादि जिसके द्वारा मान हो। २ यह जो किसो विधानका अच्छा घेत्ता हो, काई घात लोगोंका यतलाई जाय, इश्तहार । चशानिक । ३ यह जिने आत्मा तथा ईश्वर मादिफे | यशापना ( स० सा० ) व शा णिच-युर टाप। विस्त स्वारफे सम्बन्ध विशेष शनि हो। करना, जतलाना, पतलाना। विश नाप (स.लि.) विशनमम्मी , धैज्ञानिक। दिश पना ( स० स्त्रो०) कह कर या लिख कर किसी विज्ञानेश्वर-एक अद्वितीय स्मान पाण्डत । मिताक्षरा अदिती विषयका आवेदन करना, दरखास्त, रिपोर्ट। नामकी यायल्कयटाका लिख कर ये भारतविण्यात हो विज्ञानीय { सनि.) विज्ञाप्य, जो बतलाने या जत- गये हैं। मिताक्षराम शन्तमें पण्डितवर इस प्रकार आम.लानेक पाग्य हो, सूचित करने के योग्य। परिचय दे गये है- विज्ञापित ( स० नि०) १ जो पतलाया जा चुका हो, पृथ्वी पर पल्याण समान नगर न न था। जिसको सूचना दी जा चुका । २ जिसका इश्तहार गौर न होगा । इस पृथ्वी पर विक्रमार्क सद्रग दिया जा चुका हो । राजा न तो ना हो जाना और न सुना हो जाता है। विज्ञापिन् ( स० त्रि०) जतलाने या बतलानेयाला, सूचना मधि विज्ञानेश्वर पण्डितकी भी दमरो साथ देनेवाला। उपमा नहीं दी जा सकती। ये तीन (स.) पितरु- विशाप्ति ( स० स्रो०) वि-शा णिच तिन् । विज्ञप्ति देखो। की भांति फल्प पर्यन्त स्थिर रहे। दक्षिणमें रघुकुल- विधाप्य ( स० वि०) बतलाने योग्य, सूचित करने के तिलक राममन्द्रका विरन्तर कोतिरक्षक सेतुबन्ध, उत्तर पाय। में शैलाविराम दिमालय, पूर्व और पश्चिममें उत्ताल विज्ञेय (स० लि०) यि-शा-यत् ( पची यत् । पा ३१९९७) । तरसमाकुल तिमिमकरसंकुल महासमुद्र, पेनामीमा विज्ञातथ्य, विज्ञानोप, जो जानने या समझने के योग्य हो। विधि विस्तून भूमाग प्रमायशालो राजामोको विज्य (स' नि०) विगता ज्यां यस्मात् । ज्यादित, जिस. चिनिमितमस्तस्यत रमजिप्रमास जिमके चरण युगल में गुण महो। "विज्य रक्ष्या महाधनुः। . मियन प्रमाग्थित हैं. ये विक्रमादित्यदेव चम्द्रतारास्थिति । (रामायण ६।१०) ' काल पर्यन्त इस निपिल जगन्मएडल का पालन करें। विश्वर (स.नि.) विगता ज्वरो यस्य । विगत वर, ___ विक्रमादित्य हो मसिद कल्याणपति प्रतोप यमुक्त, जिसका उपर उतर गया दो, सिमका युभार नालपपगीय विभुवनमल गिप्रमादित्य है। ये वो छूट गया हो। २निश्चिन्त, धेफमा, जिसे संप्रकार- सन् १५यों सदोमे विधमान थे। } को चिन्ता से छुटकारा मिल गया हो।३ विगतशकि,