पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/३५३

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विचार . ३०१ विचार (स० पु०) विशेपेण चरणं पदार्थादिनिर्ण ज्ञानं सम्यों के साथ धर्माधिकरणसमा प्रवेश कर पेट या यिचर-घञ् । १ वह जो कुछ मनसे सोचा जाय अथवा उठ कर विचार करना चाहिये। सोच कर निश्चित किया जाय, किसी विषय पर कुछ जिस समा ऋक, यः और सामयेश्येत्ता ऐमें सोचने या सोच कर निश्चय करनेकी किया। यह वात तीन सभ्य ब्राह्मण रहते हैं, उम मभाको नाममा कहते जो मनमें उत्पन्न हो, मनमे उठनेवाली कोई बात, भावना, हैं। विद्वानोंस परिवृत्त इस सभा यदि भन्याय विचार एयाल । ३तत्यनिर्णय, मुकदमेको सुनवाई गौर फैसला, | हो, तो सभी सभामदु पतित होते हैं। विचारों के पथार्थनिर्णय, निष्पत्ति, मीमांसा, सन्दिग्ध विषयमें प्रमा मामने यदि अधर्म कर्त, धर्म और मिथ्या कत्र्तक मत्य गादि द्वारा अर्थ-परीक्षा । किसी सन्दिग्ध विपयका तत्त्व- नट हो, तो विचारकगण विनए होते हैं। जो मनुष्य धर्म- निर्णय करने में प्रमाणादि द्वारा संदेह दूर करके जो यथार्थ का नष्ट करता है, धर्म भी उमको नष्ट कर डालता है। तस्व-निर्णय किया जाता है, उस विचार कहते हैं। पर्याय-- अतएव धर्म सिरमणीय नहीं है । धर्मका आश्रय ले तर्फ, निर्णय, गुझा, चर्चा, संख्या, विचारणा, चर्चन, कर निरपेक्ष भायमें विचार करना उचित है। सांख्यान, विचारण, वितर्क, व्यूह, घ्युह, अह, वितरण, ___अन्याय विचार करनेसे जो पाप होता है, उसके । प्रणिधान, समाधान ।, (जटाधर ) भागोमसे एक भाग मिथ्याभियोगीपा, पक भाग मिथ्या. ___४ नाट्योक्त लक्षणविशेष। युक्तियुक्त यापय द्वारा साक्षीका, एक भाग कुछ सभासदको और एक गाग जाहां अप्रक्षार्थका साधन होता है, उसे विचार कहते है। रामार प्राप्त होता है। किन्तु जिस सभा न्याय विचार । (साहित्य ६४७) | होता है यहां राजा निष्पाप रहने हैं, तथा सभ्यगण मी , मन्यादि धर्मशास्त्र में लिखा है, कि राजाका चाहिये पापशून्य होते है। कि ये पक्षपातशून्य हो ,फर यादी और प्रतियादीका राजा शूदको कभी भी विचारकार्यमें नियुक्त न करें। वियाद सुन कर उचित विचार करें। यदि स्वयं न फर घेदविद् धार्मिक ब्राह्मणका दि मभाष दो, तो गुणहीन सके तो प्रतिनिधिको नियुक्त करें। उमौसे यह कार्य | ब्राह्मणको विचारकार्यमें नियुक्त कर सकने हैं। यदि शूद्र होगा। विपादादिको मन्यादि शास्त्र में व्यवहार नामसे | मर्यशास्रवेत्ता और पयहारविद् भी क्यों न हो, तो भी उक्लेख पिया है। राजा व्ययहारका निर्णय करने के लिये | उस विधारकार्य में नियुक्त न करें। जिस राजा मामने मन्त्रणाकुशल मन्त्रियों के साथ धर्माधिकार समा विचारा शद धर्माधर्मका विचार करता है, उसका राज्य अति शीघ्र लय में प्रवेश करें। घे यहां पर बड़े ननसे 33 वा बैठ/ पिनष्ट होना है। कर पिचारकार्य करें। राजा जिन सय विपयोंका विचार राजाफे। धर्मासन पर बैठ लोकपालों को प्रणाम कर करेंगे, ये गठारह प्रकारक माने गपे हैं, इस कारण उन मियर वित्त विचार करना चाहिये। ये अर्थ और धर्म का अष्टादश व्यवहारपद नाम पड़ा है। मृणादान, निःशेष, दोनों की माझ कर घमं गौर अधर्मके प्रति दृष्टि र ग्राह- प्रयामिविक्रय, सम्भूयसमुरथान, दत्तापदानिक, घेतना- णादि घर्णाधमसे यादी प्रतिवादीके ममी कार्य देखें। दान, सम्यिनुरुपतिक्रम, क्रयविभावानुशय, स्वामिपाल राजा विचारक ममय यादी मोर प्रनियादीका मनोभाय यिवाद, मोमाविधाद, याक.पारुप, दगडपामध्य, स्तेय, जानने की कोगिन करें। आकार, इलित, गति, चैटा, .माहम, खोसंप्राण, स्त्रीपुरपधषिमाग और पतये कथाशता तथा मेन और मुख विकार माग भादमीका अष्टादश पद-व्यपहार अर्थात् रिचार्य विषय है। पही। मगोमत भाव जाना जाता है। अतएव उसके प्रति लक्ष्य सब देकर घियाद उपस्थित साह। रामा धर्मका | रमना आवश्यक है। भाश्रय ले करन म विपर्योका विचार करें। राजा! यिनारापों दो र यदि मा रामाय: निट उपस्पित यदि स्वयं पे मय कार्य न चला सकसो विद्वान् ब्राह्मण हो, तो राजा साक्षी द्वारा उसका मया मचा निर्णय को इसमें मियुक करें। उन विद्वान ब्राह्मणको सोम. करके विचार करें..जदा माशो नहीं रहना है, यहां शपथ Vot XXI, 76 . ।