पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/२६३

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'वाल्मोकि २२७ थे। ब्रह्माने मुनिको इस तरह शोकारायण देख दृष्टः । प्रवेश तक वर्णन किया है। यही सातयां काण्ड या चित्तसे हास्यमुखसे मीठे वचनों में उनसे कहा कि तुम्हारे उत्तरकाण्डके नामसे प्रसिद्ध हुआ। कण्ठसे निकला यह वाक्य मेरे हो संपला हुआ है। उक सप्तमकाण्ड रामायण ही वाल्मीकिका प्रधान पेह तुम निश्वय समझो । अतएव इस विषयमें अवसे तुम परिचाया है और यह प्रन्ध-रचना ही इनके कृत. अपने मनमें शोक न करो। तुम्हारा यह वाक्य हो कों में प्रधानतम घटना है। पीछे के कुछ लोगोंने कहना . जगत्में श्लोक कह कर प्रचारित हो। तुम इस श्लोकका भारम्भ किया कि यह रामायण रामचन्द्र के अवतारसे हो अबलम्बन कर तैलोषयनाथ भगवान् रामचन्द्रका यात्र- असो सहस्त्र वर्ष पहले की रचना है। किन्तु इसका कुछ तीय चरित्र वर्णन कर अक्षर कीर्ति स्थापन करो। इस प्रमाण नहीं । रामायण देखो। जगत्में जब तक सूर्या, चन्द्र, नद, गदी, प्रह, नक्षत्र - श्रीरामचन्द्रको आज्ञासे चद्ध सुमंत सारथिके साथ भादि विद्यमान रहेंगे, तब तक जनसाधारणमें तुम्हारो ! महामति लक्ष्मणने गङ्गाके इस पार वाल्मीकिके आश्रमके यह रामगुणगाथा ( रामायण ) समुत्सुक चित्तसे सुनो। निकट सोनादेवीको निर्वासित कर दिया । उनको रोदन- जागो और पढी जायेगी। स्वर्ग और मय में तुम्हारा। ध्वनि सुन फर मुनियालकोंने महामुनिसे जा कर संवाद नाम अमर होगा। दिया। ध्यानसे सब विषयों को जान मुनि जा कर सोता. पितामह ब्रह्मा ऐसा इनको उपदेश दे कर यहांसे देवोको सान्त्वना दे कर उनको अपने साथ आश्रममें ले अन्तहित हुए । इसके बाद सशिष्य वाल्मीकि विस्मय आये। सीतादेवो मुनिके आश्रममें रहने लगा। कुछ सागरमें निमग्न हुए। इसके बाद तपोधन वाल्मीकिने दो दिन के बाद उन्होंने दो यमज-पुत्र उत्पन्न किपे । पक- रामायण-रचनामें मन लगाया। पहले उन्होंने महर्षि का नाम लव भीर दूसरेका कुश था। महर्पिने इन दोनों नारदके मुइस रामचन्द्र को सक्षिप्त जोयनो सुनो यो। सन्तानों को यत के साथ शिक्षा दो। इन दोनों बचौको । किन्तु इनको रामायणको रचना करनी थी। इससे महपिने इस तरह वोणाके साथ ताल लय सुरके साथ विशेषरूपसे भगवान् रामचन्द्रको जीवनी जाननी पड़ी। रामायणं गान करनेको शिक्षा दी, कि उनके गान सुन ये इसके लिये समुत्सुक हो पूर्णको ओर मुह कर आसन कर रामचन्द्रकै अश्वमेधयझमें आये राजा, प्रजा, सैन्य. पर बैठे और भाचमन कर कृताञ्जलिपूर्वाक नेत्र मूद कर | सामन्त, ऋषि, मुनि छोटे बड़े समा थति विस्मित हो ध्यानमग्न हुए। योगवलसे राजा दशरथके वृत्तान्तसे उठे थे। ले कर सीताके पाताल प्रवेश तकको घटनासे यह गय. किम्वदन्तोके आधार पर किसी किमी भायारामायण. गत हुए। कारने अपने ग्रन्थों महामुनि वाल्मीकिके "यस्मीके भय" .इसके याद महर्विने इस वृत्तान्त को उन्दोबद्ध कर इस व्युत्पत्तिगत नामका य त्तान्त निम्नलिखितरूपसे प्रकट प्राञ्जल भाषा और सुललित पदविन्यासमें लिपिवद्ध ! किया है, किंतु वाल्मीकि रचित मूल रामायणमे इसका किया। यह हिन्दूको राजनीति, धर्मनीति, अर्थनीति, कोई निदर्शन नहीं मिलता। वह इस तरह है- समाजनीति भादिक भादस्वरूप है तथा मापातत्वविद् ! . "आप सर्व सर्वव्यापी यिभु हैं । मापकी अवस्थिति- गालङ्कारिक, विज्ञानविद् दार्शनिक, अध्यात्मतत्त्ववेत्ता | को पात में पया कह सकता है ! मापके नाम की महिमा पोगी ऋपि मादिके लिये यह सर्यजनसुलम घिरमसिद्ध ] हापार है। आपके नामकै प्रभाव से मैंने ब्रह्मर्षि पद रामायण प्रन्य है। महर्णिने पहले तो इसे छः काण्ड तक ! प्राप्त किया है। मैंने ब्राह्मणके घर जन्म लिया था सही। पांच सौ सगों में और २४ सहन्न श्लोकोंमे पूर्ण किया। वितु दुर्भाग्यवशतः पिरातके घर रह पर मदा उनके इसके बाद अयोध्यापति रामचन्द्र के अभ्यमेधयम- | अनुरूप कार्यो में प्रवृत्त रहता था। एक शुदाफे गर्भसे पत्तान्त, पाल्मीकिके नामसे दूसरे किसी भादमीने फिर-1 मेरे कई संतान उत्पन्न हुए। उनके भरण पोषण करने. - से सौतादेयोके निर्वासनसे मारम्भ कर उनके पाताल के लिये अनन्योपाय हो कर मुझ अगत्या धर्मभाव त्याग