पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१९०

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२७० __वायुविज्ञान समुज्ज्वल यना देता है तथा इनके कार्यानिक एसिडको मथुराको विरहव्यथित वियोगिनियों का यिपादसे भरा था माताको यथासम्मय हस कर देता है, सूक्ष्मतम यान्त्रिक तान नहीं। किन्तु यह धारणा मामूलक पिस.. पदार्थ भी घायुकोपमे प्रेरित होता है। इस तरह रफ्त जग गिलफे सङ्गसे सुपी होने की अपेक्षा स्पज्ञानिको परिष्कृत हो फुस्फुसीय शिराफ पपसे हस्पिडके बलवृद्धि करके हो अधिकतर सुत्री होता है। दिमाग्नी पायेप्रकोष्ठ में उपस्थित होता है । यहांसे धमनीके । यिनका अक्सिजन जय टोशुमें अक्सिजनका प्रचाप कम पथसे सारे शरीर संचालित होता है और देहका ! देखता है, तो इस मित्र दिमोग्लोविनका माथ ोड कर टोशु या मौलिक धातुसमूह भी गदिमजनवाहुल्य रक्त-1 देहिक रसको ( Lymph) आनन्दतर पता हमा स्रोतसे अपने अपने प्रयोजनानुसार अक्सिजन ग्रहण और टोशुने जा मिलता है। हिमोग्लोयिन तब इस गिरना- कार्योंनिक पसिड परित्याग किया करता है। इस तरह । अनन्त सुद् मित्र के वियोग में स्नान और विपापण हे धमनीको हाम्रा और उपशाखा, क्ष दतर शाखा धीर जाता है और इस मित्र को खो कर धीरे धीरे शिराफे क्षुद्रतम शाखा परिभ्रमण कर अन्त में यह रक शिकाफे अन्धकारगर्म दूब जाता है। . . . . संयोगमुनो क्षमतम, क्षुद्रतर, शुद यहत् और पृहत्तम स्यक की श्वासकिया।, . शिरापसे भ्रमण करते हरते हपिएड के दक्षिण कक्ष . हम पहले ही कह आये हैं, कि दैहिक रोशु द्वारा भो संयुक्त दो वृद्धत् गिराम पतित हो भन्तम हरिपएडके, ध्यासमिया गच्छी तरह निर्वादित होती है । फलता जरा दादने कसमें प्रवेश करता है। इस अवस्थामें इसमें जांच करने पर मालूम होगा, कि हमारी सारो देह दो सापिसजनका अंशबहुत कम और कार्यानिक पसिष्टका। मानो सञ्चित कार्योन परिहार और गपिसमन-इण भाग बहुत अधिक पढ़ता रहता है। इपिएउसे फिर करने के निमित्त निरन्तर चेष्टा कर रही है। दिन रान माणस्वरूप अक्सिजन प्राप्तिकं लिये और जीरन-संघातक | हमारे देह-राज्यमें इस साशन प्रदानका यिपुल भाषा- पार्शनिक पसिद्ध गेस परित्याग करने के लिये यह रक्त. जन और महान व्यवसाय चल रहा है, जिसे हम देखने राशि अति प्याकुलतापूर्वक फुस्फुस के वायुकोषमय भी नहीं । भीतरी उपादान और फुस्फुसयन्त-न सुनकर स्पलमें गा कर पायुफे लिये मुह फैलाती है। दानोको धात छोड़ देने पर भी दिखाई देता है, कि हमारी तुपारपारसे गीतार्त पधिक जैसे मोरकिरण पार देहके बाहरी त्यकाशि गो इस पापार, सदा पस्न नपजीयन प्राप्त करता है, ये सब शैरिक रक भी अपिस-1 है। त्यक में भी पपेट फेशिका नाड़ी विधमान है। जन स्पर्शसे यैसे हो समुज्ज्यल और प्रफुल्ल हो जाते। घायुफापर्ने जिस तरह एनिधिलियम नामको चहार- हैं। इनका कालापन दूर होता है। कार्यानिक एमिहके दीवारी है। त्वमें उसो जातिको झिल्ली पर्तमान है। प्रमावसे ( इनके विपादमें गिरी दुई) विपण देव भक्ति किन्तु त्यक को हिलो फुस्फुसको झिल्लीको अपेक्षा जन प्राप्त कर पिपस्पर्शसे पिमुक होती है और प्रत्पेक अधिकतर मोटो है। फुस्फुसको भिरको यहुन पानी तकणा यथार्थ प्रफुलन ( Fatter ) और समुन्यल है। सुतरां फुस्फुमी अपेक्षा न बहुत जरी हो उठगी है। करने पर भी स्याको रसधारा यायु देरमे पटुंमतो है। मरियमनको मित्रता इस कारण फुस्फुस हारा मितने समय ३८ भाग कार्यो हम सबसे पहले बहनुमे है, कि अक्सिजन रत निक एसिड पहिष्टत होता, त्या द्वारा उसने हो. कर्णिकासे (निगालेविनसे ) मिलते ही तुरन्त उससे समय में एक भाग फेघाट कार्योगिक पसि वाद मिल. गले लग कर मित्रता पर लेता है। इससे मिल कर लता है। किन्तु जलीय या निकलने का मौड़ा गय यह दुसरी एक मूर्ति पारण करनेको चेष्टा करता है।} त्या ही है। कुम्पुमम गिर मोसतसे जलापपार 'मानको मित्रताको इतिश्री दगी हो नी । स बाहर निकलना है. स्याटीग पायनिकलोका . . मंगल मिलगौ माता पयल सम्भोगगीत , fridi गोमत उससे दुगना है। साधारशक पपसे प्रार