पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१९

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यहिष्कार-वहृदक यहिष्कार ( पु०) विताड़न, दूर करना। यह वांकुड़ा नगरसे १२ मोल दूर नारिकेश्वर नदीके यहिकार्य (सं० वि०) त्यागोपयोगी, छोड़ने के लायक।। दक्षिणी तट पर गयस्थित है। यहांके सिद्धेश्वरका मन्दिर यहुत प्रसिद्ध है। यह मन्दिर नाना प्रकार के २ ताड़नीय। शिल्पचातुर्याक साथ पत्थरोंका बना है। मन्दिरस्थ पहिष्कुटीचर (स.पु.) कर्कट, केकहा।, शिवलिंग देखनेसे यहां शैवधर्मको प्रधानता अनुभूत वहिष्कृत (सं०नि०) १ विताड़ित, वाहर किया हुआ । होने पर भी मन्दिरगालस्थ उलंग जैनमूर्तियोंको निरी- २ परित्यक्त, त्यागा हुआ, अलग किया हुमा । ३ वाह्य- क्षण करनेसे मालूम पडता है, कि प्राचीनकाल में यहां रुपसे प्रदर्शित । जैनधर्मका विशेष प्रादुर्भाव था। इस समय उस सम्प्र- वहिप्याति (सं० स्त्री०) यहिष्कार | दायके प्रतिष्ठित मन्दिर तथा मठादिको दीवारोंका चिह्न पहिष्किय ( त्रि.) पवितकृत्यज्जित, जो शास्त्र. तक विलुप्त हो गया है, सिर्फ यत्नपूर्वक रखी हुई उनकी कथित धर्म-कर्म अथवा यज्ञादि क्रियासम्पादनमें अपने । भग्न प्रतिमूर्तियां वर्तमान मन्दिरों की दीवारों में लगाई समाजसे निषिद्ध या स्याधिकारभ्रष्ट हो। गा है। इनके अलावे मन्दिरगालमें दशभुजा तथा गणेश- चहिप्किया ( स० स्त्री० ) धर्मकर्मका बहिरङ्ग .को मूर्तियां भी हैं। पहिष्टात ( स० अव्य० ) वाइरस्थित, याहरमें।। इस मन्दिरके सामने एक, चारों कोणों पर चार एवं यदिष्ठ (स. त्रि०) बहुभारवाही, अधिक भार उठाने. अन्य तीन दिशाओं में सात छोटे छोटे मन्दिर सुस- घाला। जित हैं। यहिप्पट (स' लो०) गालवस्त्रभेद, शरीरका एक प्रकारका चहूदफ-मन्यासो सम्प्रदायमेव । सूतसंहितागे कुटी. कपड़ा। चक्र, बहूदक, हस तथा परमहस नामक चार प्रकारके यहिष्प्राकार ( स० पु० ) दुर्गका बाहरी प्राचीर । सन्यासियोका विवरण दिया गया है। यहूदक सांप्र. पहिमाण (सपु०) १ जीयन । २ भ्यास घायु । दायिकगण सन्यास धारण करने के बाद दी धन्धु पुत्रादि- ३प्राण तुल्य प्रिय यस्तु । ४ार्थ । का परित्याग करके भिक्षावृत्ति द्वारा अपनी जीविका घहिस ( स० अश्य० ) वाह्य । चलायेगे। ये एक गृहत्यके घरका अन्न प्रहण यहीं (हि अध्य०) उसी स्थान पर, उसो जगह। प्रय नही कर सकते, उन्हें सात गृहस्थों के गृहस भिक्षा लेनी यहां शब्द पर जोर होता है, तब 'ही' लानेके कारण उस | होगो । गोपूछो फेशको डोरो द्वारा पद विदड, शिफ्य, का यह रूप हो जाता है। जलपूर्णपान, कोपीन, कमण्डलु, गानाच्छादन, कन्या, यही (हि० स०) १ उस तृतीय व्यक्तिकी ओर निश्चित पादुका, छन्न, पवितत्रर्म, सूची, पक्षिणी, सद्राक्षमाला, रूपसे संकेत करगेवाला सर्वनाम जिसके सम्वन्धमें योगपट्ट, वहिर्वास, सनित्र तथा कृपाण, चे पदण कर कुछ कहा जा चुका हो, पूर्वोक्त व्यकि। जैसे--यह यही सकते है। इनके अतिरिक्त वे सारे शरीरमें भस्मलेपन आदमी है जो कल आया था। निर्दिष्ट व्यक्ति, अन्य पचं त्रिपुण्ड, शिक्षा तथा यशोपवीत धारण करेंगे। वे नहीं। जैसे-जो पहले यहां पहुंचेगा वही इनाम घेदाध्यन तथा देवताराधनामें रत हो कर एवं सदा पावेगा। - येतुको यार्तीका परित्याग करके अपने इष्टदेवकी चिंता पहीयस (सं० लि.) अति विपुल। में मग्न रहेंगे। सम्ध्याके समय उन्हें गायत्रोका जप . यहोर (२० पु० ) १ शिरा, रकवादिनी नाड़ियोंका एक | करके गपने धर्मोचित क्रियानुष्ठान करना चाहिये। वर्ग। २ स्नायु । ३ मांसपेशी, पुट्टा। यहूदक लोग सन्यासियोंके सर्वकाल पूज्य देयता बहुलारा-यांकुड़ा जिलाफे अन्तर्गत एक प्राचीन स्थान | महादेवको हो उपासना किया करते है। नित्यस्मान, Vol, XXI.5