पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१५२

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१३५ वागन-चापनत्व हुआ है। फिर भी बलिने सत्यधर्म नहीं छोड़ा है । मतपय क्षीरस्वामी, अभिनव गुप्त और मानने नको - वलि परम भक्त और सत्यवादी है। अतएव जो स्थान | बनाई हुई कविताविका उल्लेग्न किया. सापणाचार्य देवताओंके लिये मो दुर्लभ है, मैंने वलिको यही स्थान धातुवृत्तिम ग्हें चैयाकरण, ! पाण्यरचयिता और समन- दिया है। पलि सावर्णि मन्यन्तरका इन्द्र होगा। जितने प्रतिपालक कहा है. 1 मयिनातविद्याधर याकरण, दिन यह भन्यन्तर नहीं माता, उतने दिनों तक यह विश्व काव्यालङ्कारसूत भोर वृत्ति तथा काशिकाधि नामक "कर्मा द्वारा निर्मित सुतलो पास करे। मेरी कुछ हाग्य इन्हों के पनाये हुए हैं. ;.,!. द्वारि रहनेसे आधिव्याधि, धान्ति, तन्द्रा, परामय और ठोक ठोक यह कहा जा नहीं सकता कि सूतपाल मौसिक उत्पत्ति यहां कुछ भी न होगी। इसके बाद उणादिसून और लिङ्गसूबके रचयितां.. यामनं प्राचार्य 'वामनदेवने यलिसे कहा, तुम अपने .जातिवालोंके साथ और उक्त काय एक व्यक्तिये या नहीं। शेपोक यसिने देवतादुर्नाम सुनल में जाओ। तुम्हारा मङ्गल है।। इस पलिका और जनेन्द्रका मत.उदघृत किया है। म्यानमें सुमको कोई पराभय नहीं कर सकेगा। मैं स्वयं यामन-कुछ प्राचीन अन्धकार १'उपाधिन्यायसंग्रहो . । यहां रह कर तुम्हारी रक्षा करता रहगा। बलि इसके | रचयिता । २ पादिरगृहासूत्र-कारिका प्रणेता। बाद सुतलमै गये । धामनदेयने म्यर्ग इन्द्रको प्रदान किया। ३ ताजिकतन्त्र ताजिक सांपेद्वार, पोमनजातक और सो. स तरह धामनने अदितिको पासना पूर्ण की थी। जातक नामक यु.छ ज्योति-शास्रोफे रचयिता चामम-

- (भागवत ८।१४.२४-१०) निघण्टु बानिघण्टु नामक न्य-प्रणेता. ५ वामन . यामनपुराणके ४८ अध्यायसे ५३ अध्याय तक मग. कारिका नामक व्याकरण के प्रणेसा । ६ पलिकशोगाथा ... ..यान पामनदेयके अवतार. और लीला यर्णित है । स्थाना- रचयिता। हेमादि-परिशेष-सएड में इसका उल्लेख मिलता भायफे कारण या उधृत किया न गया । फेघल रसम है। यत्सगोलीय थे। यासुदेय, कामदेव गौर माद्रि . एक विशेष बात यह है कि भगवान् वामनदेयने पहले। नामक तीन पण्डित इनके योग्य पुत्र थे। एक प्रसिद्ध धुन्धुमे तीन पैर पृथ्यो मांग उसको निगृहीत किया। मीमांसाशारत्रवेत्ता । चारिससिंघने इनके मतकी प्रधा" पीछे पलिफे यज्ञ में जा कर उनके सस्यको उन्होंने हरण | नता दिखलाई है। किया और इन्द्रको प्रदान किया। | घामन-१ चहलके अन्तर्गत एक प्राम । (भविष्यमा वामनमूर्तिको रचनाके सम्बन्ध हरिभक्तिपिलासमें| १३३ ) २ निपुराराज्यको राजधानी . प्रतोलात. इस तरह लिखा है- योजन पश्चिममें अवस्थित एक प्राम। (देशावती) • इस मूर्ति को दोनों भुजामौका मायतन खिगोलक, विशालके भातर्गत एक प्राम। यशाल विस्तीर्ण, हाथ पैर चतुर्थीश, मस्सक एहत, (मविष्य म०७० ३६।५३) ऊरुद्वय भीर मुत्रप्रदेश मायामयिदोन, करि मोटो पश्चाद यामन याचार्य करा कथिसार्यभाम-१ प्रारुतचन्द्रिका भाग ) वाश्य भौर नाभि भी गोरी होगी । मोहनार्थ और प्राकृतपिङ्गल टीकाफे रचयिता । २ प्रतिहारसूत्रमारय “वामनदेगी मुक्ति ऐसी ही होनी चाहिये। भादि प्रयोफे प्रणेता प्रसिस पण्डित घरदरामके पिता। - ची मळूट के समय भक्ति के माथ यामनमूर्ति तैयार | यामना (स.पु.) मोच्चदीपका एक एपंत । - • करनी चाहिये। पह मूर्शि पीनगान, दएरधारी, मध्य (निपु० ५३१) • मनोधन, दुदिलशाम गौर कृष्णाशिनधारी होगी। धामनक्षेत्र-भोजफे अन्तर्गत एक सीर्थस्थानी .......

(6ि) पाममोति यम-णि ल्यु ! १३ गतिशुद।

. .. (भौय प्र०स० २RIE)

पर्याय-गर, नीच, अर्थ, दय, गुप, भनागत! धामनकाशिका (सोयामंग रमित काशिकात्ति।

__(जटाधर) यामनजयादित्य (सं० पु०) काशिकायसिक रोगाकार, •यामन-एक प्रमिस कपि । पद काश्मीरराज जयापोहफे घामनस्य (सं.ली. यामनस्य माया त्या , वाममता । मत्या थे । ( NEनियो ४६)- . . . | पामगको भाय या धर्म, भात प्रता, मोचता