पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१४८

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२३४ पापतन्त्रवामन यातन्त्र ( स० लोकतन्त्रविशेष! घामध्यज-न्यायकुसुमाञ्जली रोकाके प्रणेता। यामता (सस्त्री० ) यामम्य भावः तल-टाप् । प्रति- यामन (सं० पु०) पामयति चमति या ममिति यम-णि. ., फूलत्य, वामत्व, धामका भाय या धर्म। • ल्यु । १ दक्षिण दिग्गज । (भागरत ५।२०३६) २ महागण. घामतीर्थ (स' को०) तीर्थ मेद। (वृहन्नीलतन्त्र २१) | पुष्पो। ३ अङ्कोटयक्ष । (मेदिनी) ४ हरि, विष्णु । ५ जिय, . यामदत्त ( स० पु०) घ्यक्तिभेद । (कथासरित्सागर ६८:३४) | महादेय । ६ एक तरहका घोड़ा । ७ दगुफै पुत्र का नाम । वामदत्ता (स'० स्त्री०) नर्तकीभेद । ८ एक तरहका सर्प। गाड़यंशीय पक्षिविशेष । ( भारत ( कथासरित्सा० ११२।१६७) । ५।१०११।१०) १० हिरण्यगर्भका पुन । (हरिख। २५३६६) बामदृश (स. खी० ) यामा मनोहरा दुक दृष्टिर्यस्या।। ११ काञ्चदीपके अन्तर्गत एक पर्वतका नाम । कौञ्च छोपौ । सुन्दरी नारो, खूबसूरत औरत । फञ्चपर्यंत ही प्रधान है। इस पर्वतका दूसरा नाम यामम थामदेव ( स० पु० ) याम एव देवः । १ शिव, महादेव । पर्यत है । १२ एष तीर्थका नाम । यद तीर्थ सर्व पापनाशक ( भारत ११२३३४ ) २ गौतमगोत्रसम्भून ऋपिभेद, गौतम | है। इस तीर्थ स्नान, दान और श्राद्धादि करनेसे सब गोत्रीय एक वैदिक मृपि । यह ऋग्वेदके चौथे मण्डलके तरफ पापों का विनाश होता है । १३ महापुराणों में गन्य' अधिकांश सूक्तोंके मन्त्रद्रष्टा थे । ३ दशरथफे एक मंत्रीका तम, यामनपुराण। देवीभागवतफे मतसे इस पुराणको श्लोकसंख्श दश हजार है। वामदेय--एक व्यवहारविद् । मानिने परिशेषायएडमें भगवान् विष्णुफे अवतार वामनदेयकी लीला इस इनका उल्लेख किया है। २एक फयि। ३ मुनिमत पुराण में वर्णित है। पुराण शन्द देखो। मणिमाला नामक एक दोधितिके प्रणेता । ४ वर्ष __१४ विष्णुका पञ्चम गवतार | अब धर्मको हानि और मारी नामक ज्योतिशास्त्रके रचयिना। ५हठयोग गधर्म की वृद्धि होती है, तय भगवान धरणी र यतार यिक प्रणेता। लेते हैं। दैत्यपति वलिने स्वर्ग-राज्यका अधिकार कर देय- वामदेय उपाध्याय-१ माहिकरसंक्षेप और गूदार्थदीपिका ताभों को निर्वासन दण्ड दिया था। इस पलिको दमन फे रचयिता। लाला ठपकुर नामक अपने प्रतिपालक करनेके लिये भगवान विष्णुने यामनरूप धारण किया को प्रार्थनाके अनुमार इन्दोंने गाहिकसंक्षेप लिखा। । था। भागया में लिखा है कि राजा परीक्षितने शुकदेवसे २ श्राद्धचिन्तामणिदीपिका गौर स्मृतिदीपिकाके पूछा,-'हे ब्राह्मण! भगवान विष्णु किस कारण पामग रचयिता। रूपम अयतोर्ण हुए और दोन मनुष्यको तरह भलिफे पास शामदेवमट्टाचार्य-स्मृतिचन्द्रिका प्रणेता। तीन पैर भूमिको याचना करः और उसे प्राप्त करके भी पाटेयाम तिा- मित तन्तप्रवाश्रीरामने इसकी। उन्होंने किस कारणसे उसको वांधाधा मय का लिम्वी है। इस प्रन्यो बटुम्भैरवपूजापद्धति और बातोफो पूर्णरूपसे समझाने की हा कोजिये। मुझे गायत्रीरलपका विशेष वर्णन है। इन सब पातीक जानने के लिये बड़ा कौतुहल हो रहा है। यामदेयगुप्त ( स० पु.) शैवमतभेद । (सब दर्शनराहिता) पोंकि पूर्ण ग्रह परमेश्वरका मिक्षा मांगना तथा निदॉप घामदेयो (म स्रो०) १ सावितो। २ दुर्गा । पलिको यांधना कोई महत घटना नहीं है। वर माश्चर्य. पामदेश्य ( स० वि०) १ यामदेवमभ्यन्धीय । (पु.)२ जनक है। माग विशेषरुपमे इस. प्रश्न का उत्तर देकर ऋग्येश्के १०।१२७ सूक्तफे मग्नद्रा पोमुन गित्पुरुष। मेरे सन्देहको दूर पीजिये। श्रीशुदयमाने राजा . ३ यादुपथके पूर्व पुरुर । ४ मृग्यम पिनुपुरषभेद। परोशिम्फे इस प्रश्न उत्तर कदा था,-देय. ५ राजपुत्रभेद । (भारत समार०.)६ एक प्रन्यता । राज बलि इन्द्रको जीत कर पर्गक पदो गये। पेयता ७शालालदीपस्य पर्वतमेद। (भागः ॥२०१०) ८ . , अनाथको ताद बलि द्वारा यितादित हो कर चारों भोर भेद । १ साममेया। भागने लगे। इदमाता अदितिको इस बातसे बड़ा ना