पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/९

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मुद्रेमुज-मुद्भवटक मुद् ज् (सं० पु०) मुद्गं भुङ्क्ते इति भुंज-किप् । घोटक, । ' ५मत्स्यविशेष, एक प्रकारकी मछली । घोड़ा। | मुद्गरक (सं० पु० ) मुद्गरमिवेति प्रतिकृतौ कन् । कर्माद मुद्गभोजिन् (सं० पु० ) मुद्गं भुङक्ते भुज-णिनि । अश्व, एक प्रकारका बाँस । घोड़ा। मुद्गमोदक.(सं० पु० ) मुद्गेन साधितो मोदकः । मोदक- मुद्गरपिण्डक (सं० पु० ) नागभेद। मुद्रपर्णक (सं० पु०) नागभेद । विशेष, मोतीचूर। इसके बनानेका तरीका भावप्रकाश- | मुंगल (सं० क्लो०) मुद्गे लातोति ला-क। १ रोहिष .. . में इस प्रकार लिखा है,-मूगकी धूमसी (मूगको जलमें नामक तृण। (पु०) २ हर्षश्व राजपुत्र । ( विष्णुपु० ४। भिगो कर उसकी भूसी निकाल लो। पीछे उसे धूपमें | १६ 4०) ३ गोत्रकारक मुनिका नाम । इनकी स्त्रीका नाम सुखा कर जाते में पीसो, इसीका नाम धूमसी है ) को इन्द्रसेना था। ४ उपनिषभेद । साफ जलमें घोलो, पीछे एक कड़ाहमें धो डाल कर मुद्गल-निजाम-राज्यका एक नगर और दुर्ग। यह अक्षा० आंच पर चढ़ावो । घी जव खौलने लगे, तव एक झंझरी १६०३४ उ० तथा देशा० ७६ ३६४ पृ०के हो कर उस घोले हुए मूगके आटेको थोड़ा थोड़ा करके मध्य अवस्थित है। दुर्गके उत्तर समतल भूमि पर कड़ाहमें गिराते जाओ। अच्छी तरह भुन जाने पर उसे नगर और दक्षिणमें पर्वतके ऊपर दुर्ग वसा हुआ है। चीनीको चाशनी में डाल कर लड्डू बनाओ। इसी लड़ दुर्गमें १२४६ ५० ई०में यादव वंशीय एक शासनकर्ता- का नाम मोतीचूर वा मुद्गमोदक है। इसका गुण- । रहते थे। पीछे वह मोरङ्गालके राजाके अधिकारभुक्क लघु, धारक, त्रिदोषनाशक, मधुररस, शीतवीर्य रुचि-। हुआ। १४वीं संदीमें मुसलमानोंने उस पर दखलं जनक, चक्षु का हितकर, ज्वरनाशक, बलकारक और । जमाया . जिस समय दिल्ली के बादशाह महम्मद तुग- तृप्तिकर माना गया है। (भावप्र०) लकके अधीनस्थ दाक्षिणात्यके शासन कर्ताओंने विद्रोही मदर (सं० क्ली०) मुदं आनन्दं गिरति विकिरतीति ग हो कर कुलवर्जमें बामनी राज्यको प्रतिष्ठा की, उस समय अच् । १ मल्लिकाभेद, वेला। (पु०) २ कार, मुद्गल नये राज्यका प्रधान प्रान्तदुर्ग था ।। बाहानीवंश एक प्रकारका वाँस । पर्याय-गन्धसार, सप्तपत्र, के शासनकालमें उक्त दुर्गकी ख्याति सर्वत्र फैल गई; अतिगन्ध, गन्धरान्ध, वटप्रिय, जनेष्ट, मृगेष्ठ। इसका | थी। राज्यके ध्वंसप्राप्त होनेसे वह दुर्ग विजापुर- गुण-मधुर, शीतल, सुरभि, सौख्यदायक, मधुपा- राजाओंके हाथ लगा। अनन्तर विजापुर राज्यके अर्ध- मन्दकारक, कामवद्धक, पित्तनाशक । (राजनि०) सान पर औरङ्गजेबने उसे देखल किया। काठका बना हुआ एक प्रकारका गावदुमा दंड। पहले गोआ नगरीसे सेएट फ्रान्सिस जेभियर नामक यह मूठकी ओर बहुत भारी होता है। इसे हाथमे ले कर एक ईसाई-याजकने मुद्गलमें आ कर एक रोमक कैथ- हिलाते हुए पहलवान लोग कई तरहकी कसरते करते | लिक उपनिवेश बसाया। विजापुरके राजाओंने ईसा. हैं। इससे कलाइयों और वाहीमें बल आता है। इस- इयोंको उक्त स्थान निष्कर दे दिया था। आज भी वह की प्रायः जोड़ी होती है जो दोनों हाथों में ले कर वारी । उपनिवेश मौजूद है। बारीसे पीठके पीछेसे घुमाते हुए सामने ला करतानी मुद्गलानी (सं० स्त्री ) सेनापतिविशेष । जाती है। इसे मुगदर भी कहते है। ४ लोपादिभेद, मुद्गवरक (सं० पु० ) मुद्गेन कृतः वटकः । मूंगका वटक | या वड़ा। इसके बनानेका तरीका इस प्रकार है- प्राचीनकालका एक अस्त्र जो दंडके आकारका होता था और जिसके सिर पर बड़ा भारी गोल पत्थर लगा होता मुगको दालको कुछ समयके लिये पानीमें छोड़ दे। बाद उसके उसे पानीसे निकाल अच्छी तरह पीसे। अनन्तर • था। पर्याय-द्रुघन, घन, प्रघण। "गदापटिशधारिण्या शूलमुद्रहस्तया । घड़े को तेलमें धीमी आंचसे पका कर उतार ले। इसका प्रस्थिती सहधर्मिपया महत्या दैत्यसेनया ॥" गुण हितकर, रुचिकारक, लघु तथा मूगको दालको .. (भारत २२१११३) । तरह गुणकारक माना गया है। (भावम०.) . .