पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/८२

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७६ मुद्रायन्त्र भारतके मुख्य नगर कलकत्ता तथा बहुजनाकीर्ण मद्रास तय्यार कर कार्य चला रहे हैं। सिवा इसके कालि- नगरी तथा संस्कृत विद्याके भाकर श्रीकाशी धाममें / दास कर्मकार वंगला अक्षरके लाङ्ग प्राइमर ( Long भी इस तरहके आदरके साथ संस्कृत ग्रन्थोंका प्रकाशन | primr) और विभियार ( Brirear ) और प्रेट पण्टिक नहीं देखा जाता। तथा अंगरेजी, उर्दू, हिब्रु आदि सांचेके सब प्रकारके . सन् १८७० ई०में आगरेसे प्रकाशित एक हिन्दी अक्षर और तारकनाथसिंह अंग्रेजी Sanserif सांचे संवाद पत्नसे मालूम होता है, कि भारतवर्ष, सिंहल | में बंगला डवल ग्रेट ढाल रहे हैं। . और ब्रह्मदेशमें २४ मिश्नरियां थी। इनके तत्वावधानमें इस समय वंगलामें निम्नलिखित सांचेके अक्षर. ढाले ३४१० छापाखाने चलते थे और यह कोई ३१ भाषाओं जो रहे हैं। वडेसे छोटे अक्षरोंके नाम-सिक्स लाइन में पुस्तिका छपा कर वहांके अधिवासियोंमें शिक्षा पाइका, फोर लाइन, थो लाइन पाइका, डवल प्रेट, टु -प्रचार करनेमें यत्नवान हुए थे। एशिया खण्डके समु- लाइन पाइका, ग्रेट, मेटपण्टिक, इंग्लिश, पाइका, स्माल

न्नत जापान द्वीपकी राजधानी टोकियो और नागा- पाइका, लाङ्ग प्राइभर, धर्जेस और हिन्दी में आज कल कई

साको नगरमें मुद्रायन्त्रको समधिक उन्नति हुई है। सांचेके अक्षर ढाले जाते हैं। उनके नाम इस तरह है- साधारणतः 'होराकणा', 'कटाकणा' और चीनी अक्षरों में सिक्स लाइन पाइका, फोर लाइन पाइका, टु लाइन जापानो वर्णमाला बनी हुई है। इन्होंने इस समय अंग्रेजो पाइका, ग्रेट प्राइमर, पाइका, लोंग प्राइमर । अभी वर्जेस अक्षरके अनुकरणसे सव प्रकारके सांचोंमें अक्षरोंको और विभियर नहीं है । स्माल पाइका अल्प मात्रामें ढाल दिया है। ध्यवहत होता है। अगरेजोके अनुरूप देवनागरी । हिन्दो ) आदि फिर इन टाइपोंके केश भी कई हैं। कलकतिया अक्षरोंके जिस तरह विभिन्न अक्षर तय्यार हुए हैं, केश, वम्यैया केश, और अव नया इलाहावादी केश हो बंगला अक्षरों के भी प्राय वैसे ही कई आकारके इस गया है . फलकतिया केश कलकत्तेके टाइप फाण्डरियों- समय ढाले जा रहे हैं। वङ्गाक्षरके लिये हम यथार्थतः ! में तय्यार होता है। वम्बैया कोशके तय्यार करनेवाली श्रीरामपुरके पश्चानन कर्मकारके मृणो है । क्योंकि, वम्बई गिरगांवको गुजरातो टाइप फाउण्डरी है। इसके उन्होंने हो पहले मुखपात्र हो कर विलकिन्स साहबके यहांसे बहुत ही सुन्दर टाइप ढाले जा रहे हैं । इन टाइपों यत्नसे वङ्गाक्षरको प्रतिलिपिके उद्धारार्थ काष्ठफलक ' र जनता मुग्ध-सी हो रही है। किन्तु अव नया एक खोदा था। और केश निकल आया जो इलाहाबादी कहलाता है। .. श्रीरामपुरमें कागजको कल और मुद्रायन्त्र स्थापन · लांगोंकी दृष्टि अब इसी केशकी ओर झुक रही है। कर 'एड माफ इण्डिया" और "समाचार दर्पण" : छापनेकी प्रथा। . . ... . प्रकाशित होनेके समय डाक्तर मासमानने मनोहर कर्म पहले हो लिख आये हैं, कि विद्याशिक्षाको उन्नति कारसे पहले किसी वृक्षकी छालमें अक्षर कटवा कर करनेके लिये मुद्रायन्त्र या छापाखानेकी उत्पत्ति • परीक्षा को थो . पीछे उनके अभिमतसे इस्पातके डाइस हुई। पहले चीनवासी, इसके बाद जर्मनी आदि.यूरोप- बना कर सीसके अक्षर ढालने शुरु हुए | मनोहरके वासो और इसके बाद अमेरिकावाले और भारत आदि पुत्र कृष्णचन्द्र उत्तम सांचेके डाइस तय्यार कर बंगलादेशोंके अधिवासी इस प्रथाके साहाय्यसे अपनी अपनी पञ्जिका (पञ्चाङ्ग) पुस्तक और चित्र छापने लगे। उन्नति करने लगे। उस समय काष्ठादि पर खोदित इस वंशके दूसरे कारीगर अधर चन्द्र कर्मकारके कार्याफलकसे किस तरह लोग प्रतिलिपिका उद्धार करते लय ( Type laundery )में ढले वर्जेस रुमाल पाइका थे, इसका पूरा पता नहीं लगता | जितना मालूम हुआ और इंगलिस सांचेके अक्षर सर्वाग सुन्दर होते हैं।। है, उससे इतना ही समझमें आता है, कि पहले खुद कितने ही मुद्रक उक्त साचोंके Electro matrix फलक पर स्याही दे कर उस पर भिगा हुआ कागज रख