पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/८१

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७८ मुंद्रायन्त्र ई० में हल्ली नगरके मुद्रित Arndt's True christianity , ( First fount of Bengali types) तय्यार कर अन्यों उक्त अक्षरोंका नमूना है। पोछे भारतवर्षमें दिया । उसने अपने वनाये प्रत्येक अक्षरका दाम अक्षर ढलाईकी व्यवस्था हुई और अपेक्षाकृत क्षद्र | सवा रुपया लिया था। सम्मवतः यह अक्षर काष्ठके अक्षरोंका प्रचलन हुआ था। टुकड़ों पर खुदे हुए थे। भारतकी तरह सिंहलद्वीपमें भी मुद्रायन्त्रका प्रभाव, सन् १८१५ ई० में इष्टइण्डिया कम्पनीके मुदायन्त्रमें फैला । सन् १७६१ ई० मद्रास-सरकारने पाण्डोचेरीके। वंगला भापाका दूसरा ग्रन्थ प्रकाशित हुआ । इस समय भेपारी मिशनरियोंको मुद्रायन्त्र खोलनेको आज्ञा उक्त प्रेससे और एक संट ( Set ) नये और उत्कृष्ट प्रदान की । अमेरिकन मिशन प्रेसके मालिक मिष्टर , अक्षरों में मिष्टर फटार कृत लाई फर्नवालिसके प्रवन्धसे पो, आर हाएटने विशेष परिश्रम के साथ तामिल वर्ण- १७६३ ई०में राजविधिका ( Regulations of 1793) मालाको परिणत सम्पादन को थी । वे अमेरिकासे निमि- बंगला अनुवाद मुद्रित हुआ । सन् १८०३ ई० में यर सांचेके ढले तामिल अक्षर भारतमें ले आये। श्रीरामपुरके मिशनरो दलने देवनागरो अक्षर तय्यार __सन् १८५३ ई०में १५वीं सितम्बरको भारतके बड़े किया । यहो सर्व प्रथम हिन्दीकी लिपि भाषाके लाट सर चार्लस् मेटाफ द्वारा मुद्रायन्त्रको व्यवहार- अक्षर तय्यार हुए । सन् १८१४ ई०की १३वीं फरवरोको निषेध-प्रथा दूर हो जाने पर यहां के अधिवासियोंने मुद्रा. उन्होंने वक्षरमें एक मासिक पत्रको सृष्टि को । उसका यन्त्र प्रतिष्ठित करना भारम्भ किया। नाम हुआ-'दिग्दर्शन' । इसको प्रथम संख्या में अमेरिका सन् १८६३ ई०में मद्रास नगरमें देशो लोगों द्वारा आविष्कार, भारतका भौगोलिक विवरण भारतीय वस्तु- परिचालित १० मुद्रायन्त्र ( छापाखानं ) थे । उस ओंका इतिहास, मिष्टर स्याड लियारके डवलिनसे होलि- समय यहां लोग काष्ठ निम्मित मुद्रांयन्त्रका व्यवहार हेड तक आकाश भ्रमण, नदिया-राज कृष्णचन्द्ररायको करते थे। सन् १८७२ ई०मे मद्रासके देशी चार मुद्रा- संक्षिप्त जीवनी और स्थानीय विवरण समूह प्रबन्धा- यन्त्रों में लोहे के वने यन्त्रादि देखे गये थे। उस समय कारमें मुद्रित हुए थे। इसके बाद प्राच्य भाषाका सर्व प्रथम ( Hot-Press ) आदिको व्यवहार होता था। मद्रासके वङ्गभापामे साप्ताहिक समाचार पत्र 'समाचार दर्पण' इसी देशी छापानानोंकी छगो फितावों को सुन्दरता देख कर वर्षको ३१ची तारीखको लोगोंके हाथ आया । मिश्नरी यूरोपीयोंने बहुत प्रशंसा की घो।। प्रधान ज्ञान क्लार्क मासमान इसका सम्पादन करने लगे। सन् १७७८ ई०में हुगलीके मुद्रायन्त्रमें सबसे पहले इस समय कलकत्तेमें एक स्वदेशी 'तिमिर नाशक' नामसे एक व्याकरण छपा । इसी समयसे वङ्ग भापाकी' और एक मासिक पत्र निकला। हिन्दू धर्मकी गतिसे पुस्तके प्रकाशित होने लगों। यह व्याकरण ही वडालमें , साधारण लोगोंको आस्थारक्षा करना ही इस पत्रका सबसे पहले वङ्ग भापा छपा था। नाथनियल ब्रेसी : मुख्य उदेश्य था। सन् १८४१ ई०में समाचार दर्पणका हलहेड (Nathanial Brasse allhed )-ने बहुत प्रकाशन वन्द हुआ । भारतके बड़े लाट माविस परिश्रमसे इस वंगला व्याकरणको संग्रह कर और आफ हेटिङ्गस अपने हाथसे पत्र लिख पत्रके सम्पादक- वङ्गीय सेनादलके अध्यक्ष सुयोग्य और सुपरिचित का अभिनन्दन किया था। संस्कृताध्यापक लेफ्टिनाएट सी विलकिन्स (पीछे सर सन् १७९२ ई०में वम्बई नगरमें (मुदायन्त्र ) छापा चार्लस विलकिन्स ) ने अपने हाथसे अक्षरमाला खानेको प्रतिष्ठा हुई । तबसे इस २०वों शताब्दीके तय्यार की। महामति विसकिन्सने पञ्चानन नामके प्रारम्भ तक इस मुद्रायन्त्रका व्यवसाय चरम सीमाको एक कर्मकारको इस विद्या ( अक्षर खोदाई )को शिक्षा पहुच गया है। यहाँका उन्नतिकाम मुद्रक और प्रका- दी। उस मनुष्यने गङ्गाके किनारेके श्रीरामपुर नगरके शकोंके यत्नसे देवनागरो अक्षरों में संस्कृत शास्त्र ग्रन्थ वापरिष्ट शिनरी सम्प्रदायको एक साट वंगला अक्षर | बड़ी उत्तमतासे प्रकाशित हो कर प्रचारित हो रहे हैं।