पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/८

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मंदिता-मुद्रपर्णी लक्षणं इस प्रकार लिखा है,-नायिका नायकको वाई । मुद्ग (सं० पु० ) मोदते अनेन इति मुद् ( मुदिनोर्ग गगौ ! ओर लेट कर उसकी दोनों जांघोंके बीचमें जो अपना उण २११७) १ पक्षिविशेष । पर्याय-जलवायस । वायां पैर रखती है उसीको मुदित कहते हैं। (हेम ) २ शमी धान्यभेद, मूग। संस्कृत पर्याय-सूप- मुंदिता (सं० स्त्री० ) मोदते इति मुद्-सर्वधातुभ्य इन् । श्रेष्ठ, वर्णाहें, रसोत्तम, भुक्तिप्रद, हयानन्द, सुफल, वाजि- संज्ञापूर्वकविधेरनित्यत्वाद्गुणाभावः, मुदिः तस्य भावः भोजन । तल-टाप्। १ हर्ष, आनन्द । २ परकीयाके अन्तर्गत एक यह अन्न भादोंमे प्रायः साँवा आदि और अन्नोंके प्रकारको नायिका जो पर-पुरुष प्रीति सम्वन्धी कामना- साथ बोई जाती है और अगहनमें कटती है। इसके को आकस्मिक प्राप्तिसे प्रसन्न होती है। ३ योगशास्त्रमें , पौधेको टहनियां लताके रूपमें इधर उधर फैली होती समाधि-योग्य संस्कार उत्पन्न करनेवाला एक परिकर्म। हैं। एक एक सीके सेमको तरह तीन तीन पत्तियां इसका अभिप्राय है, पुण्यात्माओंको देख कर हर्ष उत्पन्न होती हैं। फूल नीले और बैंगनी होते हैं । फलियां करना। ये परिकम चार कहे गये हैं-मैत्री, करुणा, ढाई तीन अंगुलकी पतली होती हैं और गुच्छोंमें लगती मुदिता और उपेक्षा। । हैं। फलियोंके भीतर ५-६ लवे गोल दाने होते हैं। मुदिवेदु-मान्द्राजप्रदेशके कड़प जिलान्तर्गत मदनपली मुद्गके लिये वलुई मट्टी और थोड़ी वर्षाको जरूरत है। ___ इसके कई भेद हैं, हरा, काला, पीला। हरा या पोला तालुकका एक नगर। यह अक्षा० १४१३०उ० तथा देशा० ७६४४१०“पू०के मध्य अवस्थित है। मुद्ग अच्छा होता और सोनामूग कहलाता है। इसका मुदिर (सं० पु० ) मोदन्ते अनेन प्रजा इति मुद्-( इदिमदि- गुण रुक्ष, लघु, धारक, कफन, पित्तनाशक, शीतवीर्य, कुछ वायुवर्द्धक, चक्षुका हितकर और ज्वरनाशक माना मुदीति । उण १३५२) इति किरच । १ मेघ, बादल । गया है। वनमूगके भी प्रायः यही गुण हैं। अंनि- २ कामुक, वह जिसे कामवासना बहुत अधिक हो। ३ संहिताके मतसे इसका गुण-शीतल, कपाय, मधुर, भेक, मेढ़क। लघु, पित्तनाशक, रक्तशोधक और अतिशय रमणीय। . मुंदिरफल (सं० पु०) विकण्टकवृक्ष, गोखरू । "प्रधाना हरितास्तत्र वन्य मुद्रास्तु मुद्रवत् । - मुंदी (सं० स्त्री०) १ चन्द्र-किरण, कौमुदी । २ हख गम्भारी कृष्णमुद्गा महामुद्रा गौरा हरितपीतकाः । वृक्ष, छोटी गंभारीका पड़े। श्वेता रक्ताम निर्दिष्ठा लघवः पूर्व पूर्ववत् ॥" ( राजत०). मुद्की-पञ्जावके फिरोजपुर जिलेका एक नगर। यह मुद्गगिरि ( सं० पु० ) मुङ्गरे और उसके आसपासके . अक्षा० ३०४७ उ० तथा देशा० ७४' ५५ १५” पू० . प्रान्तका प्राचीन नाम। मुङ्गर देखो। फिरोजपुरसे कर्णाल जानेके रास्ते पर अवस्थित है। मुद्दला (सं० स्त्री० ) मुद्गपणी, धनमूग। यहां शतगु नदीसे १३ कोस दूर सन् १८३५ ई०की १९वीं : मुद्रपर्णी (सं० स्त्रो०) मुद्रस्येव पर्णान्यायाः मुद्गपर्ण दिसम्वरको प्रसिद्ध प्रथम सिख-युद्ध हुआ था । वह जातौ डोष । वनमुद्ग, वनमूग। पर्याय-काकमुद्रा, युद्ध अङ्गरेज और सिख सेनाके बीच हुआ था। इसमें सहा, क्षुद्रसहा, शिम्बी, मार्जारगन्धिका, वनजा, रिङ्गिणी, अंगरेजोंको बहुत-सी सेना मारी गई थी। सिखोंने : हखा, सूर्पपर्णी, कुरङ्गिका, कोशिला, वनोद्भवा, भपने असाधारण युद्धनैपुण्य और विक्रमका परिचय | वनमुद्गा, आरण्यम द्गा, वन्या । गुंण-शीतल, कास, दिया था , अन्तमें सिख पराजित हुए और उनके १७, वातरक्त, क्षय, पित्तदाह-ज्वरनाशक, चक्षु का हितकर, कमान अगरेजोंके हाथ लगे। अगरेज सेना से जिनकी शुक्रवृद्धिकारक । (राजनि०) . . . मृत्य लडाईमे हुई थी उनके स्मरणार्थ एक एक स्मृति- भावप्रकाशके मतसे गुण-तिक्त. स्वाट. शक्रवाई क. स्तम्भ बनाया गया है। यहां सराय और सुन्दर प्रस्तर क्षय, शोथनाशक; लघु, -ग्रहणो, 'अर्श और अतिसार घेष्टित पुष्करिणी है। सिखयुद्ध देखो। | रोगमें हितकर । मार्जारंगन्ध भी इसका एक पर्याय है। Vol, XVIII. 2