पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७९

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मुद्रायन्त्र 'शिक्षा लाभ करने में अक्षम हैं। इस तरह वाकशक्ति- भी संगठित हुई । सामयिक इतिहासौमें उसका जाज्वल्य हीन और अन्धे वालकोंके शिक्षा दानके सम्बन्धमें फ्रान्स प्रमाण मौजूद है। भाव भाषामे व्यक्त करनेमें भाषण- देशवासी Valentin Hauy ने पेरिस नगरमें अन्धाश्रम | कर्ताको कभी कभी विराम लेना पड़ता है। इसीलिये स्थापित किया था। उनकी वर्णमालाके परिचय और अक्षरोंको ढलाईकी प्रथाके साथ-साथ उसके अलग- शिक्षा सम्बन्धमें सविधाजनक एक प्रथाका उभाचन | अलग करनेको आवश्यकता हुई। इसकी पति होने के कर वर्णमाला मुद्रण (Printing for the blind) में यत्न | वाद क्रमसे कमा, सेमिकोलन, कोलन, फुलप्टाप, एड- चान हुए। उन्होंने पहले किसी एक विशेष पदार्थ द्वारा मिरेशन, इन्द्रोगेशन पेरेन्थिसिस आदि विराम चिह्नोंका कागज (A prepared paper ) तय्यार कर लिया। आविष्कार हुआ। इसके सिचा शब्द या पद्यके प्रथम पीछे वे एक टुकड़े कागजमें वर्णमालाओं को बड़े अक्षरोंकी सुन्दरताके लिये एक तरहका सुन्दर टाइप तैयार बड़े टेटे अक्षरों में ( Large script churucter ) लिख . हुआ। Initials या ornaments ओर flowers आदि व प्रस्तुत कागजके टुकड़े पर उसकी नकल उतारनेके : चित्रमय सुन्दर सुन्दर अक्षर तैयार हुए थे। सन् १४६२ ई०में लिये दवात द्वारा 'मस्क' करते रहे। क्रमशः उस कागज । इन सब चिन-अक्षरोंका अधिक प्रचलन देखा जाता है । पर स्याहीका दाग पड़ कर उसके एक पृष्ठमें उन्नत १५वीं शताब्दोमें सभ्य जगत्में शिक्षा विस्तारके अक्षर परिस्फुट हो उठा। उस समय अन्धे वालक साहचर्यके कारण मुद्रायन्त्रका उद्भव हुआ था। वालिकाये उस पर हाथ फेर कर वर्णमालाका अभ्यास यूरोपके एक राज्यसे दूसरे राज्यमें, नगरोंसे ग्रामोंमें मुद्रा करनेमें समर्थ होते थे। Hasy के छात्र इस प्रथाका | यन्त्र या छापाखानेको वृद्धि हुई। इससे पुस्तकोंकी अनुकरण करके केवल पाठ्य ही समाप्त करनेका अभ्यास प्रचारवृद्धि अत्यधिक बढ़ गई। उक्त शताब्दीमें पुनः न किया, बल्कि उन्होंने अपने अभ्यासके बलसे स्व उपयोगी गालके एक वणिकसमाजने व्यवसाय करनेके लिये अक्षर-प्रस्तुत करनेको विद्या भी तीखी थी। इससे भो , भारतभूमिमें पदार्पण किया। १६वीं शताब्दी के मध्य शान्त न हो उन्होंने अपने परिश्रम-फल और मुद्रायन्त्रके। समयमें गोवा नगरके जेसुइट ( Jesuits ) सम्प्रदायने निदर्शन स्वरूप १७८७ ईमें अन्धोपयोगी इस तरहकी भारतवासियोंको छापाखानेके रहस्यों को दिखलाया। कुछ वर्णमालामें अपने विद्यालयका कार्य विवरण | किन्तु उस समय उन्होंने केवल रोमन अक्षरों में छापाखाने- मुद्रित किया था। सन् १७६१ ई० में लिवरपुलमें अन्ध- का काम आरम्भ किया था। १६०० ई०मे फादर प्रभाव विद्यालय प्रतिष्ठित हुआ सही, किन्तु वहां उस समय (टीवेन्स नामक एक अङ्ग्रेज)) कोंकणो व्याकरण अक्षरोंमें ( Raised character ) पुस्तक मुद्रित नहीं हुई और पुराने रोमन अक्षरों में अत्यन्त निपुणताके साथ थो। सन् १८२७ ई० पहिनवरा के अन्धाश्रमके अध्यक्ष रूपान्तरित कर विशेष यशके भागी हो गये हैं। वे गल साहवने कोणवाले अक्षरों ( Angular types)| अक्षर पुर्तगालो अक्षरों के उदाहरणकी तरह सन्निवेशित में सेण्ट जानकी अभिव्यक्ति मुद्रित की। इसके बाद हुआ है। अब भी कोंकण देशके रोमन कैथलिक आदर ग्लासगो अन्धाश्रमके धनरक्षक अलएन साहवने रोमन के साथ उस ग्रंथका पाठ किया करते है। अक्षर माला कैपिटल अक्षरोंको प्रचलित किया। इसके १७वीं शताब्दीमें जेसुइट दल गोया नगरके सेएट- वाद प्रसिद्ध क्षिर ढलाई करनेवाले ( Type-founder Dr पाल विद्यालयमें और अपनी आवास भूमि राकोल प्राम- fry ) ने उक्त प्रथाका संस्कार कर छोटे अक्षर ( Lourer मे दो छापाखानोंको प्रतिष्ठित कर अपने धर्म प्रचार- case letters) को कौशलके साथ प्रचलित कर सन कार्यके लिये पुस्तकोंको प्रकाशित करने लगे। उन्होंने १८३७ ई०में एडिनबराको सोसाइटी आफ आर्टस्से | शताब्द भरमें दक्षिण भारतके लोगोंमें विद्याका बहुत । प्रचार किया। किन्तु उक्त शताब्दीके अन्त समयमें पारितोपिक प्राप्त किया था। मुद्रायन्त्र के विकासके साथ साथ भाषाकी परिपाटो । गोवा नगरके मिशनरी सम्प्रदायके खष्टमन्दिरके प्रधान