पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७४९

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७४६ योगी कणिपा, रीहार, अघोरपन्थी, भत्तु हरि और शाङ्गहर । बारी करनेवाले योगी, सूत रंगानेवाले रंगरेज योगी, नामक कुछ श्रेणीविभाग हैं। किसी किसी जिलेमें | कम्बल बनानेवाले कम्वुलेयोगो और गलेका अलङ्कार •कुलीन, मध्यस्थ और वङ्गाल नामक तीन खतन्त्र सामा• तथा खिलौना बनानेवाले मणिहारो योगी समाजमे नीचे जिक मर्यादागत श्रेणीविभाग देखे जाते हैं। किसी किसी गिने जाते हैं। प्रान्तमें रघु, माधव, निमाई और यागमल ये चार कुलीन बङ्गालके पश्चिम सीमान्तवासी धर्मधरे योगी धर्मः समझे जाते है। इनके मध्य काश्यप, शिव. आदिनाथ, | राज, शीतलादेवी और मनसादेवीकी पूजा करते हैं तथा आलऋषि (आलम्यान? , अनादि, बटुक, वीरभैरव, कभी कभी देवीमूत्तिको हाथमें लिये दरवाजे दरवाजे गीत गोरक्ष, मत्स्येन्द्र, मीन और सत्य गोत्र प्रचलित है। ये गाते हुए भीख मांगते हैं, इसी कारण अन्यान्य योगियोंके 'लोग योगी, यूगी, वा नाथ कहलाते हैं। मध्य तांवकी अंगूठी वा ककन पहननेके सिवा और • वर्तमान समयमें कोई यूगी और युङ्गोको एक जाति किसी प्रकारका संस्कार नहीं थाकिन्तु अभी बहुतेरे के मानते हैं। उनके मतानुसार' यूगी और युङ्गो एक उच्च शिक्षा पा कर पूर्वतन योगियोंको प्रथाके अनुसार 'पर्यायवाचक हैं । अवस्थाके तारतम्यानुसार तथा सामवेदीय संस्कारतन्त्रके पक्षपाती हो भवदेवभट्ट विर- 'जातीय निकृष्ट व्यवसायके कारण युझीगण यूगी हो कर चित सामवेदीय संस्कारपद्धतिका अनुसरण करते हैं। भी समाजमें नीच हो गये हैं। किन्तु हम इसे स्वीकार ये लोग होलमें जा कर पढ़ सकते पर ब्राह्मणों के साथ नहीं करते। यूगो वा योगी दोनों एक हैं, किन्तु एक आसन पर नहीं बैठ सकते। युङ्गीगण एक निकृष्ट वर्णसङ्कर जातिमात्र है। ब्रह्म-/ . इन लोगोंके मध्य एकमात्र अनादि वा शिवगोत्र वैवर्तपुराणमें युडी जातिकी उत्पत्तिके विषयमें इस प्रकार तथा शिव, शम्भु, सरोज, भूधर, शङ्कर और आप्नुवत् लिखा है,- आदि प्रवर हैं। सगोलमें जो विवाह होता है, "गङ्गापुत्रस्य कन्याया वीयेंया वेशधारिणः। सो ये लोग कहते हैं, कि इस समय वर शिव- ___वभूव वेशधारी च पुत्रो युझी प्रकीर्तितः ॥" गोत्रीय हो रहता है, केवल कन्या काश्यपगोत्रकी हो (ब्रह्मवैवर्तपुराण) | जाती है। सभी जगह यह नियम लागू नहीं है। अर्थात् वेशधारीके औरससे गङ्गापुत्रकी कन्याके | कहीं कहीं अन्यान्य गोत्रोंके साथ आदान प्रदान होता गर्भसे जो पुत्र उत्पन हुमा वही युङ्गी कहलाया। ये है । मत्स्येन्द्र. गोरक्ष, वीरभैरव आदि गोत्र तथा कुलीन, युङ्गोगण अत्यन्त नीच जातिके हैं। इनके मध्य विधवा | मधल्य और वङ्गाल अथवा ब्राह्मण-योगी, दण्डी योगी विवाह चलता है, कितने तो हल चलाते, पालकी ढोते आदि जो सव श्रेणीविभाग देखे जाते हैं, उनके मध्य और चूनेका काम करते हैं। गोत्र वा वंशमर्यादानुसार विवाह करनेकी पद्धति प्रच- वगालके विभिन्न जिलावासी योगियोंके मध्य लित है। उच्च श्रेणीके योगी जव नीच घरमें विवाह आचार व्यवहारादिमें अनेक पृथक्ता देखी जाती है। करते तव वे हीन समझे जाते हैं। . 'दक्षिण विक्रमपुर, त्रिपुरा और नोआखाली जिलेमें - योगी लोग सामवेदीय पद्धतिका अनुसरण कर 'प्रधानतः मास्य (मासाशौच ) श्रेणीका तथा उत्तर | विवाहादि करते हैं। विवाहके समय उसीका कोई 'विक्रमपुर, प्रेसिडेन्सी और वर्तमान विभागमें दशा- आत्मीय पुरोहिताई करता है । किन्तु नोआखाली, शौच योगियोंका चास है। ये लोग आपसमें आदान त्रिपुरा और चट्टग्राम जिलेमें स्वतन्त्र ब्राह्मण पुरोहित हैं। प्रदान करते और एक दूसरेके साथ खाते पीते हैं। । दूसरी जगह इनके स्वतन्त्र पुरोहित नहीं होते। ये लोग ... जबसे थे लोग कपड़ा बिनना छोड़ कर खेती वारी जरूरत पड़ने पर द्वितीय विवाह कर सकते हैं। पर करने लगे हैं, तबसे समाजमें नोच समझे जाते हैं। इसी | विधवा विवाह नहीं करते। "प्रकार त्रिपुराके चूनां जलानेवाले, मुर्शिदाबादके खेती-1 . विवाहादि संस्कार और देवपूजादि सभी धर्मकर्म इन्हों