पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७२

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E मुंद्रायन्त्र खोकार किया है ।* उनका कहना है, कि चीनके प्रयास और आग्रह होने लगा। इसके अनुसार सुलेखक साथ यूरोपका सम्बन्ध न रहने पर भी १३वीं शताब्दीके (Caligraphers ) और चित्रकारकी (Illuminator ) अन्तमें पर्यटक मार्को पोलो ( Marco Polo के यथार्थ | आवश्यकता प्रतीत हुई। उस समय सुलिखित और प्राच्य सम्बन्धका आभास मिलता है। उन्होंने स्वदेश सुचित्रित भेलमकी पोथी धनवानकी एक सामग्री थी। लौटने पर अपने प्रिय लोगोंसे अपने प्रत्यक्ष देखे हुए। १३वीं शताब्दीके पहलेसे यूरोपमें हस्तलिखित मुद्रित चीनदेशीय कागजके रुपयेका ( Paper money | पुस्तकों को खरीद विक्री बढ़ रही थी। १४वीं शताब्दी- by stamping it with a seal corered with cinna के अन्तमें स्कूलपाठ्य और भजन सम्वन्धोय सभी bar) वृत्तान्त कहा था। उन्होंने यह भी स्वीकार किया पुस्तके, नत्थी, राजकीय सनद आदि तथा साधु पुरुषों- है, कि यह चीनकी मुद्रणप्रणालीका एक अङ्ग है। का चित्र और खेलनेके ताशको तखोर कागजों पर विशेष पालोचना कर देखा गया है, कि मार्को अङ्कित कर बेची जाती थी। पोलोके इस मुद्रणशिल्पके विवरणके प्रकाशित करनेके जब यह लेखनप्रणाली अच्छी तरहसे परिपक्क हा १०० वर्ष वाद यूरोपमें इस अल्पयाससाध्य अति | यूरोपोय जनसमाजमें विशेष रूपसे आदरित हुई थी, सामान्य मुद्राशिल्पके प्रकार विशेषको आविर्भाव हुआ जब लिपि विद्या उन्नतिकी चरम सीमा तक पहुंच चुकी था। पहले यूरोपमें विभिन्न चित्रसमन्वित खेलनेके थो, तव साधारण लोगों के आग्रहसे यूरोपमें धीरे धीरे ताश ( Playing card ) और ईसाई धर्मग्रन्थके भजन-! कागज, भेलम नामक स्वच्छचम, कपास और रेशमी का अंश एक पनाकारमें मुद्रित होने लगा। उसी समय वस्त्रों पर काष्ठफलक खोदित चित्रावलोकी मुद्रणप्रथा से पौराणिक विद्यावलीके साथ वाइविलके उपाख्यानांश (Xylography) का अंकुर पैदा हुआ था। मुद्रित हो कर नवमुकुलित मुद्राङ्कण विद्याका एक विषयमें उत्कर्ष-साधन परायण जनसाधारणके सौष्ठव सम्पादनकी समधिक चेष्ठा समन यूरोप-समाज-! यत्नसे दूसरे एक नये पथका अभ्युदय होना अवश्य- में अनुभूत हुई थी। म्भावो है, यह स्वतः सिद्ध और साधारणके लिये मान्य ___पूर्व समयमें इटली, फ्रान्स, जर्मनी आदि सुसभ्य | है। पुस्तककी लिपिके काय्यको सुन्दरतासे सम्पादन देशोंमें विश्वविद्यालय · University . और धर्मसंघ करनेके लिये और मुद्राङ्कणकी परिपाटो उपलब्धि कर (Ecclesiastical establishments)में ज्ञाननैतिक संगठन विद्वानोंको फलकमुद्रणकी आवश्यकता प्रतीत हुई । असंपूर्ण रहनेसे लिपिकर, चित्रकर, ग्रन्धरक्षक, पुस्तक- | इस तरह हस्तलेखनका सौष्टव बढ़ानेमें कमसे यूरोपमें. विक्रेता और भेलम और पार्च मेण्ट नामक चर्मपत चितमुदणका कौशल्य जागरित हो उठा और उसीके निर्माताका एकान्त अभाव हुआ था। कमसे व्यवहार विकाशस्वरूप Block-printing प्रथामें चित्राङ्कणको और धर्मशास्त्र तथा पाठ्य पुस्तकादिके रचनाप्रसङ्गमें | सुष्यवस्था हुई। ग्रन्थादिका सर्वाङ्गीण पारिपाट्य सम्पादनार्थ लोगों का १२वीं शताब्दीमें जर्मनी-देशमें पहले पहल सूती और भेलम नामक वस्त्र पर चित्रमुद्रण आरम्भ होनेका प्रमाण मिलता है। १४वीं शताब्दीके द्वितीयाद्ध में

  • "Even in Europe, however, although the

कागज पर इस तरहकी चित्रविद्याका व्यवहार देखा mode of writing was alphabetic, it was the Chinese mode of printing that was first practi- आता है। १५वो शताब्दीके प्रारम्भमें कागज पर छपी sed. Some have even supposed that the knowle- 'वाइविल' का वहुत प्रचार हुआ था । १४०० ई०में dge of the art was orginally obtained from the जर्मनी फ्लेण्डास और हालेण्डवाले भी अच्छी तरह इस । Chinese" हालको जान गये थे। (Eng. Cyclopedia, Art & sc vol, III. p. 746) | १५वों शताब्दीके अन्त तक जिस तरह प्रकरणके Vol. xVIII. 18