पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७१

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मुंद्रायन्त्र आरम्भ हुई थी। इसी समय 'सूर्य' राजवंशके प्रतिष्ठाताने जापानवासी उस समय पुस्तकमुद्रणं करनी जानते थे, स्वदेशवासियोंकी विद्योन्नतिको कामनासे बहुत धनं । इसमें सन्देह नहीं। यह पत्रिकामे लिखे 'सुरिहोने के . व्यय कर लुप्तप्राय काव्य नाटकादिका उद्धार करनेके आभाससे ही अनुमान होता है। लिये काठफलक पर कई प्राचीन प्रन्थोंको खुदवा कर लोगोंका कहना है, कि चीनने ११वीं शताब्दीके छपवाया था। यही इस समय काटकंलक लिपिका | मध्यभागमें नियत परिवर्तनयोग्य परस्पर विच्छिन्न प्रधान और पहला नमूना है। इसका कुछ विवरण | मृदक्षर ( movable types of clay )-का उद्भावन कर नहीं मिलता, कि इसके बाद इस ढंगकी और कोई | पुस्तकमुद्रणकी विशेष सुविधा को थी। इस समय पुस्तक छपी थी या नहीं। इसके बाद ई० १०चों। उसके आदर्श पर सुसभ्य यूरोपीयोंके प्रयत्नसे सीसेके शताब्दीके प्रारम्भमें हम चीनराज्यमें काष्ठफलक खोदित परस्पर विश्लिष्ट अक्षर तय्यार कर मुद्रायन्त्रको उत्कर्षता प्रन्थलिपिकी मुद्रण-परिपुष्टि और प्रचार वाहुल्य | और उपकारिता सर्वसाधारणमें विघोपित हो रहा है। देखते हैं। ___इङ्गलैण्डके प्रसिद्ध वृटिश म्युजियम नामक पुस्तका- वौद्धप्रधान जापान द्वीपमें भी ७६४ ई०को फलकलिपि | गारमें रखी मुद्रित पुस्तकोंमें १३३७ ई० में कोरिया प्रदेश में मुद्रण ( Block printing )-का अच्छा प्रमाण मिला मुद्रित एक ग्रंथका नमूना मिलता है। इसीको खण्डा- है। यह सहज ही समझमें भाता है, कि इससे पहले क्षरमें ( Jovable types ) मुद्रित प्रन्थके प्राचीनतम जापान राज्यमें मुद्राङ्गणको उन्नति के लिये चेष्टा को गई यथार्थ नमूने फहने में अत्युक्ति नहीं होती। इसके थी। सम्भवतः चीनिगोंसे हो जापानियोंने फलक-लिपि वाद कोरियावाले १५वीं शताब्दीके प्रारम्भमें मृदक्षरके मुद्रणकी विद्या सीखी थी। वदले तानमुद्रा ( तांबेका अक्षर ) का प्रचलन किया। पूर्वोक्त वर्ष 'स्युतोकू' अपनी विपन्मुक्ति कामनासे इसी शताब्दीको मुद्रित ग्रन्थावलीकी आलोचना करनेसे कोरियावासियोंको ताम्राक्षरका उद्भावक कहना होगा इसमें देवके लिये विशिष्ट पूजा करनेका मानस किया | जरा भी सन्देह नहीं। क्योंकि उस समय उन्होंने केवल उन्होंने अपने मानस व्रतके उद्योपनार्थ पूजाकार्यके लिये खिलौनोंकी तरह छोटे छोटे लकड़ोके टुकड़ों पर ताम्राक्षर द्वारा ही पुस्तकमुद्रण कार्य सम्पन्न करनेको | शिक्षा पाई थी, इसमें सन्देह नहीं । शायद मुद्राङ्कण- १० लाख वौद्ध पैगोडा निर्माण किये थे। पीछे उन्होंने | विद्याके आविष्फर्ता चोनने लकड़ोसे मिट्टो और इसके बौद्ध धर्मशास्त्र विमलनिर्वाससूत्र' से एक धारणोका | वाद ताम्राक्षरमें रूपान्तरित कर मुद्रायन्त्रका अङ्गसौव उद्धार कर काठफलक पर खुदाईका १८ इञ्च लम्बे और | परिवर्तन और परिवर्द्धन किया होगा, कुछ लोग ऐसा ३२ इञ्च चौड़े कागजके टुकड़े पर मुद्राङ्कित किया। हो लिख गये हैं। इसी समय एक बार ही १० लाख धारिणो मुद्रित हुई थीं और यथार्थ में इस समयसे ही मुदायन्त्रकी चीन या जापानियों के इस समुन्नत उपादानसे उन्नति- आवश्यकता लोगोंको जान पड़ो थी। कामो यूरोप समाजने मुद्रायन्त्रके उपकरणोंका संग्रह किया था, लोगोंकी ऐसी हो धारणा है। Britannica महारानी स्युतोकूने इन धारिणियोंको पैगोडाके शीर्ष नामक अभिधान-लेखक इस वातकी सत्यता नहीं स्थान में रख कर वहांके वौद्ध मन्दिर और संघारामों- मानते। उन्होंने लिखा है,-'From such evidence में भेज कर यथाविहित मानसिक पूजाका उपसंहार as we have it would seem that Europe is not किया था। . indebted to the Chinese or Japanese for the art ___६८७ ई०में वहांको एक पत्रिकामे वौद्ध-पुरोहित द्वारा of Blockprinting. nor for that of printing with चीनसे लाये गये एक मुद्रित । मुरि-होम्) वौद्धधर्म } movable types.' किन्तु उनके पीछेके अन्यान्य सुधी जनोंने पक्षपातरहि हो मुक्त कण्ठसे चीनको मौलिकत्व प्यास्त्रका उल्लेख है। चीनदेशमें मुद्रित होने पर भी