पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७०४

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यूप-यूसुफ भमीरी (पौलाना) इस यूपका विषय सुश्रुतमें इस प्रकार लिखा है,-, आदि )-को अठारह गुने जलमें सिद्ध करे। जव कुछ मूगका जूस कफनाशक और अग्निकर है। यह वहुत गाढ़ा हो जाय, तव उसे उतार कर छान ले, इसीका उमदा पथ्य है। मूंगका जूस अनार और दाखके साथ नाम यूष है। यह रुचिकारक होता है। यूप बनानेका वनानेसे उसे रागषोडव कहते हैं। लवण मिला हुआ दूसरा उपाय -मूग, मसूर भादिको दाल एक पल, सौंठ मसूर, मूग और कुलथीका जूस रुचिकर, लघुपाक और आधा तोला और पीपल माध तोला, इन्हें एकत्र चार दोषका अवरोधी होता है। यह कफ और पित्तका भवि- सेर जलमें पाक करे। जव चतुर्थाश वच जाय, तब उसे रोधी, वातव्याधिके लिये उपकारी तथा वायुरोगीके लिये नीचे उतार ले। यह यूप वलकारक, लघुपाक, रुचि. सुपथ्य, रुचिकर, अग्निकर, मुखप्रिय और लघु पाक कारक, कण्ठशोधक तथा कफनाशक होता है। होता है। मूगजूसविधि-दो पल और मूग चार सेर इसे पटोल और नीमका जूस कफघ्न, मेदशोधक, पित्त जलमें सिद्ध करे। जव एक सेर वच जाय, तब उसे नाशक, अग्निकर, मुखप्रिय तथा कृमि, कुष्ठ और ज्वर नीचे उतार कर हाथसे मथे, ऐसा करनेसे दाल और जल नाशक माना गया है। मूलकका जूस श्वास, कास, एकदम मिल जायगा। अव उसे छान कर एक पल प्रतिश्याय, प्रसेक, अरुचि और ज्वरनाशक तथा कफ, अनारका रस ऊपरसे डाल दे। पीछे उसमें सैन्धव, भेद णौर गलरोगमें विशेष उपकारी है। कुलधीका जूस सोंठ और धनिया, इनका मिला हुआ चूर्ण चार तोला वायुनाशक, श्वास, पीनस, कास, अर्श, गुल्म और उदा | तथा जीरा और पीपल एक तोला मिलाना होगा। यह वर्ग रोगमे हितकर होता है। अनार और आंवलेसे मुद्ग यूप अति उत्कृष्ट, अग्निदीप्तिकारक, शीतवीर्य, लघु, जो जूस तैयार किया जाता है वह मुखप्रिय, दोषका व्रण, दाह, कफ, पित्त, ज्वर और रक्तदोषनाशक है। संशमनकारी और लघुपाक होता है। मूंग और आंवले | मिलित मूग और आंवलेका जूस भेदक, शीतवीर्य, पित्त, का जूस वलकर, पित्तजनक, मूर्छा और मेदोनाशक, वायु, पिपासा, दाह, मूर्छा, भ्रम और मदरोगनाशक पित्त और वायु दमनकारी, संग्राही तथा कफ और पित्त- माना गया है। का हितकर है। जौ, वेर और कुलथीका जूस कएठशोधन- मसूरका जूस धारक, पुष्टिकारक, मधुररस और कर और वायु नाशक माना गया है। सभी प्रकारके | प्रमेहरोगनाशक है। (भावप्र०) ज्वरादि रोगमें इस प्रकार मूगादि और शमीधान्यका यूप उक्त गुणसम्पन्न हण तैयार किये हुए यूपका पथ्य देना चाहिये।। और वलवद्धक होता है। ___ हारोतके प्रथम स्थानके नवम अध्यायमें इस यूषकी यूषमात्र ही हृद्य तथा वायु और कफका हितकर विधि और गुणका विषय लिखा है। सारकौमुदीके है। जिस जसमें तैल, नमक, घी और भाल नहीं रहता। मतसे रन्धनद्रष्यको हो यप कहते हैं । "रन्धनद्रवो यूषा" उसे अकृत यूष और जिसमें रहता है उसे कृतयूप कहते (सारको०) है। दही, कांजी और फलाम्लरसके साथ जो यूष (पु०) यूपतोति यूष-क। २ ब्रह्मदारवृक्ष । बनाया जाता है वह लघु और हितकर है। संस्कृतको (शब्दरत्ना.) अपेक्षा असंस्कृत यूष लघु और हितकारी है । दही, दहो. यूसुफ-आकाएद यूसुफ नामक देवतत्त्वसम्बन्धीय एक के पोनी और अम्ल द्वारा तैयार किये गये रसको काम्व- अरवी ग्रन्थके रचयिता। अह्मदनगरमें इनका वास- लिक यूष कहते हैं। स्थान था। मांसका जस तृप्तिकर ; श्वास, कास और क्षयरोग- | यूसुफ अमीरी (मौलाना)-एक मुसलमान कषि। ये नाशक, वातघ्न, तृप्तिकारक, संघातकर तथा शुक्र, ओजः शाहरूक मिर्जाके आश्रयमें प्रतिपालित हो उनके पुत्र और वलबर्द्धक होता है । ( सुश्रुत सूत्रस्था० ४५ अ०) | वाहसनधढ़ मीर्जाकी गुणवर्णना कर एक काष्य वना भावप्रकाशमें लिखा है,-शमीधान्य (मूंग मसूर | गये. हैं । Vol. XVIII, 176