पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७०

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मुद्रीयन्त्र ६७ दूसरी चीज पर उसकी नकल उठानेको ही मुद्राण कहा उन सब प्रतिलिपियोंका उद्धार सम्भव हुआ था या जाता है। यहां लकड़ी पर खुदे चित्र या अक्षरों को भी नहीं यह अनुमान करनेकी बात है। फिर यह भी मुद्राङ्कण विद्याके अन्तर्गत ले लिया गया है। स्वीकार है, कि सुप्राचीन आर्य हिन्दुओं, वाविलन १५वीं शताब्दोके मध्य में यथार्थतः यूरोपमें अक्षर और काल्दीया वासिगण जो लकड़ीके टुकड़ों पर अक्षर मुदणका प्रचलन आरम्भ हुआ। किंतु उससे बहुत (Block) खोदनेवाली विद्याको जानते थे, इसमें कोई पहले भी अन्यान्य प्रकारसे अक्षर-मुदणकी प्रथा थी। | सन्देह नहीं। पत्थरों पर या तात्र पत्रों पर कुसी. उसको प्रमाण विलियम दी-कङ्कर और उस समयके | नामा या दानपत्र खोद रखते थे। इसको कुछ भी राजाओंके समयकी दी हुई सनदकी (Charters), प्रमाण नहीं मिलता, कि वे खोदित उक्त प्रकारके फलक- मुहरों में दिखाई देता है। उस समय लकड़ी या धातु को प्रतिलिपि प्रस्तुत करना जानते थे। यथार्थ में इन खेएड पर राजाका नाम खोद कर कागज पर छाप दी सब मुद्राङ्कण विद्याका सापेक्ष रहने पर भी उन्नति जातो थी। यह अवश्य हो स्वीकार करना होगा, कि यह विधायक नहीं हुआ। क्योंकि, शिलालिपिमें अङ्कित नामाङ्कण या आवश्यकीय लेखन उच्च नीच भावसे दक्षिण अक्षर स्वभावतः वाममुखी लेकिन मुद्रायन्त्रके व्यव- मुखी खुदाई होती थी और उसकी नकल कागज और हारोपयोगो अक्षरमाला स्वभावतः ही दक्षिण- चमड़े पर सीधी दिखाई देती थी। १२ शताब्दीकी मुखी लिखो जाती है। अतएव नकल उतारनेके लिये कई पोथियोंमें इस तरहको मुहर ( Impression by ' दक्षिणमुखो अक्षरविन्यास और उसके उच्च और निम्न means of stamps or dies) दिखाई देती है। उस , गर्भाङ्कण जिस दिन प्रतिष्ठित हुआ था, उसो दिनसे समय वारंवार आघात देनेके सिवा अन्य कोई सुविधा । मुद्रायन्त्र या छापाखानेकी उत्पत्तिकी कल्पना को जा जनक उपाय उन लोगोंको मालूम नहीं था। किन्तु इस! सकती है । शिलाफलकके ऊपर खोदित अक्षरिक लिपि- समय तांवेके पत्रों पर ( Plate ) या लकड़ी के टुकड़ों पर को उत्पति और परिपुष्टिपूर्ण इतिहास यथास्थान लिखा ( Blocks ) से वारंवार चित्र छपानेको सुविधाके लिये । जायगा। लिपितत्व देखो। Coppet plate printing, Automatic Numbering | प्राच्य और प्रतोच्य सुधोमएडली एक खरसे और Embossing machine आदि नाना यन्त्रोंका स्वीकार करता है, कि लकड़ोके टुकड़े पर आवश्यकीय आविष्कार हुआ है। मुहरके वारंवार परिवर्तन और चिनादि अथवा दाक्षिण मुखी (उल्टा) लिपि खुदाई छाप तथा पताङ्कके वाद संख्या परिवर्तन-प्रणालो चित्र- कर और भाषाके विकाशके साथ नियत पारिवर्तनीय लिपिमुद्रण ( Block printing) के भीतर होने पर अक्षरावलियोंको नकल उतारनेको प्रथा जगत्में सबसे भी इसने आक्षरिक मुद्राशिल्प ( Typography ) साह पहले केवल चीन और जापानवालोंने हो जारी की थी। चर्य लाभ किया है। क्योंकि, इन दोनों प्रथासे ही एक सुसभ्य कहलानेवाले यूरोपीय उसका विन्दुमान भी अक्षर या चित्रको वारंवार वदल कर लिया जाता है। उस समय जानते न थे। ___ बहुत प्राचीन सभ्य जगत्के सबसे पहले निललिपि सन् १७५ ई०के लगभग चीनवाले अपने बहुत और मुद्राङ्कण द्वारा उसकी नकल उतारनेकी प्रथा जारी | प्राचीन शास्त्रको और काव्य नाटकोंको पत्थर या लकड़ी हुई थी, मुद्रायन्त्रको इतिहासमें उसका सिलसिलेवार पर खोद लेते थे और विश्वविद्यालयके सम्मुख रस्त्र देते विवरण लिपिवद्ध नहीं है । प्राचीन भारत, मित्र थे। जव भावश्यकता होती तो उसकी नकल भी उतार वाविलनीय, काल्दीय, सीरिया, चीन आदि सुसभ्य लेते थे। आज भी चोनमे उस समयके शास्त्रोंकी नकलें राज्यों में शिलालिपि (1nscription) मट्टोकी लिपि (Serral. मौजूद हैं। ये सब नमूने ऐतिहासिक तत्त्वका अस्फट cotta tablets) और साङ्केत मुद्रा ( Hierogly-] प्रमाण कहा जाता है। फिर भी यथार्थमें ६ठी शताब्दीके phecs ) आदिका उद्भव हुआ था। किन्तु उस समय | आरम्भसे ही चीनदेशमें फललिपिकी मुद्रणप्रथा