पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६८९

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युधिष्ठिर-युयुधान स्कन्दके नागरखण्ड हाटकेश्वरमाहात्म्य १४५, २१५, २१६ । राजाने शीघ्र ही राज्य छोड़ कर प्रस्थान किया। काश्मीर अध्यायमें युधिष्ठिरका प्रसङ्ग लिखा है। छोड़ कर वे पहाड़ी मार्गसे चले। मार्गमें उनको बड़े प्राचीन राजवंशकी तालिका तथा किसी किसी बड़े कष्ट भोगने पड़े। रानियोंके कष्ट देख कर पक्षी शिलालिपिमें युधिष्ठिरादिका उल्लेख देखनेमें आता है। भो रोने लगे। अनन्तर युधिष्ठिरने अपने पूर्व मित्र एक राजतरङ्गिणीके मतसे कलिके ६५३ वर्ष बीतने पर कुरु- राजाका आश्रय लिया। युधिष्टिरने ३४ वर्ष तक राज्य पाण्डव अवतीर्ण हुए थे। चालुक्यराज पुलिकेशिकी | किया था। शिलालिपिमें अभी जो कल्पान्द चलता है, वही भारत- युधिष्ठिरराज (सं० पु० ) १ युधिष्ठिर । २ ककपक्षी । , 'युद्धान्द है। युधिष्ठिराब्दका विवरण संवत् शब्दमें देखो। युधीय (स'० त्रि०) योद्धा। युधिष्ठिर-काश्मीरके एक राजा। इनके पिताका नाम युधेन्य (सं० पु० ) योधनार्ह, युद्धके योग्य । नरेन्द्रादित्य था। पिताकी मृत्युके बाद युधिष्ठिर युध्म ( स० पु०) युध्यते वा युध्यते येन इति य ध ( इधि काश्मीरके सिंहासन पर बैठे । कुछ दिनों तक तो यघि धीन्धिदसिश्याधुसुभ्यो मक् । उण १११४४ ) इति मक् । इन्होंने पूर्ण प्रचलित रीतिके अनुसार राज्यशासन किया १संग्राम, युद्ध । २धनुष । ३ वाण । ४ योद्धा । परन्तु पीछेसे ये ऐश्वर्णके मदसे मत्त हो कर मनमाने | ५ अस्त्र शस्त्र । ६शरभ । काम करने लगे। उनकी सभी बातोंमें विपरीत भाव पाई | युध्य (सं० त्रिक) जिसके साथ युद्ध किया जा सके। जाने लगी। बुद्धिमानोंका आदर करना वे भूल गये। युध्यामधि (सं० पु०) युध्यामधि नामक सपत्न। अनुचरोंकी सेवा समझनेको बुद्धि उनकी जाती रही । युध्यन् (सं० त्रि०) युद्धकारो, योद्धा। सभासद् पण्डितोने जब अपने समान मूर्खाको भी | युनिवर्सिटी ( अ० स्रो०) युनिवर्सिटी देखो। सम्मानित होते देखा, तब राजसभा छोड़ कर चले | युयु (सं० पु० ) अश्व, घोड़ा। गये। मौका पा कर राजसभामें धूर्त घुस गये और युयुकखुर (सं० पु०) युनिन्दितः युक् योजनाऽस्य, तादृशः राजाको उलटा सीधा समझ कर अपना मतलव खुरो यस्य । एक प्रकारका छोटा वाद्य। निकालने लगे। राजाके इन व्यवहारोंसे अनुजीवीगण | युयुक्षमान (सं० वि०) १ मिलन या संयोग चाहनेवाला। अप्रसन्न हो गये। थोड़े ही दिनों में राज्यमें उच्छ- २ ईश्वरमें लीन होनेकी कामना रखनेवाला। . .. इलता देख कर मन्त्रिगण राजासे विरोधाचरण करने युयुजानसप्ति (स'त्रि.) य ज्यमान घोड़ा। लगे । मन्त्रियों ने मिल कर राजाको पदच्युत करनेके युयुत्सा ( स० त्रि०) योधुमिच्छा युध-सन्. आप। १ लिये षडयन्त्र रचा । आसपासके राजा भी राज्यलोभसे युद्ध करनेको इच्छा, लड़नेकी इच्छा । २ शत्रुता, मन्त्रियों के षड़यन्त्रमें शामिल हुए। इन सब बातों को विरोध । जान कर राजा युधिष्ठिर बहुत ही डर गये। पीछे युयुत्सु (सं० स्त्री०) योधुमिच्छु युध-सन सनन्तादुः। उन्होंने शान्तिस्थापनके लिये बहुत प्रयत्न किया, किन्तु १ लड़नेको इच्छा रखनेवाला, जो लड़ना चाहता. हो। वे सफल न हो सके। इस समय यदि मन्त्री चाहते | (पु)२ धृतराष्ट्रके एक पुत्रका नाम । तो अवश्य हो शान्ति स्थापित हो जाती, पर मन्त्रियों- युयुधन (स.पु०) मिथिलाराजभेद। (भागवत ६।१३।२५.). को इस वातका बड़ा भय था, कि युधिष्ठिरके अधि- कारासढ़ रह ज्ञानेसे हम लोगों पर बुरी हालत वीतेगी, युयुधान (सं० पु०) पुध्यतेऽसौ युध (मुचि युधिभ्यां सन्वञ्च । क्योंकि हम लोगोंके षड़यन्त्रकी बात उन्हें मालूम हो | उण् ।९१ ) इति आनन्, कित्कार्य सन्वत्-कार्यश्च। १ गई है। अनन्तर सेनासंग्रह करके मन्त्रियोंने राजभवन| सात्यकीका एक नाम जो कुरुक्षेत्रके युद्ध में पाण्डवोंकी. , को घेर लिया और राजासे' कहला भेजा कि आप शीघ्र | ओरसे लड़े थे। .२ इन्द्र। ३ क्षत्रिय। (नि.) ४ रही राज्य छोड़ मर यहांसे चले जाय, तभी कल्याण है। योधा।