पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६८८

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युधिष्ठिर पूरे हुए पांच महीने छः दिन हो गये। अर्जुनके कहनेसे अर्जुन पूर्वप्रतिज्ञानुसार गाण्डीव-निन्दाकारी बड़े भाई- उत्तरने तमाम घोषित कर दिया, कि हम हीने युद्ध का वध करने तैयार हो गये थे। पोछे श्रीकृष्णने वोच- . जयलाभ किया है। इसके बाद पाण्डवोंके साथ विराट- में पड़ कर अर्जुनको इस दुष्कर्मसे रोका था। महाभारत देखो। का परिचय हुआ। राजा विराटकी कन्या उत्तरा अर्जुनपुन अभिन्यु को व्याही गई। इस प्रकार ____ भारत-महासमरके वाद युधिष्ठिर शोकसे विह्वल पाञ्चालराजके समान राजा विराट भी पाएडवोंके एक हो गये। कर्णके लिये उन्हें भारी दुःख था। अनन्तर बड़े सहायक हो गये। उन्होंने धृतराष्ट्र, गान्धारी तथा दूसरे दूसरे शोकसंतप्त __ अज्ञातवास पूरा होने पर युधिष्ठिरने कृष्णको बुलाया | परिवारवर्गको सान्त्वना दी । वृद्ध धृतराष्ट्रको और राज्य लौटा देनेके लिये दुर्योधन के निकट दूत रूपमे अच्छी तरह सेवा करते हुए कहोंने कुछ समय भेजा । जब कोई फल न निकला, तव भ्रातृगण और कृष्ण- राज्यशासन किया। इसके बाद उन्होंने ससागरा की प्ररोचनासे वे युद्धके लिये तैयार हुए, किन्तु युद्ध पृथिवी पर पाण्डवीय प्रतापका अक्षण रखने के लिये करनेकी युधिष्ठिरको विलकुल इच्छा न थी। अश्वमेध यज्ञका आयोजन किया था । महाभारत युधिष्ठिरके पहले हस्तिनापुर राज्य और पीछे सिर्फ पांच के आश्वमेधिक पर्वमें इस यज्ञका विवरण दिया प्राम मांगने पर दाम्भिक दुर्योधनने साफ कह दिया था, | गया है। "विना युद्धके सूईके नोकके वरावर भो भूमि मैं नहीं इसके बाद धृतराष्ट्र गान्धारी और कुन्तीदेवो गृह- दूंगा। बस फिर क्या था, दोनों ओरसे रणभेरो बजने धर्मका परित्याग कर जंगल चली गई। इससे भी लगी, कुरुक्षेत्रमें महायु दुधका आरम्भ हो गया। इस युधिष्ठिरादि पांचो भाई शोकसे संतप्त हो गये। दो समय पाण्डवको ओरसे धृष्टद्युम्न, सात्यकि, विराट. वर्ष वाद महर्षि नारद धर्मराज युधिष्ठिरके पास आये द्र. पद, धृष्टकेतु, चेकितान, काशीराज, पुरुजित् , कुन्ती और उन्होंने यज्ञालयमे धृतराष्ट्रादिके प्राणत्यागका भोज, शैव्य, युधामन्यु, उत्तमौजा आदि तथा कौरवको वृत्तान्त कह दिया। इसके लिये शोकाभिभूत पांचो ओरसे भीष्म, द्रोण, कर्ण, अश्वत्थामा, कृप, विकर्ण, भूरि- भाइयोंने गङ्गाके किनारे तर्पण और ब्राह्मणोंको धन दान श्रवा, जयद्रथ, भगदत्त, शल्य, शाल्व आदि प्रसिद्ध योद्ध किया था। रणक्षेत्रमें उतरे थे। इस समय अर्जुनको प्रवुद्ध करने के मुसल प्रभावसे वृष्टि और अन्धकवंशका क्षय तथा लिये भगवान कृष्णने जो उपदेश दिया था, वहो भग महात्मा वासुदेवका वर्गगमनवृत्तान्त जान कर युधिष्ठिर- वद्गीता नामले प्रसिद्ध है । अर्जुन, कृष्या और गीता देखो। ने परीक्षितको राजसिंहासन पर अभिषिक्त किया और भारत-महासमरमें शल्यराजको परास्त करने । आप चारों भाइयों तथा द्रौपदीको साथ ले हिमालय के सिवा युधिष्ठिरने वारताका और कोई काम नहीं | प्रदेशमें चल दिये। कर्मके फलसे भीम, अर्जुन, नकुल, किया। भीम और अर्जुनने हो भारतय दुधमें विशेष सहदेव और द्रौपदी ये पांचो हिमालय पर मनुष्य-शरोर- प्रतिष्ठालाम को थी। कृष्णके परामर्शानुसार युधि-1 का परित्याग कर स्वर्गको सिधारे। इसके बाद युधिष्ठिर ठिरने जो 'अश्वत्थामा हत इति गज' यह वाक्य सह कर देवराज इन्द्रके आदेशानुसार स्वशरोर वर्गको चले गये द्रोणाचार्यका प्राण लिया था, वह उनकी कापुरुषता थी। थे। इस पापके लिये उन्हें नरक भी जाना पड़ा था। ____ देविका नामक पत्नोके गर्भसे युधिष्ठिरके यौधेय ____ कर्णके साथ यु दुधमें परास्त हो कर अपमान तथा / नामका एक पुत्र था। विष्णुपुराणमें उनके पुत्रका नाम विपक्षको लाञ्छनाले मर्माहत हो युधिष्ठिरने गाण्डीव- 1 देवक और स्त्रोका नाम यौधेयी कहा है। ब्रह्मपुराण २१२ धन्वा अर्जुनका तिरस्कार किया था। क्योकि वे रणमें | R०, श्रीमद्भागवत १स्क०६, १४,१५ १०, १० स्क०७१, ७५ ज्येष्ठ और मध्यमको कुछ सहायता नहीं पहुंचाते थे। : म०, देवीभागवत २ स्क०७ अ०, मार्कण्डेयपु०५०, Vol.XVIII, 172