पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६८२

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६७६ imaticalsite होनेसे उसकी अच्छी तरह चिकित्सा करावें। यदि उनके अलावा देवान अर्थात मन्त्रात्मक अनेक प्रकारके कोई सैनिक रणमें आहत हो कर अकर्मण्य हो जाय तो! अस्रोंका भी उल्लेख देखने में आता है। वैशम्पायन- भी उसकी जीविकाके लिये कुछ देना उचित है। प्रोक्त धनुर्वेदमें लिखा है, कि कलिकालमें वे सब अस्त्र "युद्ध स्वार्थे म ता ये च शत्र भिस्तत्ववन्धुप। विकृत हो गये हैं। उसका कारण यह है, कि सेवया जीविता ये च देयं तेषां हि जीवनम् ॥" कालके परिवर्तनसे मनुष्यके देह, शक्ति और (नीतिप्रका०) बुद्धिका परिवर्तन हुआ करता है । देह, युद्धक्षेत्रमें साधारणतः धनुष, इपु, भिन्दिपाल, शक्ति । शक्ति और बुद्धिके विकारवशतः लोहेकी गोली, सीसे- द्रुधण, तोमर, नलिका, लगुड़, पाश, चक्र, दन्तकएटक, को गोलो, लोहेके वने मन्त्र तथा अन्यान्य प्राणि- भुसूण्डी, परशु, गोशीर्ष, असि, कुन्त, लधिन, स्तूण, संहारक यन्त्रों द्वारा कलिकालके मनुष्य कूटयुद्ध करते प्रास. पिणाक. गढा मदर. सोर. मषल. पटिश. परिध. | हैं। ये सब कूटयुद्ध धर्मविरुद्ध है तथा इसमें कुछ भी मयूखो, शतघ्नी, दण्ड, दण्डवक्र, ऐन्द्रचक्र, शूल, ब्रह्म पौरुषता नहीं है। शिर, मोदको, वरुणपाश, वायुअल, क्रौञ्चास्त्र, हयशिय! "एतानि विकृति यान्ति युगपर्यायतो नृप। विद्या, अविद्या, गन्धर्व, नन्दन, वर्षण, शोषण, प्रखापन, । देहदाानुसारेण तथा बुद्धथनुसारतः॥ प्रशमन, सन्तापन, विलापन, नागास्त्र, गारुडान, नाराच मन्त्राणि लौहसीसानां गुलिकालेपनानि च । और जम्भण आदि सैकड़ों अन व्यवहृत होते थे। तथा चोपलयन्त्रानि कृत्रिमाययपरापयपि । महाभारतादिमें देखा जाता है, कि युद्धारम्भके । कूटयु द्धसहायानि भविष्यन्ति कलौ युगे।" पहले परस्पर धर्मनियमका प्रचार किया जाता था। (वैशम्पायनप्रोक्त धनुर्वेद) दोनों पक्ष प्रतिज्ञासूत्रमें इस प्रकार आवद्ध होते थे, हम इतिहासको आलोचना करनेसे प्राचीन रणप्रथाके लोग अधर्म वा अन्यायपूर्णक युद्ध न करेंगे, आरम्भ | अनेक तत्व मालूम होते हैं। पुराकालका शुम्भनिशुम्म किया हुआ युद्ध जव शेप हो जाय, तब फिरसे आपस-1 और रामरावणका रण, कुरु पाण्डवका भारतयुद्ध, पुराण, में प्रीति संस्थापित होगी। दिनमें युद्ध करके रात्रिमें | रामायण और महाभारतादिमें वर्णित है। भारतका सव कोई फिर आपसमें मिलेंगे और शव ताभाव दूर | वह विख्यात और सर्वजन-परिचित महायुद्ध जिस समय करेंगे। तुल्ययोग अतिक्रम, अन्यायाचरण और कोई छिड़ा था, उस समय प्राचीन समृद्ध आसोरीया, वावि- किसीकी प्रतारणा न करेगा । वाकयुद्धके समय | लोनिया आदि राज्यों में ईसाजन्मसे प्रायः ३ हजार वर्ष वाकयुद्ध और अनयुद्धके समय अस्त्रयुद्ध ही होगा। पहले रथ पर चढ़ कर युद्ध करनेकी प्रथा जारी थी। पलायित वा व्यूहच्युत व्यक्ति पर कोई प्रहार नहीं कर अभो निनिभे, खोाराद, निमरुद आदि स्थानोंको प्राचीन सकता। रथी रथीके साथ, गजारोही गजारोहीके | ध्वस्त कीत्तियोंके मध्य प्रस्तरफलक पर अडित जो.सव • साथ, अश्वारोही अश्वारोहीके साथ, पदाति पदाति- रणचित्र प्रतिफलित हैं, उन्हें देखनेसे मालूम होता है, कि • के साथ योग्यता, उत्साह, बल और अभिलाषानुसार) आसीरीय और वाविलोनीय प्राचीन मनुष्य । धनुर्वाण युद्ध करेगा, इसमें कोई प्रतिकूल वा प्रतिबंधक नहीं। हाथमें लिये रथ पर चढ़ कर युद्ध करते थे। अपेक्षाकृत हो सकता। पहले सतर्का करके पीछे प्रहार करे। आधुनिक कालमें यूरोपमें भी तीरधनुप ले कर युद्ध विश्वस्त और जयविह्वल व्यक्तिको प्रहार न करे, निरस्त्र करनेके अनेकों प्रमाण पाये जाते है। प्राचीन भारतमें . और धर्मरहित व्यक्ति पर भी प्रहार करना अनुचित है। ‘भी कमान वन्दूक आदि आग्नेय अस्त्र ले कर युद्ध करने- सारधि, भारवाही, शास्त्रनेता, दास और वाद्यकर आदि को रीति थी। यूरोपमें भी पहले काराविन (Carabine) का वध करना निषिद्ध है। नामक बन्दूकका वावहार था। उसके बाद वन्दूक और पहले जिन सव अस्त्रोंके नाम लिखे जा चुके हैं, कमानको विशेष उन्नति हो गई है।