पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६७८

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६७ । . युद्ध चमू-७२६ रथ, ७२६० हाथी, ७२६००० . घोड़े समधिक शक्तिका अवलम्बन कर युद्ध करें। इस युद्धमें | और ७२६००००० सैन्य रहनेले उसे चमू कहते हैं। , जो पराङमुख नहीं होते, वे स्वर्ग जाते हैं। ___ अनोकिनो-२१८७ रथ, २१८७० हाथी. २१८७००० "समोत्तमाधमै राजा ताहुतः पालयन् प्रजाः । घोड़े और इक्कीस करोड़ सतासी लाख पदाति रहनेसे न निवर्तत संग्रामात क्षत्रधर्म मनुष्मरन् । उसे अनीकिनी कहते हैं। बाहवेपु मिथोऽन्योन्य जिघांसन्तो महीक्षितः। ___अक्षौहिणी-उक्त अनीकिनीले दश गुणा अधिक य घ्यमानाः परं शक्त्या स्वर्ग यान्त्यपराङ्मुखः ॥" (मनु) नाभित करें। सैन्य रहनेसे उसे अक्षौहिणी कहते हैं। .. ..... • राजा अपनी सेनाओं को अच्छी तरह शिक्षित करें। शाङ्गधरकृत धनुर्वेदसंग्रहमें अक्षौहिणीका परिमाया विधिपूर्वक अनादिको जो शिक्षा दी जाती है उसे श्रम- विधि कहते हैं। जब तक अस्त्र-शिक्षा समाप्त न हो, तव | इस प्रकार वताया है-इस अक्षौहिणी सेनामें २२८००० तक श्रमविधिका अनुष्ठान करना आवश्यक है। श्रम- | रथ, ७० सामन्तराज, ७० हाधी, १०९३५० पदाति और क्रिया सुसिद्ध नहीं होनेसे और अभ्यस्तास्त्र पीछे कहीं६५११० घोड़े रहेंगे। राजा इन सब सेनाओं के मध्य भिन्न भिन्न प्रकारको भूल न जाय, इसलिये वर्पमें दो मास करके शिक्षितास्त्र " परिचालन करना उचित है। आश्विन और कार्तिक पताकादि स्थापन करे। क्योंकि इससे वे अपना वा यही दो मास उसके लिये अच्छे वताये गये हैं, दूसरे शबुका पक्ष स्थिर कर सकेंगे। यह जो सैन्यका उल्लेख दूसरे मास नहीं। किया गया, राजा उनके ऊपर एक सेनापति नियुक्त "एवं श्रमविधिं कुर्यात् यावत सिद्धिः प्रजायते । करें। यह सेनापति सत्कुलोद्भव, जितेन्द्रिय, नानां विद्या श्रमे सिद्ध च वर्षासु नैव ग्राह्य धनुः करे । और युद्धकार्यमें पारदशी तथा सुनिपुण, सुन्दराकृति, पूर्वाभ्यासस्य शस्त्राणामविस्मरणहेतवे। इङ्गितयोद्धा, सैन्यनीतिमें अभिज्ञ, दुईप, युद्धक्षेत्र में मासद्वय श्रम कुर्यात् प्रतिवर्ष शरहतौ ।" ( शार्ङ्गधर) सेनाओंको सान्त्वना करनेमें समर्थ, इत्यादि गुणोंसे युक्त , सभी सेनापति, सेनामुख, गुल्म, गण, वाहिनी, होवे। पृतना, चमू, अनोकिनी और अक्षौहिणो आदिमें विभक्त जो सभी नाके ऊपर आधिपत्य करता उसे सेना- हैं। इनकी संख्यादिका विषय नोतिप्रकाशिकामें इस पति कहते हैं। सेनापतिके अलावा अक्षौहिणीपति, प्रकार लिखा है- पत्तिपति, सेनामुखनेता, गुल्मनायक, गणनायक, अनी- पत्ति-१ रथ, १ हाथी, ५ पदाति, ३ अश्वारोही इन किनीपति, चमूपति आदि भी रहेंगे। ये सव अधिपति समुदायको पत्ति कहते हैं। अपने अपने अधीनस्थ सेनाको परिचालना करेंगे. किन्तु सेनामुख-३० रथो, ३० गजारोही, ३००००० पदाति इन सवोंको प्रधान सेनापतिके अधीन रहना होगा। और ३००० अश्वारोही, एकत्र मिले रहनेसे उसे सेनामुख राजा सेनापतिके जैसे उपयुक्त व्यक्तिको पत्ति, गुल्म कहते हैं। आदिका अधिपति बनायेगे। जो सेनाओंको अच्छा गुल्म- रथी, ६० गजारोही, १००० अश्वारोही और | २००००० पदाति सैन्य रहनेसे गुल्म होता है। | तरह शिक्षा दे सकते हैं, वैसे ही व्यक्ति सातों प्रकारके गण-२७ रथी, २७० हाथी, २७००० घोड़े और सेनापतिके लायक हैं। कार्यविशेपमें दो दो वा तीन २७००००० पदाति इनकी समाप्टिका नाम गण है। तीन सेनाके ऊपर एक वा एकसे भी अधिक अधिपति - वाहिनी--८१ रथ, ८१० हाथी, ८१००० घोड़े और नियुक्त करना कर्तव्य है। '८१००००० पदाति, ये सव जव एक साथ रहते है, तव जो जिस सेना पर आधिपत्य करेंगे, उसी सेनाके • उसे वाहिनी कहते हैं। ऊपर उनकी स्वाधीनता रहेगी। किन्तु कोई बड़े होने. पृतना-२४३ रथ, २४३० हाथी, २४३००० घोड़े और सी चोरऔर से अर्थात् उससे यदि कोई प्रधान सेनापति रहे, उसे भी २४३००००० पदातिका नाम पृतना है। उस प्रधान सेनापतिके अधीन रहना होगा।