पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६६६

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युग युग। जिनके नाम ये हैं-सत्य, त्रेता द्वापर और कलि-1 और चन्द्रका योग अर्थात् एक मास । कलियुगके आरम्भ- में सूर्य और ग्रहणका योग होना कल्पित है, इसीसे इस • जब पापकी वृद्धि और धर्मका ह्रास होता है, तब कालका युग नाम रखा गया है। अतएव 'युग'-को अर्थ भगवान् वयं अवतीर्ण हो कर धर्म संस्थापन करते हैं। 'योग' 'द्वन्द्व' अथवा 'एकपुरुष' इनमें कोई एक लिया जा इस विषयमें सभी शास्त्रोंका एक मत है। सकता है। पाश्चात्य पण्डित ऋग्वेदमे व्यवहृत 'युग' ऋग्वेद (१।१५४६ )-मे दीर्घतमाका 'दशम युगमें, शब्दका अर्थ कालवाचक नहीं मानते। क्योंकि ऐसा जराग्रस्त होना लिस्ना है। इस 'युग' शब्दके अर्थ सम्बन्ध- करनेसे सत्य वेता आदि युगकल्पनाका आभास ऋग्वेदमें में पण्डितोंका एक मत नहीं है। कोई कोई 'युग'का अर्थ था, यह मानना पड़ेगा। इस प्रकारको युगकल्पना ५ वर्ण बतलाते हैं। 'वेदाङ्ग ज्योतिष में युगसंज्ञाको परवत्तीं समयकी है, उसे उन्होंने सावित कर पञ्चवर्ण परिमित कालवोधक शब्द कहा है। पिटार्स- दिखाया है। वर्गमें प्रकाशित अभिधानके मतसे ऋग्वेदमें व्यवहत 'युग' ऋग्वेदमें 'युगे युगे' शब्द कमसे कम छः वार आया शब्दका अर्थ कालवाचक नहीं है, वह वंश वा पुरुष- है, (३।२६।३, ६।१५।८, १०६४।१२ इत्यादि)। प्रत्येक वाचक है, शासमान साहरने यह मत समर्थन किया है। जगह सायणने इसका अर्थ कालवाचक लगाया है। इन लोगोंक मतसे 'दशमयुग' का अर्थ है दशम पुरुष वा ऋग्वेदके ३।३३।८, १०।१०।१० और ७०।७२।१ इन सब वा दश पोदो। स्थानोंमें 'उत्तर-युगानि' और 'उत्तरयुगे' ये दो प्रयोग ___'युग' शब्द ऋग्वेदके समय भी कालवाचक थी, मिलते हैं जिनका अर्थ है 'परवत्तोंकाल' परवत्तीकालके इसमें संदेह नहीं। अधिक नहीं तो इस शब्दका एक सिवा और कुछ भी नहीं हो सकता। अतएव पाश्चात्य अर्था कालवाचक था, यह मानना ही पड़ेगा। पिटर्स- पण्डितोंका सिद्धान्त स्थिर नहीं रहता है। १०७२।२ वर्गके अभिधानमें भी अथवेद ( ८।२।२१ )-में उल्लि- और १०७२।३ इन दो स्थानोंमे हम लोग पुनः 'देवानां खित युग शब्दका कालवाचक अर्था निर्दिए हुआ है। पूर्ये युगे' और 'देवानां प्रथमे युगे' ये दो प्रयोग देखते केवल ऋग्वेदके हो प्रयोगमे युग 'वंश वा पुरुषानुकमिक' हैं। 'देवानां' शब्द वहुवचनान्त और युग शब्द एकवच. अर्थमे व्यवहत हुआ है-उक्त अभिधानका यह नान्त है। यहां केवल युग शब्दका 'पुरुष' अर्थ नहीं सिद्धान्त है ऋग्वेदमे 'मानुषा युगा' वा 'मनुष्या मान सकते । विशेषतः सभी जगहका अर्थ अच्छी तरह युगानि' शब्द जहां जहां व्यवद्वत हुआ है, पिटर्सवर्गके | लगानेसे देखा जाता है, कि सृष्टि तथा देवताओंके जन्म- अभिधानने वहां इसका अर्था किया है, 'मनुष्यवंश' । इस की कथा हो उस जगह प्रतिपाद्य है । अतएव उक्त स्थानों- अर्थका सभी पाश्चात्य पण्डित समर्थन करते हैं। किंतु | में युग शब्दका कालवाचक अर्थ छोड़ कर और कुछ भी सायण और महोधरने इस स्थानमें भी युगका अर्थ काल नहीं हो सकता। अब 'देवानां युगम्' इसका अर्थ यदि बताया है। उनके मतसे मनुष्यका अर्थ है मनुष्यसम्ब- 'देवताओंका काल' समझा जाय, तो 'मनुष्ययुगानि' वा न्धीयकाल। फिर कहीं कहीं ( १११२४।२, १११४४।४,)। मनुष्ययुगका अर्थ मनुष्य-सम्बन्धीय काल कहने में कुछ सायण 'युग'का अर्थ "द्वन्द्व" वा "युगल" बताजेसे भी | | भी आपत्ति नहीं। फिर ऋग्वेदमे कहीं कहीं 'मानुष- बाज नहीं आये हैं। इस हिसावसे मनुष्ययुग-| युग' शब्दका व्यवहार है-यहां पर युग शब्दका अर्थ का अर्थ "मनुष्यद्वय” वा “मनुप्यसङ्घ" होता है। सायण. 'पुरुष' हो ही नहीं सकता। दृष्टान्त स्थल में ऋग्वेदके कृत उस भाष्यसे ही सम्भवतः पाश्चात्य पण्डितोंने | ५।५२।४ ऋक्का "मानुषे युगे" शब्द पुरुषबोधक नहीं अपना अर्थ निकाला है। युग शब्दका धात्वर्थ निम्न | है, इसे सब कोई स्वीकार कर सकते । इस ऋक्के सम्बन्ध प्रकारसे ग्रहण किया जा सकता है,-१ रात्रि और दिन में मोक्षमूलरने जो युग शब्दका 'पुरुष वा वंश' अर्थ । यह युग्म है । २, मास युग्म-ऋतु, ३, दो पक्ष वा सूर्य | लगाया है. सो भारी भूल की है। ग्रिफिथ साहव