पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६६५

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६६२ अर्थात् अष्टाङ्ग योगादिका अनुष्ठान करते हैं, वही। युक्तकारिन्- युग जहां अर्थयुक्त वाक्यको निश्चय होता है उसको युक्त हैं। युक्ति कहते हैं। नाटकमें यह युक्ति दिखाना आवश्यक • ११ रैवत मनुके एक पुत्रका नाम । (हरिवंश ७२८)। है- १२ हस्तचतुष्टय, चार हाथका मान । "यदि समरमपास्य नास्ति मृत्यो. युक्तकारिन् (सं० वि०) युक्त उचित करोतीति कृ-णिनि ।। र्भयमिति युक्तिमितोऽन्यतः प्रयातु । उपयुक्त कार्यकारी, ठोक काम करनेवाला । अथमरणमवश्यमेव जन्तोः युक्तकृत् (सं०नि०) युक्त' करोतोति कृ-क्विप् तुक्च ।। किमिति मुघा मलिनं यशः कुरुष्व ।" (साहित्यद.) उपयुक्त कार्यकारी, ठोक काम करनेवाला। यदि युद्धक्षेत्रसे भाग कर मृत्यु के हाथसे बच सको युक्तपावन (सं० त्रि०) उद्गत प्रस्तर, निकाला हुआ तो यह भागना उचित ; किन्तु जोवको मृत्यु जव अव- पत्थर। श्यम्भावी है तव वृथा क्यों यश मलिन करते हो । । । युक्तत्व (सं० क्लो० ) युक्तस्य भावः, 'त्वतलौ भावे' इति | "सम्प्रधारणमर्थानां युक्ति ।" ( साहित्यद० ६।३४३). त्व। उपयुक्तता, युक्त होनेका भाव या धर्म। अर्शका सम्प्रधारण अर्थात् निश्चयका नाम युक्ति युक्तदण्ड ( स० वि०) उपयुक्त दण्ड, मुनासिव सजा। | है। ८ उपाय, ढग। ६ भोग । १० कौशल, चातुरी। युक्तमनस् (सं० त्रि०) युक्त मनो यस्य । योगी, जिसका ११ तक, ऊहा। १२ केशवके अनुसार उक्तिका एक मन योगयुक्त हुआ है। | भेद जिसे खभावोक्ति भी कहते हैं। युक्तरथ (सं० पु०) एक औषध-योग जिसका प्रयोग वस्ति- | युक्तिकर (स० वि० ) युक्तियुक्त, जो तक के अनुसार करणमें होता है। भावप्रकाशमें रेडकी जड़के क्वाथ, | ठीक हो। मधु, तेल, सेंधा नमक, वच और पिप्पलीके योगको युक्तिज्ञ (स० वि०) युक्तिं जानाति ज्ञा-क । युक्तिकुशल, युक्तरथ कहा है। ठीक तक करनेवाला। युक्तरसा (स स्त्रो०) युक्तः रसोऽस्याः । १ गन्धरास्ना, युक्तिमत् ( स० त्रि.) युक्तिः विद्यतेऽस्प, युक्ति-मतुः । गंधनाकुलो । २ रास्ना, रासन । | १ युक्तिविशिष्ट। २ युक्तियुक्त । युक्तरूप (सं० त्रि०) उपयुक्त, ठीक । युक्तियुक्त ( स० वि० ) युक्त्या युक्तः । युक्तिविशिष्ट, युक्तश्रेयसा ( स० स्त्री० ) गन्धरास्ना, नाकुलो कन्द। | उपयुक्त तक के अनुकूल। युक्तसेन ( स० लि०) युक्ता सेना यस्च । जिसको सेना युक्तिशास्त्र (सं० क्ली०) युक्तिप्रधानं शास्त्र' मध्यपद युद्ध में जानेके योग्य हो। लोपि कर्मधा०। युक्तिप्रधान शास्त्र, प्रमाणशास्त्र । युक्ता (सं० स्त्री० ) युक्त टाप। १ एलापणीं। २ एक युग (सं० क्लो०) युज्यते इति युज-धन, कुत्वं न गुणः । वृक्षका नाम जिसमें दो नगण और एक मगण होता है। 'युजेघनन्तस्य निपातनादगुणत्वं विशिष्टविषये च युक्तायस् ( स० क्लो० ) लौहास्त्रभेद, प्राचीनकालके एक निपातनमिदमिष्यते, कालविशेषे रथाधु पकरणे च युग- अस्त्रका नाम जो लोहेका होता था। शब्दस्य प्रयोगोऽन्यत्र योग एव भवति' (काशिका २९।११०) युक्तार्थ (सं० त्रि० ) १ उपयुक्तार्थ । २ ज्ञानी। १ युग्म, जोड़ा। २ जुआ, जुआठा। ३ऋद्धि और युक्ताश्व (सं० लि०) अश्वसहित। . वृद्धि नामक दो ओषधियां । ४ पुरुष, पोढ़ी। ५ पासेके युक्ति (सस्त्री०) युज्यते इति युज -क्तिन । १ न्याय, , खेलकी वे दो गोटियां जो किसी प्रकार एक-घर- नीति । २ मिलन, योग। ३रीति, प्रथा । ४ उचित, में साथ बैठती हैं। ६ पांच वर्षका वह काल जिसमें विचार, ठीक तर्क । ५ अनुमान, अदाजी। ६ कारण, | वृहस्पति एक राशिमें स्थित रहता है। ७ समय, काल । हेतु। ७ नाट्यालङ्कारविशेष । इसका लक्षण-"युक्ति- ८ हस्तचतुष्क, चार हाथका मान-1 • E पुराणानुसार रावधारणं।" ( साहित्यद० ५५०१) | कालका एक दोघं परिमाण, ये संख्या चार माने गये हैं।