पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६५७

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६५४ यामहतियामित्रवेध यामहति (सस्त्री०) यज्ञ । यज्ञमें देवगण वुलाये जाते | पत्नीका नाम । इससे नागवीथी नामक कन्या उत्पन्न हैं इसलिये यामहूति शब्दसे यज्ञ समझा जाता है। । हुई थी। ५ पुत्री, कन्या ! ६ पुत्रवधू, पतोहू । ७ दक्षिण यामात (स० पु०) जामाता पृषोदरादित्वात् जस्य यः।। दिशा। जामाता. कन्याका पति, जमाई । जामाता विष्णुतुल्य है। यामिक ( स० त्रि०) यामे नियुक्ताः यम-ठक् । प्रहरिक, इसलिये उस पर क्रोध नहीं करना चाहिए। जब तक | जो पहर पहरमें नियुक्त होता है उसको यामिक या चौकी- नाती न जन्म लेवे, तब तक जमाईके यहां खाना मना है। दार कहते हैं। यामातुक (संपु०)जामाता, जमाई। यामिकभट ( स० पु० ) यामिकश्चासौ भटश्चेति । प्रह- यामाई ( स० क्ली० ) यामस्य अद्ध। यामका अद्ध', रिक, चौकीदार। पहरका आधा। दिवा और रातिमान जितने दण्डका यामिका ( स. स्त्री० ) रजनी, रात। होता है उसे से भाग देनेसे उसके एक एक भागका यामित्र (स' क्लो० ) लग्नसे सप्तम राशि । नाम यामाई है। इन सब यामा का एक एक अधिपति है। उन सव अधिपतियोंका विषय ज्योतिषमें लिखा है। यामित्रवेध (सं० पु०) यामित्रे सप्तमस्थाने वेधः । ज्योतिष- जात वालकको कोप्टी बनाते समय यामाद्ध-अधिपति का एक योग। इसमें विवाह आदि शुभ कर्म दूपित द्वारा पताकी गणना करनी होती है। होते हैं। कर्मका जो काल हो उसके नक्षत्रको राशिसे दिनमानको से भाग देनेसे उसके एक भागका नाम सातवीं राशि पर यदि सूर्य शनि वा मङ्गल हो तव यामाद्ध है। जिस वारमें जन्म होगा, वह ग्रह प्रथम यामित्रवेध होता है। विवाहादि कार्य में दिन देखनेके समय यामाई का और उसके बाद छः छाके वाद द्वितीयादि | यामित्रवेध हुआ है वा नहीं, यह देख लेना आवश्यक है। यदि यामित्रवेध हो, तो उस दिन विवाहादि संस्कार यामाद्ध का अधिपति होगा। इसी प्रकार रात्रिमानको ८ से भाग देनेसे जो होगा, वह रात्रिका यामाद्ध है। रात्रि- | नहीं करना चाहिये । यामिनवेध इस प्रकार स्थिर करना होता है- कालमें जिस वारमें जन्म होगा, वह ग्रह प्रथम यामाद्धपति पीछे पांच पांच के बाद जो ग्रह होगा उसीको परवत्ती- | ___ पापग्रहसे यदि सातवें स्थानमें चन्द्र रहे अथवा वह यामाद्ध का अधिपति जानना होगा। जैसे, रविवारमें | चन्द्र यदि पापयुक्त हो, तो यामित्रवेध होता है। यह प्रथम यामाद्धपति रवि, द्वितीय यामार्द्ध पति शुक, तृतीय | यामित्रवेध सभी शुभ कार्योंमें वजनीय है। क्योंकि यामाद्ध पति वुध और चतुर्थ यामाद्धपति चन्द, इसी | इसमें यात्रा करनेसे विपद्, गृहप्रवेशमैं पुत्रनाश, क्षौर. प्रकार और सब स्थिर करना होगा। कार्यमें रोग, विवाहमें विधवा, व्रतमें मरण इत्यादि रात्रिकालमें रविवारको प्रथम यामाद्ध पति रवि.] अशुभ होते हैं। द्वितीय यामाद्ध पति वृहस्पति, तृतीय चन्द्र, चतुर्थ शक चन्द्रमासे सातवीं राशिमें यदि रवि, मङ्गल और इत्यादि क्रमसे स्थिर करना होगा। राहु और केतुको | शनि रहे, तो भी यामित्रवेध होता है। जिस दिन विवा- मान कर गणना नहीं करनी चाहिये। हादि शुभकार्यका दिन देखना होगा, पहले चन्द्रमा किस यामायन (सं० पु.) १ वेदमन्तद्रया। कई ऋषियोंके | राशिमे हैं उसे स्थिर करे। पीछे उस चन्द्रमाके सातवें गोलमें उत्पन्न पुरुष। २ ऊर्ध्वकशन, कुमार, दमन, स्थानमें कोई पापग्रह है वा नहीं' तथा चन्द्रमा भी तो देवश्रवस्, मथित, शङ्ख और सङ्कसुक आदिके | कोई पापकान्त नहीं है, यह देखे। यदि है, तो समझना गोलापत्य। चाहिये, कि यामिनवेध हुआ है। (ज्योतिस्तत्त्व) 'यामि (सं० स्त्री०) याति कुलात् कुलान्तरमिति या वाहुल । यामित्रवेधमें शुभकर्म निषिद्ध है। यदि यामित्रवेधमें कात् मि। १ खसा, बहिन । २ कुलस्त्री, कुल-वधू । ३) शुभकर्म करना निहायत जरूरी हो, तो इसका प्रतिप्रसव यामिनी, रात । ४ अग्निपुराणके अनुसार धर्मको एक देख कर शुभकर्म करनेमें कोई दोष नहीं। प्रतिप्रसवमें