पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६४८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. ६४५ . यादवराजवश . उनके दE शकमें उत्कीर्ण ताम्रशासनमें लिखा है, कि राजुगी वा श्रीराज .. .. उन्होंने चालुक्यराज परसहि देव (श्य विक्रमादित्य)-को शत्सघर्षसे वचा. कर कल्याणके सिंहासन पर वादुगा वा वहिग . विठाया था। . .. . . . सेउणचन्द्रके वाद. परम्मदेव और पीछे उनके भाई | . धाडियप्प य . भिल्लम २य (शः ९२२) सिंहराज ( यादव सिंघण.):ने राज्य किया। सिंघणने | : ... लीपुरसे 'कपूरतिलक' नामक हाथी ला कर चालुक्यः | भिल्लम ३य (शक ६४८.) राज परमदि देवका प्रियकार्य किया.था। पीछे उनके पुत्र मल्लुगी राजा हुए.। वे. पर्णखेट नामक शत्नुपुरीको जीत वाटुगी श्य. कर उत्कलपतिके सभी हाथियोंको भगा लाये। उनके • वेसुगी श्य .. मरने पर उनके लड़के. अमरगाङ्गेय राजसिंहासन पर आरूढ़ हुए । अमरगाङ्गेयके वाद् यथाक्रम गोविन्द्रोज, | भिल्लम ४थ.. मल्लगिपुत्र अमर मल्लुगि और . कालियावल्लभने राज्य सेउणचन्द्र किया। वल्लालके पुत्र वैसे. शक्तिशाली न थे । इस | . सेउणचन्द्र श्य (शक ६६१) कारण राजलक्ष्मी वल्लालके चचा महावीर भिल्लम .. .(४थे.) के हाथ लगी। ताम्रशासनमें लिखा है, कि | .. . . परम्मदेव सिंघण . भिल्लमने अपने दो बड़े भाइयों तथा उनके पुत्रोंक राज्य . करनेके बाद राज्य किया था। इससे मालूम होता है, | . मल्लगी." कि वे अधिक उमरमें . सिंहासन पर बैठे थे। उनका | शासनकाल.११०६ शकसे १११३ शक तक माना जाता | अमरगाङ्गय अमरंमल्लगी .. भिल्लम ५म है। उन्होंके प्रताप और बुद्धिवलसे चालुक्य साम्राज्य - (१११३ शकनें मृत्यु) यादवराजवंशके अधिकारमुक्त हुआ था।.. गोविन्दराज.. . वल्लाल. . . . . . .. पूर्व नासिकके समीप अञ्जनेरि नामकं एक प्राम है। . . .. . परवी यादववंश : .. .. पहांके मन्दिरसे एक भिल्लमको शिलालिपि आविष्कृत हुई | . महिसुरके अन्तर्गत हलेविड़में होयसल यादव रहते है। वह शिलालिपि पढ़नेसे ज्ञात होता है, कि.१०६३ | | थे। त्रिभुवनमल विक्रमादित्यके समय वे लोग बहुत शकमें यादववंशीय सेउणदेव नामक एक राजाने जैन- | कुछ प्रवल हो उठे। यहां तक, कि इस वंशके विष्णु- मन्दिरको प्रतिष्ठा की थी। इन्होंने 'महासामन्त' कह कर 'वर्द्धन राज्यलोलुप हो कृष्णवेण्वाके किनारे चालुक्य. अपना परिचय दिया है। पूर्वोक्त.यादववंशसे यह वंश सम्राटके सामने हुए थे। इतने पर भी चालुक्यराजकी शक्ति चूर नहीं हुई। उस समय भी समस्त दाक्षिणात्य . . नीचे प्राचीन यादवराजवंशको वंशावली उद्धत हुई- चालुक्यरोजके नामसे कांपता था, सभी सामन्तवर्ग दूढ़प्रहार चालुक्यराजके अनुगत थे। इस कारण यादववीरकी उच्च आकांक्षा पूरी न हुई। कुछ दिन बाद कालचकने पलटा सेउणचन्द्र श्म खाया। चालुक्यवंशका वह.प्रभाव, वह शक्ति हास हो । धाडियप्प १म चली। - उनके सामन्त कलचूरियोंने मस्तक उठाया। भिल्लम श्म. फिर लिंगायत-सम्प्रदायके अभ्युदयसे उनकी राजशक्ति. भग्नं हो गई.। लिङ्गायत देखो। इस समय यादव विran Vol. xVIII, 162 भिन्न है। . .