यादवराजवंश १म चन्द्र (क्षोरोदसमुद्रसे उत्पन्न ), उनके लड़के , "चान्दोर' प्रामको वहुतेरे वही चन्द्रादित्यपुर मानते हैं। २ वुध, ३ पुरूरवा, ४ नहुष, ५ ययाति; ६ यदु, ७ क्रोष्टा, दृढ़प्रहारके बाद उनके लड़के सेउणचन्द्र राजसिंहासन ८ वृजिनीवान, ६ खाहित; १० नृशकु, ११ चित्ररथ, १२ | पर बैठे। वे जिस देशमें राज्य करते थे वह उन्हीं के शशविन्दु, १३ पृथुश्रवा, १४ वीर, १५.सुयश, १६ उशना, नामानुसार 'सेउणदेश' नामसे प्रसिद्ध हुआ। यह देश १७ सितेयु, १८ मरुत्त, १६ कम्बलवहि, २० रुक्मकवच; दण्डकारण्यके अन्तर्गत नासिकसे देवगिरि तक विस्तृत २१ पराजित्, २२ मेध, २३ विदर्भ, २४ कथ, २५ कुम्भि, था। इसीका उत्तरांश ले कर मुसलमानी अमलमें २६ वृष्णि, २७ निवृत्ति, २८ दशाही, २६ व्योमा, ३० देव खान्देश संगठित हुआ। रात, ३१ विकृति, ३२ भीमरथ, ३३ नवरथ, ३४ दशरथ, सेउणचन्द्र के बाद उनके लड़के धाड़ियप्प वा धाड़ि- ३५ शकुनि, ३६ करम्भि, ३७ देवराज, ३८ देवक्षेत्र, ३६ यश राजा हुए। वह एक महायोद्धा थे। उनके पुत्रका मधु, ४० कुरुवल, ४१ पुरुहोत्र, ४२ आयु, ४३ सात्वत, | नाम भिल्लम था । जो महासमृद्धिशाली राजा थे । मिल्लम- ४४ अन्धक, ४५ भजमान, ४६ विदूरथ, ४७ प्रतिक्षत्र, ४८/ के पुल श्रीराज दूसरा नाम राजुगो और राजुगोके वाद भोज, ४६ हृदिक, ५० देवमोदूष, ५१ वसुदेव, ५२ मुरारि वादुगी वा वहिग हुए। यह राष्ट्रकूटपति कृष्णराजके श्रीकृष्ण, ५३ प्रद्युम्न, ५४ अनिरुद्ध, ५५ वज्र, ५६ प्रति- | सहचर थे। घोरप्प नामक राजोको कन्या वोहियन्वाके वाहु, उनके पुत्र ५७ सुवाहु । सुवाहुने सम्राट हो कर साथ उनका विवाह हुआ था । यथासमय उनके एक पुन अपने चारों पुत्रोंके वीच राज्य बांट दिया था। उनमेंसे हुआ जिसका नाम धाडियस रखा गया। धाड़ियसके मध्यम पुत्र दृढ़प्रहार दक्षिणदिशाके राजा हुए थे। यादव- वाद वादुगोके दूसरे लड़के भिल्लम राजसिंहासन पर वंश पहले मथुराका शासन करते थे । कृष्णसे ही वे लोग बैठे। उन्होंने मञ्जकी कन्या लक्ष्मी वा लच्छियब्बाको द्वारवतीके अधीश्वर हुए थे। आखिर सुवाको पुत्र | घ्याहा था। वहुतेरे झञ्जको थानाके शिलाहारराज मानते दृढ़प्रहारसे ही उन्होंने दाक्षिणात्यको राज्य पाया। हैं। लक्ष्मीदेवोकी माता भी राष्ट्रकूटराजकी कन्या थो। हेमाद्भिने पुराणोक्त सुप्राचीन यादववशके साथ पर. ६२२ शकमें उत्कीर्ण इस भिल्लमराजका ताम्रशासन वत्ती यादवराजाओंका सम्बन्ध ठीक करनेके लिये जो | पाया गया है। इस ताम्रशासनमें लिखा है, कि उन्होंने वशतालिका दो उसमेंसे सभोको ऐतिहासिक नहीं, मुझराजकी शक्तिको चूर कर डाला तथा रणरङ्गभीम मान सकते। प्रभासक्षेत्र में यदुवंशध्व'सके बाद एक- (तैलप ) राजाकी शक्तिको द्रुढ़ कर दिया । अर्थात् मुञ्ज. मात्र वन वच गये थे सही, किन्तु वज्रके पौत्र सुबाहु के साथ युद्धकालमें इन्होंने तैलपको सहायता को थी। और दृढ़प्रहार एक समयके व्यक्ति थे, ऐसा प्रतीत नहीं। ताम्रशासनकी इस उक्तिसे जाना जाता है, कि यादव- होता। यादवराजाओंके दिये हुए ताम्रशासनकी आलो. वशने पूर्वाधीश्वरकी अधीनताका त्याग कर नये अधी- चना करनेसे ८वीं सदीमें दृढ़प्रहारका अभ्युदय स्वीकार | श्वरका पक्ष लिया था। करनो पड़ता है। किन्तु वन उनके कितने हजार-पहले मिल्लमके पुत्र सुमिने चालुक्यान्वय माण्डलिक गोगी- हो गये हैं। इस प्रकार वन्न अथवा सुवाहु तथा दूढ़ की कन्या नायमदेवोका पाणिग्रहण किया। 'व्रतखण्डके प्रहारके मध्य सौ-पीढ़ोसे अधिक वीत गई थी, इसमें | मतसे इन्होंने बड़ी वीरतासे अर्जुनसदृश हो भीष्मसदृश सन्देह नहीं। इसी कारण हम दृढ़प्रहारके पूर्ववत्ती विवः | वीरको हत्या को थी। उनके पुत्र भिल्लम (३य )-का रणको पौराणिक मानते हैं। दूढ़प्रहारले ही इस वंशमें | चालुक्य सन्नाट जयसिंहकी कन्या हम्माके साथ विवाह ऐतिहासिकयुग आरम्भ हुआ है। हुआ । उन्होंने अपने साले सम्राट् आहवमलसे विजय- हेमाद्रिके मतसे हृढ़प्रहारने श्रीनगरमें राजधानी . पताका ले कर अनेक युद्ध किये थे। उनकी मृत्युके बाद वसाई। किन्तु ताम्रशासनमें उनको राजधानीका नाम | उनका राज्य दूसरेके हाथ लगा। पीछे यादववंशीय चन्द्रादित्यपुर लिखा है। नासिक जिलेके वर्तमान | सेउणने शत्रुके कवलसे यादवराज्यका उद्धार किया ।
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