पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६४२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६३ पहलेके यात्रा-सम्भदायके गीतोंमे जिन सव सुरौकी , की अवनतिके समय अपने रचे हुए गानका स्वर बड़ी संयोजना होती थी, वह सम्पूर्णरूपसे कविगानके ही ख्याति प्राप्त कर चुके हैं ! पताइहाट या पाइताहाटके टूटा हुआ सुर रहता था। कविका सखी संवादगान | प्रेमाद अधिकारी महीरावणवधको यात्रा करते थे बहुत कुछ अंग्रेजी 'अपेरा'को तरह है। फिर, उसमें | और इस कार्यमें आप अपने समयके अद्वितीय कहे जाते भिन्न-भिन्न व्यक्तिका गान भिन्न-भिन्न अभिनेतृ द्वारा थे। थरकाटा मचांद नामसे और एक सुप्रसिद्ध यात्रा गीत न गाया जा कर वहुत लोग एक साथ गीत गाया | गायकका नाम मिलाता है। ये दोनों आदमी ही भिन्न करते हैं। साथ ही उत्कृष्ट ढोलढाकके वाजेसे कान बहरा व्यक्ति हैं ; लोगोंकी ऐसी ही धारणा है । वांकुड़ाके बन जाता है। किन्तु इस समयको यात्रामें कविका अन्तर्गत रामजीवनपुर-निवासो आनन्द . अधिकारी और टूटा सुर-रहने पर भी ढोल मंजीरेका वैसा घोर आड | जयचन्द्र अधिकारी यात्रागमन गा कर लब्धप्रतिष्ठ हुए म्बर नहीं दिखाई देता । यात्राका ढोलक अलग है थे। इन सव लब्ध नाम यात्रादलके सिवा उस समय केवल युद्धके समय ढोलकको भीषण आवाज | और भी अनेक सुदल गठित हुए थे। उनके नाम लिखने- होती थी। । । की कोई आवश्यकता नहीं। फरासडाङ्गाके गुरुप्रसाद 'श्रीकृष्णकी यात्रा प्राचीन और प्रधान अधिकारियोंमें वल्लभ अति उज्ज्वल दण्डीयाना गान करते थे। इनकी परमानन्द अधिकारीको नाम सबसे प्रसिद्ध है। वीरभूम- मृत्युके बाद इनके पुत्र व्रजवल्लभ अधिकारीने इस दलको में इनका वास था। इनके समकालीन किसी और अधि- रखा था, किन्तु ये विशेष ख्यातिलाभ नहीं कर सके। कारीका नाम नहीं मिलता। ये १८वीं शताब्दीमें वङ्गाल- इस समय इनके समकालीन पश्चिम घद्धमानके रहने- में विद्यमान थे। इसके बाद श्रीदामसुवल अधिकारका वाले लाउसेन वडाल, 'मनसाका भासान' गाना गाते थे। नाम मिलता है। ये भी कृष्णलीलाविषय यात्रामें बहुत बड़ाल अधिकारी हरिश्चन्द्रकी अपेक्षा मनसाकी यात्रामें नाम कमा गये हैं। इन कविके समसामयिक लोचन ही विशेषरूपसे लब्धप्रतिष्ठित हुए थे। कृष्णयात्रामें भी अधिकारीने 'अकरसंवाद' और 'निमाई संन्यास' गा गा| अधिकारी ही दूतीका साज साजते थे। कर श्रोताओंको विमोहित किया था। कहा गया है, इस समय यात्रा या लीलाकारियों तथा नाटक खेलने. कि इन्होंने कलकत्तेके विख्यात वनमाली सरकार और वालोंको जैसो पोशाक हुई है, वैसी पोशाक पहलेके महाराज नवकृष्ण बहादुरके घरमें गा कर वहुत धन लीलाकारियोंको न थी । उस समय जब जटाकी पारितोषिक पाया था। इस समय जिरेट ग्रामके अधि नकल करनी होती थो, तव पटुएकी रस्सीसे ही काम वासी बदन अधिकारीके यानादलने प्रतिष्ठालाभ की | चलता था। मुनि गोसाई आदिकी दाढ़ी और मूछ थी। कलकत्तेके दूसरे पार गङ्गाके किनारे शालिखाग्राम भो पटुएसे हो वन्ती थी। स्त्रियोंके केशकी नकल इस में ये रहते थे। सुप्रसिद्ध गायक परमानन्दसे इन्होंने पटुएसे ही की जाती थी। कृष्णलीला अभिनयके समय गोत सीखा था और कुछ दिनों तक 'उनके दलके | वक्तृताके अंशमें सुर रहता था। कितने ही हारुयोद्दीपक वालकोंमे नौकर थे। कुछ लोग कहते हैं, कि ये श्रीदाम | चित्र सामने उपस्थित रहने पर भी उस समय केवल सुवल के दलमें नौकर थे। वदन भावविभोर और कृष्णके । एक गानेके जोरसे ही जनताका चित्ताकर्षित होता था, प्रेमरसके स्वादी थे। देवलीलाके गाने गाते गाते इनके धर्मरस, काव्यरस, सङ्गोतरस और नाट्यरसका अनुभव दोनों नेत्रोंसे अविरल अश्रुधारा प्रवाहित होने लगती करा कर अभिनयकार्य सम्पादन करनेसे यथार्थ ही थी। सुप्रसिद्ध कृष्णलीला-यानादलके गायक गोविन्द दर्शक और श्रोताओंका मन आकृष्ट हुआ करता है। अधिकारी इनके दलके एक गायक थे। यात्राके सङ्गीत और वाजा आदि कार्य प्रकृतरूप ताल, सिवा इनके कांटेायावासी पोताम्बर अधिकारी लय और तान मानके साथ सम्पन्न होने पर वास्तव ही और विक्रमपुरनिवासी कालाचान्द पाल-श्रीकृष्णमाला-श्रोताओंका चित्त आकर्षित हुआ करता था। ..