पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६४१

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६३८ यावा . .इस तरहको प्राचीन प्रथाके अनुसार अब भी रासलीला | - : :हमें जितने प्राचीन यात्राके अधिकारियों के नाम • होती है ; रासमञ्च, यमुनाविहार, कालीयदमन, मानभङ्ग मिले हैं, वे सब प्रायः वैष्णव, थे। इसमें जरा भी आदि दिखलानेके लिये विभिन्न स्थानका निरूपण किया . सन्देह नहीं कि उस समय उनका कृष्णप्रेमलोलाका जाता है। इसी नियमके अनुसार सन् १८३१ ई०में गान करना अभिप्रेत. हो; गया. था। कुछ वैष्णव कलकत्तेमें नवीनचन्द्र वसुके घर विद्यासुन्दर नाटकका . अधिकारी कृष्णलीलाका. भावात्मक तिमाई-संन्यास अभिनय हुआ था। उस समय मालिनका घर, राज-..गा कर भी सबको विमोहित करते थे। प्रारम्भमें ही प्रासाद, सुन्दरका सुरङ्ग, विद्याका मन्दिर आदि स्थान . हमने कहा है, कि श्रीकृष्णयात्राका नाम कालीयदमन स्वतन्त्ररूपसे बने थे। बहुतेरे उसे बगलाका रङ्गमञ्चीय था। हां, यह स्वीकार्य है, कि इस यात्राके शुद्ध नामोंके आदि अभिनय (First Theatrical performance) | अर्थकी सोसावद्ध न थी। मानभङ्ग, नौकाविहार, कंसवध, कहा करते हैं। किन्तु यह सब तरहसे प्राचीन रासयात्रा-. प्रभास आदि श्रीकृष्णकी. सव .तरहकी लीला हो इस . के अनुसार हो अभिनीत हुआ था। . ... . 'कालीयदमन' यात्राके नामसे अभिनीत होते.थे। प्रत्येक यद्याप हम चैतन्यके समसामयिक या तदभिनीत याताभिनयके सबसे पहले 'गौरचन्द्रिका' पार होता किसी नाटकका नमूना नहीं पाते हैं, तथापि हम कह . था। वैष्णवअधिकारी. अपने इष्टदेव गौरामचन्द्र के सकते हैं, कि श्रीचैतन्यके प्राणोन्मादकर कृष्णलीला- माहात्म्य गानेके लिये ही पहले गौरचन्द्रिका गाते थे। गोतिको अभिनय सन्दर्शन कर या उसके विवरणसे .. इससे यह अनुमान किया जा सकता है, कि महाप्रभु अवगत हो कर तत्परवत्ती वैष्णवान्थकार नाटककी | श्रीगौराङ्गचन्द्र के परलोकगमन करनेके बाद लीलाओंका रचना करने लगे। उनमें वैष्णवकवि लोचनदासके | वर्तमान रूप हुआ है।. . . . .. ... .. ( १५२३-१५८६) जगन्नाथवल्लभ, यदुनन्दनदासके. पहलेके यात्रा:दल में रामलीला ( यात्रा:) के. समय (१६०७ ई०) रूप गोखामीकृत विदग्धमाधवका चङ्गा- | उस स्थानके एक.कोने में 'अशोकवनमें सीताको चैठा कर नुवाद (राधाकृष्ण-लीलाकदम्ब ) और प्रेमदासके सन् | रामका अभिनय' अथवा. कृष्णलीलाके : मानभङ्ग' में १७१२ ईमें लौकिक भाषामें अनुदित चैतन्यचन्द्रोदय- माननीय राधाको एक स्थानमें बैठा कर: रङ्गभूमिमें ही कौमुदी उल्लेखयोग्य है। ये सब प्रन्थ मूलग्रन्थके पया- | कृष्णबृन्दा-संवाद होता था या एक बगंलमें हो यह संवाद रादि छन्दोंका अनुवादमात्र है। पूर्ण होता था। ऐसे स्थल में सीता और राधाक वैठने के " यह अभिनयके लिये कितना उपयोगी हुआ था, कहा | स्थानमें फूल और लता-पत्ता दें कर एक स्वतन्त्र मञ्च जा नहीं सकता। ...बनाया जाता. था। किसी किसी यात्राके आसरे ... १८वीं शताब्दीसे बङ्गालमें यात्राका आदर बढ़ने | पर हो स्वतन्त्र भावसे. दुर्गा पूजा परिचालित हुई थी। लगा। इस समय विष्णुपुर, वर्द्धमान, वीरभूमि, यशो....... : .. . .. आधुनिक यात्रा । . .. .. .. 'हर (जसोर ) और नवद्वीप या नदिया जिलों में एक दो ::. : पहले नाट्यमन्दिर में ही यात्रा अभिनीत होती थी। यात्राकारियोंका आविर्भाव हुआ था। इन्होंने नाटकके : इस समय घरके आंगनमें नाट्यमन्दिर, चण्डीमण्डपमें एक एक अंशको ले कर छोटे छोटे नाटकोंकी रचना को अथवा बगीचोंमें घेर कर मध्यस्थलमें मेज. पर यात्रा थी। इनका वक्तृतांश पद्यमें लिखा जाता था। फिर! होती है। ये स्थान उस समयके Amphitheater-के ...भी ये बहुत छोटे छोटे पद्य होते थे। ऐसे नाटकोंके अनुरूप ही दिखाई देते हैं। विशेषता यही है, कि इसमें अधिक भांग प्रद्यसे परिपूर्ण होते थे । यथार्थमें इन्हें दृश्य पद आदिको अवतारणा नहीं की जाती। .:. नाटक न कह नाटकको छाया कह सकते हैं । उस : . .:.::. ..रहालय शब्दमें विशेष विवरण देखो.।

समय.महासमारोहसे ये सब अद्भुत.. नाटक किसी-धनी : .: पहलेके कीर्तन, कवि और. पांचाली गानका ढग,

.; व्यक्तिके घर किये जाते थे। '| रंग और गीतभावने वर्तमान यात्रा में प्रवेश किया है।