पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६३१

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६२८ याज्ञसेनी याज्या प्रारम्भके दो श्लोकोंसे विदित होता है, कि इस संहिता- जाति । ५ रक्त सादिर, लाल खैर । ६. पलाश । के कर्ता मिथिलाके रहनेवाले योगीश्वर याज्ञवल्क्य थे। ७ अश्वत्थ, पीपल । (राजनि०). अतएव जनकराज-सभाके याज्ञवल्क्य ही इस संहिताके | याशिकदेव (स० पु० ) एक विख्यात भाष्यकार । ये कर्ता माने जा सकते हैं । इस संहितामें राजधर्म, व्यवहार महादेव ( प्रजापति ) के पुत्र, गंगाधरके पौत्र .और विधि, दायभाग आदि विषयों में जो तत्त्व लिखे गये हैं। कहदेवके प्रपौत्र थे । इनके बड़े भाईका, नाम लक्ष्मी- उनको देखनेसे यह बात स्पष्ट ही मालूम होती है, कि यह धर और पुत्रका नाम महर्षि और उदयन था। इनके संहिता किसी आदर्श राजाके शासन समयमें बनायो | बनाये इष्टकापूरणभाष्य, कात्यायन श्रौतसूत्रमाष्य, गई होगी, इस संहितामें तीन अध्याय हैं और एक कात्यायन-श्रौतसूत्रपद्धति ( याशिकवल्लभा या श्रौत- हजार बारह श्लोक हैं। पहले अध्यायमें गर्भाधान, } स्मारणकर्मपद्धति ), कात्यायनकृत वाजसनेयिसंहितानु विवाह, यज्ञ, श्राद्ध और वर्णसङ्करको उत्पत्ति लिखी है | क्रमणिका टोका, स्नानविधिपद्धति और स्मृतिसार और भक्ष्याभक्ष्य प्रकरण, शुद्धिप्रकरण तथा अनेक प्रकार- आदि नथ मिलते हैं। ये देवयाज्ञिक, श्रोदेव और देव की पूजाका विधान भी वर्णित है। द्वितीय अध्यायमें | नामसे परिचित थे। व्यवहारशास्त्रका विषय अर्थात् ऋण लेना, ऋण देना, याज्ञिकानन्त (संपु० ) व्यवहारदर्पण और शुद्धिदर्पण प्रतिभू (जामिन ) प्रकरण, साक्षिप्रकरण, लेख्यप्रकरण, | नामक ग्रन्थके प्रणेता । इनका पूरा नाम अनन्तदेव दिव्यप्रकरण, दायभागप्रकरण, दण्डपारुप्यप्रकरण, सोहस यामिक शा। प्रकरण, सम्भूयसमुत्थानप्रकरण. स्त्रीसंग्रहप्रकरण आदि | याज्ञिकनाथ-जातकचंद्रिका और ताजिकचन्द्रिका नामक अनेक विषय लिखे हैं। तीसरे अध्यायमे' अशौच- ज्योतिमथके रचयिता। प्रकरण, आपद्धर्मप्रकरण, यतिप्रकरण, अध्यात्मप्रकरण, | याज्ञिषय (स० क्ली० ) याशिकानां धर्मः आम्नायो वा पायश्चित्तप्रकरण आदि वातोका उल्लेख किया गया कन्टोगोकथिकयाज्ञिकवहवचनटाञ्चयः । पा ४३३१२६) इति है। याज्ञवल्क्यसंहिताका दायभागप्रकरण आज भी ऽच्य। याज्ञिकका धर्मा, यज्ञ । कानूनके रूपमें माना जाता है। दायभागक वचनों- याशिय ( स० त्रि०) १ यज्ञसम्वन्धीय, यज्ञका । २ यज्ञका को ले कर विज्ञानेश्वर भट्टारकने "मिताक्षरा" और उपयोगी । ( पु० ) ३ यज्ञवेत्ता, वह जो यज्ञोंसे जान- जीमूतवाहनने "दायभाग" नामक ग्रन्थ संकलन किया कार हो। है। आज भी भारतवर्णमें पितृपितामह आदि स्वजन. याज्ञीय-यज्ञीय शब्दका प्रामादिक पाठ। परित्यक्त धन मिताक्षरां और दायभागके अनुसार ही याज्य (सली० ) इज्यते इति यज-प्रयत्। (यजयाच- वांटा जाता है। इधर मिताक्षरा प्रचलित है और वङ्ग- रुचप्रवर्चश्च । पा ७२६६ ) इति कु निषेधः । १ देशमें दायभागका आदर है। मनुसंहितामें उच्चवर्ण- यागलब्ध धनादि, वह धन जो यज्ञमें प्राप्त हुए हों। को निम्न वर्णकी कन्यासे विवाह करनेकी आज्ञा है, (त्रि०) २ यजनीय, यज्ञ करनेयोग्य। परन्तु याज्ञवल्क्यने उसे निषेध किया है। ___"अन्नादेन गाहा मार्टि पत्यौ भार्यापचारिणी। याज्ञसेनी (सं० स्त्री० ) यज्ञसेनस्य स्त्र्यपत्य, यज्ञसेन- गुरौ शिष्यश्च याज्यश्च स्तेनो राजनि किल्बिषात् ॥" अण-ङीष । द्रौपदी। द्रौपदी देखो। (मनु ८३१७) याज्ञायनि (संपु०) यज्ञका गोलापत्य । ३ शिष्य, शासनाई। ४ याजनयोग्य । ५ यक्षस्थान, याज्ञिक (संपु०) यज्ञमह ति यज्ञायहितो वा यज्ञ-ढक् । . १दर्भ भेद, कुश। यज्ञ यज्ञविद्यामधीते वेद वा ढक | यज्ञशाला । ६ देवता, प्रतिमा। २ याजक, वह जो मांगता हो। ३ यज्ञकर्ता, यज्ञ करने याज्या (सं० स्त्रो०) यजन्त्यनया यज् पयत्-टाप् । १ ऋक् । या करानेवाला । ४ गुजराती आदि ब्राह्मणोंकी एक | २ गङ्गा।