पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६३०

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१७ याजि-याज्ञवल्क्यसहिता थे । कवि सस्कृत कलामत् उस-सुमारा ग्रन्थमें इस याइदत्ति ( स० गु० ) यज्ञदत्तका गोत्रापत्य, कुवेर । कविकी जीवनी दी गई है। याशदेव ( स०पू० ! एक प्राचीन ग्रंथकार । याजि ( सं० स्त्रो० ) यज-(पसिवपियजिराजिनजीति । उण याशपत ( स० वि०) यज्ञपतिका भाव । ४११२४ ) इति इञ् । यष्टा, यज्ञ करनेवाला । याज्ञवल्क (स० वि०) याज्ञवल्क्य-संकलित। याजिका (सं० स्त्री०) १ यज्ञ। २ वह उपहार जो पूजा- | याशवल्कीय ( स० पु०) याज्ञवल्क्य-सम्बन्धीय, याज्ञ- 'के समय दिया गया हो। वल्क्यका। याजिन् (संत्रि०) यज-णिनि । यज्ञकारी, यज्ञ करने याशवल्क्य ( स० पु० ) वल्कयतीति वक-अच् यज्ञस्य वल्को वक्ता, तस्य गोतापत्यं ( यज्ञवल्कगर्गादिभ्यो य । पा वाला। याजुक (सं० वि० ) पुनः पुनः यज्ञकारो, चार वार यश | ४।२।१०४ ) इति यङ् । १ धर्मशास्त्र-प्रयोजक एक प्रसिद्ध करनेवाला। ऋषि। वे वैशम्पायनके शिष्य थे। कहते हैं, कि एक याजुर्वेदिक (सं० वि० ) यजुर्वेद सम्बन्धोय। वार वैशम्पायनने किसी कारणसे अप्रसन्न हो कर इनसे याजुष (सं० वि०) यजुष इदमिति यजुष-अण । १ यजुर्वेद कहा, कि "तुम मेरे शिष्य होने के योग्य नहीं हो; अतः सम्वन्धी। २ यजुर्वदाभिज्ञ यज्ञपरिदर्शक । जो कुछ तुमने मुझसे पढ़ा है वह लौटा दो।" इस पर याजुषो अनुष्टुप् (सं० पु० ) एक वैदिक छन्द जिसमें | याज्ञवल्क्यने अपनी सारी पढ़ो हुई विद्या उगल दी जिसे सव मिला कर आठ वर्ण होते हैं। वैशम्पायनके दूसरे शिष्योंने तीतर बन कर चुग लिया। याजुषी उष्णिक (सं० पु० ) एक वैदिक छन्द । इसमें | इसीलिये उनको शाखाओंको नाम तैत्तिरीय हुआ। सात वर्ण होते हैं। याज्ञवल्क्यने अपने गुरुका स्थान छोड़ कर सूर्यकी उपा- याजुषी गायत्री (सं० स्त्री० ) एक वैदिक छन्द जिसमें छः | सना को और सूर्यके वरसे वे शुक्ल यजुर्वेद या वाज. वर्ण होते हैं। सनेयीसहिताके आचार्य हुए। इनका दूसरा नाम यानुषी जगती (सं० स्त्री०) पक वैदिक छन्द। इसमें | वाजसनेय भो था। २एक ऋपि जो राजा जनकके दर- बारह वर्ण होते हैं। वारमें रहते थे और जो योगोश्वर याज्ञवल्क्पके नामसे याजुषो त्रिष्टुप् (सं० पु०) पक वैदिक छन्द । इसमें ग्यारह | प्रसिद्ध हैं। मैत्रेयी और गार्गी इन्हींको पत्नियां थीं। वर्ण होते हैं। ३ योगोश्वर याज्ञवल्क्यके वंशधर पक स्मृतिकार । मनु- याजुषीपंक्ति (सं० स्त्री०) एक वैदिक छन्द जिसमें दश | स्मृतिके उपरान्त इन्हींको स्मृतिका महत्व है और वर्ण होते हैं। उसका दायभाग आज तक कानून माना जाता है। ४ याजुषोवृहती (सं० स्त्री०) एक वैदिक छन्द जिसमें नौ । उपनिपद्भदे, एक उपनिषदका नाम। वर्ण होते. हैं। याज्ञवल्क्यसंहिता-इस संहिताके प्रवर्तक योगीश्वर याजुष्मत (सं० वि०) एक प्रकारकी ईट जिससे यशवेदी याज्ञवल्क्य हैं । उन्होंने सामश्रवा आदि मुनियोंसे वर्णा- बनाई जाती है। श्रमधर्म, व्यवहारशास्त्र तथा प्रायश्चित्त आदिको उपदेश याज्य (सं०नि०) १ यज्ञ कराने योग्य । २ जो यझमें | दिया है। राजर्षि जनकको राजसभामें भी एक याश- दिया या चढ़ाया जानेवाला हो । ३ जो यज्ञ करानेसे | वल्क्यका परिचय पाया जाता है। याज्ञवल्क्य-संहिता- प्राप्त हो, दक्षिणा। कार राथा जनकके सभासद् दोनों यागवल्क्य एक हैं या या (सं०वि०) यशसम्बन्धीय, यक्षका। दो हैं इस विषयमें मतभेद है । कोई कहते हैं, कि जनकके यातुर (सं० पु०) १ऋपभके गोत्रमें उत्पन्न एक पुरुष । सभासद याज्ञवल्क्य ही इस धर्मसंहिताके प्रवर्तक हैं। २ एक प्रकारका साम। किसीका कहना है-उनके वंशधर दूसरे याज्ञवल्क्यने यामदत्तक (स' नि०) यज्ञदत्तसम्बन्धीय, यज्ञदत्तका। | इस संहिताको बनाया था । परन्तु इस संहिताके