पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६३

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Co मुद्रातत्त्व ( यूरोपीय जब महम्मद घोरोके हाथ लगी उस समय दिल्लीके प्रथम की मूर्ति और क्रोसका चिह्न तथा गिर्जेको प्रतिकृति मुसलमान राजाओंने भी चौहान मुद्राके अनुकरण पर रु में अङ्कित होती थी। कहीं कहीं गाथिक शिल्पका मदा चला कर प्रजावर्गको खुश किया था। किन्तु | आश्चर्य निदर्शन देखा जाता है। इस्लाम धर्मशास्त्रमें चित्रकार्यका निषेध रहनेसे मुसल नवयुगके सर्वप्रधान अननायक और प्रवर्तक मान राजोंने मुद्रा पर चित्राङ्कित करना धीरे धीरे उठा सम्राट् फ्रेडरिक थे। उन्होंने अपनी मोहरमें आपुलिया- दिया जिससे भारतीय मुद्राशिल्पका विलकुल अधःपतन के नर्मान ड्यु कोंका अनुकरण किया था। मध्ययुगको हो गया। मुद्राने फ्रान्समें अच्छी उन्नति की। पीछे स्कन्दनाभीया, ___ मध्ययुग तथा वर्तमान यूरोपखण्ड । कटहल, इङ्गलैण्ड और अरवोंको मुद्रा तमाम प्रचलित सुप्रसिद्ध प्रलतत्त्वज्ञ केरी (CF. Kcury) ने ' हुई। इस समय स्पेन आदि देशोंमें मुसलमानोंका विभिन्न युगको मुद्राओंका काल-निर्णय इस प्रकार किया अभ्युदय था, इसीसे यूरोपीय मुद्रा शिल्पमें अरवी मुद्रा- का अनुकरण देखा जाता है। प्रथम युग-रोमसाम्राज्यके पतन (४७६ ई० )-से फ्लोरिन मुद्राके एक भागमे 'वैप्तिष्ट' जान (Johan लेकर जर्मन सम्राट् सरलीमेन ( Charlemagne)- i the Baptist) और दूसरे भागमें एक कुमुदकुसुम है। के शासनकाल ७६८ ई० तक। इसका वजन ५४ प्रेन है। शिल्प सौन्दर्यमें फ्लोरिन द्वितीय युग-सारलीमेनके समयले कारलो भिङ्गि- मुद्रा विशेषरूपसे प्रशंसनीय है। फ्लोरेन्स नगरको यन ( Carloringian )को मुद्रा तमाम यूरोपमें फैल वाणिज्य विस्तृतिके साथ साथ यूरोपखएडमें तमाम गई। यह मुद्रा स्वावियन (Swabian) वंशले शासन लोरिन मुद्राका अनुकरण होने लगा १२८० ई० में काल १२६८ ई० तक प्रचलित है। भिनिस नगरमें फ्लोरिनके अनुकरण पर मुद्रा ढलने लगी। ततोय युग-या उदीयमान नवयुगकी मुद्रा (Rent- | इसके एक भागमें दण्डायमान योशखए और दसरे issance), इस गुगमें १२५२ ई०को फ्लोरेन्स नगरकी कारिण सेण्टमार्क ( SLMurlk ) से डोज ( Doge ) का पताका मुद्राके प्रचारसे ले कर पौराणिक (Classical) साहित्य ! (gontalon) ग्रहण चिलित है । यह रुपया 'डुकाट नामसे के अभ्युत्थान १४५० ई. तक। चलता था। उस समय जेनोआ नगरकी मोहर भी चतुर्थ युग-पौराणिक नवयुग १४५० से १६५० बहुत प्रसिद्ध थी। मिस्रके मामलुक सुलतानोंने इटली ई. तक। मुद्राके ढंग पर मोहरका प्रचार किया था। पञ्चमयुग-वर्तमानकाल। १५वीं सदीमें जब यूरोपका साहित्याकाश नवोदित प्रथम युगमें वाइजन्तियम-साम्राज्यके अभ्युदय काल पौराणिक भावके प्रकाशसे प्रकाशित हो उठा तभी में अनष्टसंसियसके समय प्रथम युगको मुद्राका आरम्भ वर्तमान मुद्राशिल्पको उत्पत्ति हुई । जर्मनोमें १५१५ ई०. है। असभ्य वर्वरोंने रोम साम्राज्यका अधःपतन करके | को 'डालर' नामक रुपयेका प्रचार हुआ। यही रुपया रोमक मुद्राके अनुकरण पर सैकड़ों नई मुद्रा चलो है। उस समय यूरोपका प्रधान और सर्वत्र प्रचलित समझा उस समय पातलकी मुद्राका ही अधिकतर प्रचार देखा जाता था। इसके वादसे ही वर्तमान मुद्राशिल्पका जाता है। इटलीके अद्भागों, अफ्रिकाके भेण्डालों, एकदम अध:पतन हो गया। जर्मनमुद्राके साथ साथ स्पेनके मिसिगों, गलके फ्रांकों और लम्बादियोंने इस 'शिवलिङ्ग' नामक रौप्यखण्ड प्रचलित हुआ। तभीसे २० शिलिङ्गका एक पौंड मानो जाने लगा है। . समय नाना प्रकारके टङ्क निर्माण किये थे। ये लोग साधारणतः मोहरका व्यवहार करते थे। ___जो हो, १४५०से १५०० ई० तक मुद्राशिल्पकी वडो द्वितीय युगमें मोहरका व्यवहार घट गया और रौप्यः उन्नति हुई थी। इनमेंसे जर्मन और इटलीके शिल्पो हो खण्डका प्रचार शुरू हुआ। इस युग में खष्टान सम्राटों- । श्रेष्ठ भासन पानेके योग्य हैं। इन सब शिल्पियोंने