पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६२५

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६२२ याजपुर अधीनता स्वीकार कराई थी। और तो क्या, इस जैन-। काल्पनिक है। सोमव'श शब्दमें विस्तृत विवरण देखो। राजके समय कलिङ्ग उन्नतिको चरम सीमा तक पहुंच सोमवंशीय राजाओंकी शरभपुर (वर्तमान शंम्बल गया.था तथा मगधसे शाकद्वीपो सौर ब्राह्मण उत्कलमें। पुर) में राजधानी थी। इस वंशके 'महाभवगुप्त' उपाधि- जा कर रहने लगे थे । समुद्र के किनारे उनके यत्नसे। धारी महाराजाधिराज त्रिकलिङ्गाधिपति जनमेजय देवने कोणार्क नामक मित्रमूर्ति प्रतिष्ठित हुई। तभोसे यहां-। कटकमें आ कर राजधानी वसाई। जनमेजयके पत्र के ब्राह्मण 'कोणार्क' शाखा कहलाने लगे। खण्डगिरि 'महाशिवगुप्त' उपाधिधारी ययातिराज (१०वीं सदीमें ) आदि नाना स्थानोंमें जैन और सौर प्रभावका निदर्शन | पहले विनीतपुरमें और पीछे अपने नामानुसार प्रतिष्ठित दिखाई देता है। ययातिनगरमें राज्य करते थे। भुवनेश्वरका प्रसिद्ध ४थी शताब्दीमें उत्कल मगधके गुप्तसम्राटोंके । लिङ्गराजके मन्दिरका मूलगृह इन्हींका बनाया हुआ है। अधिकारमुक्त हुआ था। उनके अधीन सामन्तराजे। उनके पुत्र 'महाभवगुप्त' उपाधिधारी भोमरथदेव भी इसी उत्कलका शासन करते थे। इस समय तमाम वैष्णवों- ययातिनगरमें राज्य करते थे। ताम्रशासनसे उसका पता की तूती बोलने लगो । महाभारतोक्त समुद्रगर्भसंलग्न । चलता है। इस ययातिनगरमें बहुत दिनों तक उत्कल- महावेदीस्थ विराष्ट्रपुरुषरूपी (दारुब्रह्म) विष्णुमूर्तिका राज्यको राजधानी रही। इस ययानिनगरसे हो समस्त इसी समय उद्धार हुआ । ठो सदी तक यह स्थान | उत्कल प्राचीन मुसलमोन इतिहासामे 'जजनगर' या गुप्तसाम्राज्यमुक्त रहा । इस समय बहुत-सी देवदेवी 'जाजनगर' नामसे प्रसिद्ध है। वर्तमान याजपुरको ही मूर्तियां भी प्रतिष्ठित हुई थी। इस समम मध्य प्रदेशमें बहुतोंने 'ययातिनगर' वतलाया है । याजपुर बहुत पहलेसे शवर लोग प्रवल हो उठे थे । ६ठीं सदीमें गुप्तसाम्राज्य एक प्रधान हिन्दूतीर्थ समझे जाने पर भी ययातिराजके जब विमुक्त हुआ, तब शवरोंने उत्कलके नाना स्थानों समयसे ही उत्कलकी राजधानी कह कर प्रसिद्ध हुआ। को अधिकार कर लिया । पहले जो जाति फलमूल ) सोमवशके अन्तिम राजा उद्योतकेशरी थे। इनके बाद खा कर पनत और वनमें रहती थी, धोरे धीरे हिन्दू./ गङ्गवशोय चोड़गङ्गने उत्कलराज्य पर आक्रमण किया। संस्त्रवमें आ कर सभ्य हो उसने उत्कल और मध्यप्रदेश चोड़गङ्गके पितृपुरुषगण गक्षामके अन्तर्गत कलिङ्गनगरमें के कितने स्थानों पर अधिकार जमा लिया था। जगन्नाथ राज्य करते थे । गञ्जाम और गोदावरीके उत्तरवत्ती देखो। शिरपुरसे आविष्कृत शिलालिपिमें उदयन और नाना स्थानोंसे चोड़गङ्गाके पूर्णपुरुषोंकी वहुत-सी शिला उनके लड़के इन्द्रबलको शवरवंशीय बतलाया गया है। लिपियाँ और ताम्रशासन आविष्कृत हुए हैं।* इन्द्रबलके पुत्र ननदेव थे। नन्नदेवने चन्द्रगुप्त और | गङ्गेश्वर चोड़गड ६६ शक (१०७६-७७) में राज्या- महाशिवगुप्त (तीवरराज) को गोद लिया था। ये दत्तक- भिषिक्त हुए। उसके बाद ही उन्होंने उत्कलविजयको पुत्र शायद उच्चजातिके थे। क्योंकि, परवत्तीं शिलालिपि | चड़ाई कर दी। उत्तरमें गङ्गासे ले कर दक्षिणमें गोदा- और ताम्रशासनमें इस वंशके राजगण 'पाण्डुवंशीय' वा वरो तक विस्तीर्ण जनपद उनके अधिकारभुक हुआ 'सोमवंशीय' कह कर परिचित हैं। गुप्तसम्राट को इस था। चोड़गङ्गने मन्दार (आईन-इ-अकंवरीका सरकार वंशके सभी राजे अपने नामके साथ 'गुप्त' उपाधियुक एक खतन्त्र नामका व्यवहार करते थे। इस वंशके दो * गाङ्गेय शब्दमें विस्तृत विवरण लिखा है । गाझेय शब्द राजाओंकी 'केशरी' उपाधि थी जिससे मादलापञ्जी और लिखे जानेके बाद गझवशीय राजाओंकी बहुत-सी शिलालिपियां उड़ीसांके इतिहासमें इस वंशके राजगण 'केशरी' नामसे और ताम्रशासन आविष्कृत हुए जिससे अभी गङ्गवशियोंका वर्णित हुए हैं। किन्तु मादलापञ्जीके अनुसार उड़ीसाके | इतिहास बहुत कुछ परिष्कार हो गया है । अतः आज वककी इतिहासमें केशरीवंशकी जैसी वशतालिका और राज्य- आविष्कृत शिलालिपि और ताम्रशासनकी सहायतासे जो इतिहास काल दिया गया है वह अधिकांश हो अनैतिहासिक और निर्णीत हुआ है, वहीं संक्षेपमें लिखा गया। -