पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६२३

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याजपुर ग्राम है, जहां चण्डेश्वरस्तम्भ खड़ा है। वह चारों ओर सैकडों ऋषिसे युक्त और द्विजोंसे वेष्टित यह यज्ञभाम अभी जङ्गलसे ढका है, यालिदल उस स्थानमें जाते हैं, वैतरणी नदोके उत्तरो किनारे अवस्थित है। यह वर्ग- इस कारण उसके बगल ही एक छोटी कुटी बना दी गई। गामी व्यक्तिके लिये देवयान-पथस्यरूप है। पूर्वकालमें है। स्थानीय लोग उसे सभास्तम्भ कहते है । वह सभा- ऋषि और अन्यान्य महात्माओंने इस स्थान पर यज्ञ किया स्तम्भ ३६ फुट १० इञ्च लम्बा है। था। इसी स्थान पर रुद्रने देवयज्ञमें पशु ग्रहण किया इस स्तम्भके ऊपरका शिल्पकार्य बौद्धसम्राट अशोक और कहा था, कि यह भाग मेरा है। रुद्रदेवके पशुहरण द्वारा प्रतिष्ठित लाटक जैसा है। सम्भवतः बौद्धयुगमें करने पर देवताओंने उनसे कहा, 'माप परस्वद्रोह न करें: वह बनाया गया होगा। उसके ऊपर जो गरुड़मूर्ति समस्त यशीय भाग लेनेकी इच्छा न रखें। पीछे उन्होंने प्रतिष्ठित हुई थी वह शायद परवर्त्तिकालमें वैष्णवराज- कल्याणरूप वाक्यमें उनका स्तव और इष्टि द्वारा सन्तुष्ट वंशक द्वारा ही बनाई गई होगी। वह गरुड़मूर्ति अभी कर सम्मान किया। इसके बाद वे पशुत्याग कर देव. स्तम्भसे प्रायः ॥ मील दूर एक ठाकुरवाड़ीमें रखी हुई यान पर चढ़ चले गये । इस सम्बन्धमै रुद्रकी जो गाथा है। स्तम्भक मूलदेशमें छिद्र देख कर बहुतेरे अनुमान है उससे मालूम होता है, कि देवताओं ने रुद्रके भयसे फरते हैं, कि पठानों ने रस्सी बांध कर खीचनेक लिये उन्हें सभी भागोंसे उत्कृष्ट सद्योजात भाग देनेके लिये उस स्तम्भमें छेद किया था। सङ्कल्प किया।' जो मनुष्य इस स्थानमें इस गाथाका __याजपुरसे १॥ माल एक मैदानमें पत्थरकी गड़ो हुई। गान कर स्नान करते हैं उन्हें देवयान पथ दिखाई देता प्रतिमूर्ति पाई गई है । अभी वह तीन खण्डों में विभक्त । है। इसके बाद महाभाग पाण्डवोंने द्रौपदीके साथ वैत- हो गई है। चूड़ासे ले कर नाभि पन्ति फुट रणीमें अवतीर्ण हो पितृलोकका तर्पण किया। .. श्व तथा उरुसन्धिसे पादसन्धि तक ७ फुट ११ इञ्च (महाभारत वन० ११४ १० १-१३) लम्बा है। स्थानीय लोग उसे शान्तमाधव (कृष्णको महाभारतके उक्त विवरणसे मालूम होता है, कि एक मूर्ति ) कहते हैं। किन्तु उस मूर्त्तिके वांए हाथमें | धर्मने यहां पर यज्ञ किया था, इसी कारण परवत्तीकाल में पद्म और चूड़ा पर बुद्धका मूर्ति अङ्कित रहनेसे बहुतेरे | यह स्थान यशपुर और उसीके अपभ्रंशसे याजपुर फह- उसे पद्मपाणि बोधिसत्त्वकी मूर्ति बतलाते हैं। अभी | लाने लगा है। वह महकूमेकी कचहरी में रखी हुई है। ___ ब्रह्मपुराणमें स्वयं ब्रह्माने कहा है, "विरजादेशमें ___याजपुर निकटस्थ नरपड़ा प्राममें प्राचीन कीर्तिके | ब्रह्माणी द्वारा प्रतिष्ठित विरजामाता वर्तमान है। उनके निदर्शनखरूप एक समाधिस्तूप (Tumulus) रखा हुआ दर्शन करनेसे सात कुल पवित्र होते हैं। जो भक्तिपूर्वक है। स्थानीय लोग उसे राजा ययातिदेवके प्रासादका | उन्हें प्रणाम और पूजन करते हैं, वे वंशसहित मेरे लोक- अंशविशेष कहते हैं। यहांके तितुलामाल प्रामका ११ / में आते हैं। इस विरजादेशमें उक्त देवीमूर्तिके अलावा गुम्बजवाला पुल बहुत पुराना है। उसकी गठन पुरीके | और भी अनेक भक्तवत्सला सर्वपापनाशिनी वरदायिनी आठारनाला-पुलकी जैसी है। देवीमूर्ति तथा सर्वपापहरा बैतरणीनदी विराजित हैं। प्राचीन तीर्थप्रसङ्ग। इस वैतरणीमें स्नान कर लोग सभी पापोंसे मुक्त होते

'याजपुर एक बहुत प्राचीन तीर्थ है। महाभारत हैं। फिर यहां स्वयं विष्णुके नामिपा पर जो खयम्भू.

पढनेसे मालूम होगा, कि पञ्चपाण्डव यहां तीर्थ करने मूर्ति विराजित हैं उनके दर्शन कर भक्तिपूर्णक प्रणाम आये थे । वनपर्व (११४ अ०)में लिखा है- करनेसे विष्णुलोकको प्राप्ति होती है। कापिल, गोग्रह, 'ये सब देश कलिङ्ग कहलाते है। इस प्रदेशमें | सोम, अलाबू, मृत्युञ्जय, कोड़तीर्था, वासुक, सिद्धेश्वर वैतरणी नदी बहती है। यही पर धर्मने देवताओंके और विरज, इन सब तोर्थों में जा कर यदि संयतेन्द्रिय शरणागत हो यज्ञ किया था । पहाड़ोंसे सुशोभित | हो विधिवत् स्नान और वहांके देवदर्शन, प्रणाम और