पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५९४

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यशोहर तीनों विभागोंके नाम हैं चिङ्गोटी (वर्तमान चिङ्गटिया | एक युद्धप्रिय राजा रहते थे। वे स्पर्शमाणको पा कर परगना), पपगा और हागल । इस यशोरकी दोनों वगल नित्य उसकी पूजा करते थे। रामदास नामक एक व्यक्ति हो कर भैरव नदी वहती थी। ऊर्धाम्नायतन्त्रमें उक्त बड़े कौशलसे उस स्पर्शमणिको चुरा ले गया। मणिके भैरवनदीको उत्पत्ति लिखी है। यहां महादेवके मस्तक- नहीं मिलने पर मार्तण्डने प्राण दे दिया था। से सतीदेवोको वाहु और पद गिरे थे, इसी कारण । 'इस यशोरके मध्य ५०० ग्राम हैं जिनमें ६० प्रधान इसका यशोरेश्वरी नाम पड़ा है। अनरी नामक एक | हैं। दो नगरी तो जनसाधारणका चित्त चुराती है। ब्राह्मणने जंगलमें देवीका प्रासाद वनवाया था जिसमें / इच्छामतीके तोरवत्ती ईश्वरीपुरमें महेश्वरी विद्यमान है। सौ द्वार लगे थे। पीछे गोकर्णकुलसम्भूत धेनुकर्ण यहां पर सतीका हाथ पांव गिरा था। इच्छामती और नामक एक क्षत्रिय राजा यहां आये। उन्होंने जङ्गल सूर्यजयाके सङ्गम पर कासारण्यके मध्य देवघट्ट है। 'कटवा कर यशोरेश्वरीके निकट पक्के का घर निर्माण | यहां बहुतसे सिद्ध ब्राह्मण और वैष्णव रहते हैं । इच्छा किया । वल्लालसेनके पुत्र लक्ष्मणसेन यशोरका सेनहट्ट मतीके पार्श्वमें हो द्विजक्रियात्मक कुशद्वीप है। एतद्भिन्न ग्राम वसा कर यशोरेश्वरीके समीप एक शिवमन्दिर पांसा, विषादपल्ली, लक्ष्मीप्रिय कुलानाम (वर्तमान वनवा गये हैं। धेनुकर्णके पुत्र कण्ठहार वङ्गभूषणने लक्ष्मीकोल वा लक्ष्मीपाशा), नवावाद, जिनावाद, भूषण ( वर्तमान भूषणा)को जोत कर यहां बहुत दिन' आवेदनपुर, जानावाद, पाञ्चाल, ब्रह्मड़ी, आसक्तिपुर, रूप- तक राज्य किया था। कण्ठहारके वोर्णसे नोचयोनिज वती (स.पसा) तीरवत्ती दश प्राम, सारस, रिष्णिक, पुत्रगण जङ्गलवाधा और चालियावेष्टा प्राममें रहते थे। चित्रानदोके समोप महम्मद और सुधीपुर, आमवात, चालियावेष्टक वैदिक ब्राह्मणवंशीय रायके अधीन था। मुण्डमाला, मुखालिभ्रमर, राजवीथि, तारावीथि, असित- एतद्भिन्न यशोरमें निरामय, पममाग, दक्षिणडि, नरेन्द्र, प्राम, धूलीपुरो, ताम्रड़ी, परमानन्दकण्टक, कुल कास, छयपरिया, वनग्राम आदि समृद्धिशाली हैं। मुसल दिलाकास, धन्यनाम, विद्यग्राम, माहाड़, परशुग्राम, मानोंके उत्पातसे कितने प्रोम उजड़ गये, कितने लोग कातर, पानसाह, ताकि, वृन्दावनपुर, रामपुर, कामसागर जातिच्युत और स्थानच्युत हुए, उसको शुमार नहीं। भल्लूक, नलद (नलदी), मन्दार, मामूद आदि नदीके भैरवनदीको छोड़ कर रूपसा, बलेश्वरी, वाडालनखा, किनारे अवस्थित हैं। धूम्रघट्टपतनमें प्रायः सौ वर्षसे वासागादि, कालनजीरा, गड़ा, मधुमती आदि सोते ऊपर राज्य करनेके वाद कायस्थराजोंके साथ दिल्लोश्वर- इस वशोहरमें वहते हैं।' का विवाद खड़ा हुआ । उसोसे कायस्थ-राज्य चौपट लग इसके बाद प्रायः दो सौ वर्ष पहले पशोरका रूप गया। (म० ब्रह्मखण्ड ११ म०) फैला था, इस सम्बधमें भविष्य-ब्रह्मखण्डमें यों लिखा। ___ यह जिला विद्यालयमें बहुत पिछड़ा हुआ है। जिले भरमें १ शिल्प कालेज, ८५ सिकेण्डी, १२२५ प्राइमरी 'जव सतीकी देहको शिर पर लिये सदाशिव देश और ३० स्पेशल स्कूल हैं। इनमें से नरालका विकृोरिया देश घूमते थे, उस समय सतोकी वाहु और पैरका एक कालेज, कालिया, मागुरा और यशोरके हाई स्कूल भाग यशोरमें गिरा। उसीके गिरनेसे इसका यशोर नाम प्रधान हैं। स्कूलके अलावा २० अस्पताल हैं। पड़ा। वौद्ध और जैनप्रभावके भयसे कितने लोग यशोर २ उक्त जिलेका एक उपविभाग। यह अक्षा० २२ आ कर बस गये थे। मुसलमानी अमलमें यशोरेशी | ४७ से २३ २८ उ० तथा देशा० ८८५६ से ८६२६ महादेवो अंतर्हित हुई। युगके प्रभावसे सुन्दरी ब्राह्मण- पू०के मध्य अवस्थित है। भूपरिमाण ८८६ वर्गमील कन्या मुसलमानोंका भजन करने लगीं। इसी कारण और जनसंख्या ६ लोखके करीव है। इसमें यशोर यहाँके अधिवासिगण भी म्लेच्छप्राय हैं। इच्छामतो | नामक १ शहर और १५०० ग्राम लगते हैं। नदीके किनारे धूम्रघट्ट नामक स्थान मार्तण्डराय नामक ३ उक्त जिलेका प्रधान शहर । यह अक्षा० २३.१०