पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५९३

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५६० यशोहर मन्दिर प्रतिष्ठित है। दशभुजा-मन्दिरमे १६२१ शकका , केन्द्र है । नाना-स्थानोसे यहां पण्यव्यादि विकने आते हैं। उत्कीर्ण शिलाफलक दिखाई देता है। वाणिज्य द्रव्यों में खजूरका गुड़ और चीनी प्रधान है, नदी

. 'दुर्गके पश्चिम कानाईनगर नामक छोटे प्राममें १७०३ | और खालको छोड़ पमो सकसे वैलगाड़ी हार भोपाल

ई०का सीताराम राय द्वारा प्रतिष्ठित श्रीकृष्ण मन्दिर पहुंचाया जाता है। १८८४ ई०में यहां वी, सी रेलवेके देखा जाता है। धेष्टलैण्ड साहब उसका शिल्पनैपुण्य | खुल जानेसे कलकत्तेसे माल लाने की बड़ी सुविधा हो देख कर बड़ी तारीफ कर गये हैं। देवमन्दिरफी वगलमें गई है। कलकत्तेके सियालदहसे यशोनगर.७४ मील रामसागर और कृष्णसागर नामक दो बड़ी दिग्गी विद्य- | और खुलनासे ३५ मील दूर पड़ता है। धाईतलासे मान है। चाकदा ( वक्रदह ) तक २७ कोसको. एक पक्की सड़क . १८३५ ई में महम्मदपुरमें महामारी उपस्थित हुई। दौड़ गई है। वह सड़क यशोरनिवासी काली पोहार इस समय यशोरसे ढाका पर्यन्त रास्ता बनाया जा रहा | नामक एक धर्मात्मा व्यक्तिको कीर्ति है। उन्होंने था। प्रायः ७०० कुली जब रामसागर और हरेकृष्णपुर देशवासियोंको जिससे गङ्गास्नान करने में सुविधा हो, प्रामके मध्य काम करते थे, उसी समय उन लोगोंके मध्य | उसो लिये वहुत रुपये खर्च करके वह सड़क बनवाई महामारीका प्रकोप देखा गया । थोड़े ही दिनोंके अन्दर | थी। इच्छामती; कपोताक्ष, बेता, भैरव और घाईतला महम्मदपुर थाना जनशून्य हो गया। साथ साथ | खालके ऊपर जो पुल हैं वह भी उन्हींको कीर्ति है। उन- माचीन समृद्धिका ह्रास भो' होने लगा। अभी मह के वनवाने में भी बहुत रुपया खर्च हुआ था। उस सड़क म्मदपुर थानमें लोगोंका वास रहने पर भी राजा सीता की मरम्मत के लिये वे कलकर वहादुरके हाथ एक राम रायकी प्राचीन कीर्ति-रक्षाका कोई उपाय न किया | तालुक छोड़ गये हैं 1. उसीको आयसे सड़क मरम्मत गया। होती है । फलकचेसे गवर्मेण्टका रास्ता वनग्राममें इसके ' एतद्भिन्न इस स्थानमें और भी कितने मन्दिर तथा | साथ मिल गया है। ....... .. . अट्टालिकादिके निदर्शन पाये जाते हैं। वे सभी ध्वस्त | | गुड़, नील, चावल, मटर, कलाय आदि अनाजं यहां- 'और जङ्गलपूर्ण हैं। निविड़ जङ्गलके मध्य उस लुप्त का प्रधान वाणिज्यद्रव्य है। सुन्दरवनविभागसे काठ; मधु गौरवका उद्धार करना सहज नहीं है। इस जिलेके और शम्बूकादि वेचनेके लिये लाये जाते हैं। अभी नील- उत्तर जिस प्रकार उत्तरराढीय कायस्थ-कुलतिलक राजा की खेती उठ गई है। . . सीतारामकी कोत्ति विद्यमान है उसी प्रकार सुन्दरवन-| वङ्गालका विख्यातं साप्ताहिक पत्र 'अमृतबाजार विभागमें वङ्गज कायस्थ-प्रधान महावीर प्रतापादित्यकी पत्रिका' पहले इसी जिलेसे.निकलता था। अभी कल- ईश्वरीपुरो (यशोर) का ध्वस्त निदर्शन आज भी इधर, फत्तेमें स्थानान्तरित हो कर द्विसाप्ताहिक और दैनिक- उधर विणरा. हुआ देखा जाता है। वह अभी खुलना | रूपमें निकलता है। जिलेके अन्तभुक्त हो गया है। . . . . . प्रायः तीन सौ वर्ष पहले यशोर जिलेका कैसा . इस जिलेमें ३ शहर और ४८६४ ग्राम लगते है । जन-: आकार था वह हम लोग 'दिग्विजय प्रकाश से बहुत संख्या १८ लाखसे ऊपर है। मुसलमानकी संख्या सबसे कुछ जान सकते हैं। कविरामके 'दिग्विजय प्रकाश' में .. ... . ज्यादा है, क्योंकि बहुत दिनों तक यह स्थान मुसलमान- लिखा है-... :. . . शासनके अधीन रह चका है। . .. .. .. . पश्चिम सीमामें कुशद्वीप, पूर्व में भूषण और बाकला- इस जिलेके मध्य यशोरनगर, कोटचांदपुर, केशव की सीमा मधुमतीनदी; उत्तरमें केशवपुर और दक्षिणमें पुर; नलखङ्गा, चौगाछा, मागुरा, मिनाईदह, चांदसालो, सुन्दरवन, चारों सोमाके मध्यवत्ती २१ योजन परिमित बाजुरा,. विनोदपुर, नडाल, लक्ष्मीपाशा, वसन्दिया, : स्थान यशोर कहलाता है। फिर इसके मध्य दक्षिण नेपाहा आदि नगर और बड़े,वडे, ग्राम स्थानीय वाणिज्य- उत्तर और पूर्व क्रमसे तीन देश वा विभाग हैं। इन