पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५९२

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५८६.. यशोहर रामदेवरायकी ब्राह्मण और मुसलमान फकीरके प्रति, जिलेका भूपरिमाण बहुत घट गया । पीछे नदियांसे विशेष श्रद्धा थी। उनके वंशधर रघुदेव १७३७ ई में | वनग्राम उपविभागको यशोरमें मिला देनेसे इसने वर्त- मुर्शिदाबाद के नवावका आदेश पालन न करनेके कारण | मान आकार धारण किया है। अभी यशोरके जजको राजभ्रट हुए । इसके तीन वर्ष वाद नवाव वहादुरने कृपा | विचारार्थ फरीदपुर नहीं जाना पड़ता। भिन भिन्न दरसा कर इन्हें फिर सम्पत्ति लौटा दी। १७७३ ई में | जिलेमें भिन्न भिन्न विचारक निर्दिष्ट हुआ है। राजा देवरायकी मृत्यु होने पर वह सम्पत्ति तीन भागोंमे खुलना, फरीदपुर और वागेरहाट देखो। बंट गई। उनके औरसजात पुत्र महेन्द्र और रामशङ्कर, वर्तमान यशोहरके मागुरा उपविभागके अंतर्गत प्रत्येकको २का ५वा अंश तथा दत्तक गोविन्दको १का महम्मदपुर एक प्रसिद्ध स्थान है। यहां वङ्गाली वीर ५वा अंश मिला । महेन्द्र और तेयानीकी सम्पत्तिका सीतारामका कोत्ति-निकेतन आज भी अतीत स्मृतिकी अधिकांश नडालके प्रसिद्ध रायवंशीय जमोदारोंने घोषणा करता है। खरीद लिया। दूसरे अंशका इन्दुभूषण देवरायके पोष्य- राजा सीताराम रायने मधुमती नदीके किनारे मह- पुत्र राजा प्रथम-भूषणदेवराय भोग करते हैं। म्मदपुर नगर वसाया। प्रवाद है, कि एक दिन वे घोड़े इसके अतिरिक्त और भी कितने जमींदार यहां वास करते है। उनमें से श्रीधरपुरके वसुचंश, नडालके राय पर चढ़ कर महम्मदपुरके निकटवती अपने श्यामनगर (दत्त) वंश, तैलकूपीके मुशीवंश और भाटपाड़ाके तालुकमें टहल रहे थे। इसी समय एक जगह कीचड़- में घोड़े का खुर धंस गया। राजाने आसपासके देवरायवंश उल्लेखनीय है। १७८१ ई०में यह जिला अङ्गरेजोंके दखलमें आया। कृषकोंको खुर उठानेके लिये बुलाया। वे लोग आये इस समय भारतवर्षके गवर्नर जेनरलने यशोर नगरके और उस जगहकी जमीन खोदने लगे। खोदते समय उपकण्ठस्थित मुरली नगरमें एक अदालत खोलनेका | शिवका त्रिशूल और लक्ष्मीनारायणकी मूत्ति पाई गई। हुकुम दिया । इसके पहले १७६५ ईमें वङ्गालकी राजा सीतारामरायने वहां मन्दिर तथा बहुतसे मकान दोवानी पानेके साथ साथ यहांकारजस्व अङ्गरेजी कम्पनी वनचा दिये और पीछे अपनो राजधानी भी वहीं वसाई । ही उगाहती थी । मि० हेनकल ( Mr. Henakal) सीताराम राय देखो। यहांक सर्व प्रथम जज और मजिष्ट्रेट नियुक्त हुए। आज भी महम्मदपुर में जो सब भग्नावशेष निदर्शन उन्हींक नामानुसार हेनकल गजका बाजार वसाया जङ्गलावृत हो .पड़े हैं उनमें खाई और चहारदीवारीसे गया। उनके वाद १७८६ ई०में मि० वक आ कर यशीर युक्त चतुष्कोण दुर्ग ही प्रधान है। वही महम्मद खो नगरको विचार-अदालत दूसरी जगह उठा ले गये। नामक मुसलमान फकोरके नामानुसार महम्मदपुर नाम- विख्यात अङ्गरेज औपन्यासिक थैरेके पिता मि० आर से प्रसिद्ध है । पूरवमें नारायणपुर तथा पश्चिममें कनाई- थैकरे १८०५ ईमें यहां राजख-संग्राहकके पद पर | नगर और श्यामनगर नामक प्रामके मध्य नगरको भग्न नियुक्त हुये। अट्टालिकादि देखी जाती हैं। रामसागर, सुखसागर, ___ अगरेजोंके अधीन मानेके बाद इस जिलेमें अनेक | सीताराम राजाके सेनापति मेनाहातोकी पद्मपुष्करिणी, वार राजनैतिक परिवर्तन हुभा है। पहले यशोर और सीतारामका वासभवन और उसकी बगलमें धनपुष्करिणी फरीदपुर जिला एक विचारकके द्वारा शासित होता था, मौजूद है। शेषोक्त सरोवरमें राजा सीताराम अपना उस समय इच्छामतीके पूर्वदिक वत्ती २४ परगनेका भी धनरत्न डुवा कर रखते थे। मि. वेटलैण्ड जव महम्मद- कुछ अंश यशोरके अधीन था। अनेक परिवर्तनके पुर देखने आये थे, तब उन्होंने पुष्करिणीके चारों ओर वाद आखिर १८८२ ई०में वागेरहाट और खुलना उप- | ईटोंकी दीवार भग्नावस्थामें देखी थी। उस पुष्करिणी- विभाग ले कर जव खतन्त्र जिला गठित हुआ, तव इस के दक्षिण दशभुजाका मन्दिर और लक्ष्मीनारायणजीका Vol, ITIII, 148