पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५८३

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यशोवन्त सिंह था, इसलिये शाहजहांने यशोवन्तसिंहको गोण्डवाना. वतको अपने साथ ले सुजाके विरुद्ध युद्धयात्रा कर दो। नामक स्थानके युद्धमें भेजा । १६५८ ई०में शाहजहानके | औरङ्गजेव आगे आगे जाता था। यशोवतने बड़े पीड़ित होने पर उनका बड़ा लड़का दाराशिकोह राज- कौशलसे उसकी रसद आदि लूट कर मारवाड़ भेज दी प्रतिनिधिके पद पर नियुक्त हुआ। उसने यशोवत- और दारासे मिलनेके लिये मागरेकी ओर प्रस्थान किया। सिंहकी वीरताका परिचय पा कर उन्हें पांच हजारी | किंतु दारा दाक्षिणात्यसे लौटने भी न पाया था, कि मनसबदार बनाया और राजप्रतिनिधिके पद पर नियुक्त औरङ्गजेब राजधानी में जा धमका। अतः यशोवतको कर मालव भेजा। इस समय दाक्षिणात्यका शासन दलवल के साथ खदे श लौटना पड़ा। कुछ दिन बाद फर्ता औरङ्गजेव पिताकी पीड़ितावस्था सुन कर वागी | दारा मैरता नामक स्थानमें यशोवतसे मिला। किंतु हो उठा। उसका दमन करनेके लिये आगरेसे एक बड़ा उस समय राजस्थानके सभी राजोंने औरङ्गजेवकी अधी- सैन्यदल भेजा गया। राजपूतानेके सभी राजे इस | नता स्वीकार कर ली थी। युद्ध में शामिल थे। राजा यशोवत सिंहने उस सम्मि- औरङ्गजेवने जब देखा, कि यशोवत जैसे वीरपुरुष लित सैन्यदलके प्रधान सेनापतिके पद पर अधिष्ठित दाराको सहायतामें है, तव उसके सिंहासनका पथ हो दाक्षिणात्यकी यात्रा कर दी। उज्जयिनीसे साढ ! निरापद नहीं। इस कारण उसने यशोवतका अपराध सात कोस दक्षिण यशोवन्तने छावनी डाली। औरङ्ग- क्षमा कर कहा, "यदि आप दाराकी सहायता न करें, जेव भी अग्रसर हो कर युद्ध में प्रवृत्त हुआ। किंतु तो आपको गुजरातका शासनकर्ता वना दूं।" यशोवतसिंहकी अनवधानतासे औरङ्गजेवने षड़यंत्र यहां पर दाराका पक्ष छोड़ देनेसे ऐतिहासिकोंने कर यशोवतके अधीनस्थ सभी मुसलमान सेनाको यशोवतके चरित्र पर दोष लगाया है। किंतु कोई अपने काबू कर लिया। अव यशोवतके पास केवल । कोई उसका समर्थन करते हुए कहते हैं, कि यशोवतका तीस हजार राजपूत-सेना रह गई। फिर भी वे हताश उद्देश्य कुछ और था। अव यशावत औरङ्गजेवके न हुए और उसी मुट्ठी भर सेनाको ले कर युद्धक्षेत्रमें कूद आज्ञानुसार महाराष्ट्र-अधिनायक शिवाजीके विरुद्ध पड़े। उन्होंने भाला हाथमें लिये अपनी मावुर नामको ' रवाना हुए। दिल्लीसे कुमार वाजिसने आ कर उनका घोड़ो पर सवार हो औरङ्गजेव पर आक्रमण कर दिया। साथ दिया। यशोवतने छिपकै शिवाजीकी सहायता इस वार दश हजार मुसलमान सेना धराशायी हुई। कर साइस्ता खाँका प्राण लेनेका सङ्कल्प किया। फरासी भ्रमणकारी वणियरने अपनी आँखोंसे यह घटना औरङजेव यशोवतकी चालवाजो देख कर उन्हें देखी थी। फेरिस्ताका कहना है, कि यशोवतने वीरत | हैरान करनेके लिये कौशलजाल फैलाने लगा। दिखला कर विजय प्राप्त की थी। अनग्राना लेखकोंने तदनुसार उसने यशोवतको गुजरातका प्रतिनिधि यशोवन्तकी हार वताई है। उक्त युद्ध में १५०० राजपूत वना कर वहाँ भेजा। किंतु गुजरात पहुच कर यशोवंतने सेना खेत रही। पराजित पतिको वापिस आये देख देखा, कि वहां एक दूसरे राजप्रतिनिधि पहलेसे ही हैं। यह यशोवन्तको स्त्रीने क्रोध और अभिमानसे नगरका द्वार देख कर वे बड़े दुःखित हुए और वहांसे फौरन मारवाड़ बंद कर दिया था। बने जब देखा, कि यशवंतके जीवित कुछ समयके वाद औरङ्गजेव वृद्धपितामाताको रहते उसका कल्याण नहीं, तब वह उनसे छुटकारा कैद कर दिल्लीके तख्त पर बैठा। जयपुर-राजके हाथ | । पाने के लिये तरह तरहका षड़यंत्र रचने लगा। उसने यशोवतको कहला भेजा, कि उसके सब अपराध ___उसने पुनः यशोवन्तको दिल्ली बुलाया। निभीक माफ कर दिये गये। यशोवत बादशाहका अनुग्रह यशोवत उसी समय वहां पहुंच गये । औरङ्ग- देख दिल्ली आये, किंतु मन ही मन औरङ्गजेवके साथ | जेवने कावुलके अफगान वद्रोहका दमन करनेके लिये वदला चुकानेका उपाय ढूढने लगे। औरङ्गजेवने यशो- समस्त राठौर सेना और सपरिवार के साथ यशोवतको लौटे।