पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५७७

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यशोवन्तराव सन्धिके बाद यशोवस्तराव मालवके अन्तर्गत पैतृकराज्य महाराष्ट्र सेनादलको परास्त कर अंगरेजी सेना में गये। इस समय यशोवन्त पेशवाको गुप्त अभिसंधि- दाक्षिणात्यके नाना स्थानों में फैल गई। लेकिन उत्तर- में शामिल हो कर कहीं अगरेजके विरुद्ध खड़े न हो। भारतमें रह कर अंगरेजसेनापति लाडे लेक होळकरको जावें, इस भयसे गहरेज-गवर्मेण्ट होलकरके साथ मेल } बाट जोह रहे थे। उनके वचनों तथा विरोधी ममो- करनेको आगे बढ़ी। पड़यन्तकारो महाराणदलने उनसे | भावकी ओर लक्ष्य करके लार्ड लेकने अच्छी तरह समझ सहायता मांगते हुए, जब उन्हें दाक्षिणात्य बुलाया तव लिया था, कि यशोवन्त राव एक ज एक दिन अंगरेजोंके उन्होंने बड़े दुःखित हो कर अपनी भसम्मति प्रकट की विरुद्ध भत्रधारण करेंगे हो। इस समय दोनामें बन्धुता- थी। किंतु इनके हृदयमें जो कोई थी उसे इन्होंने भागे सूचक पत्रोको अदलबदल किया गया। किन्तु सत- चल कर कर्मक्षेत्र में दिखला दिया था। कालीन भारतराजप्रतिनिधि जेनरल लेकको सूचना दी १८०३ ई०के महाराष्ट्र युद्धके समय यशोवन्त मालव गई, जिससे "होलकर बहुत जल्द अंगरेजी सीमासे में रहकर भारतका माग्यचक्र और अंगरेजराजको रुख अपना सेना-दल हटा ले जायें। वे राजपूत अथवा देख रहे थे, किन्तु भारतवर्षकी ऐसी दुदिनके समय भी। अन्यान्य जातिके ऊपर अपना अधिकार रखनेके लिये जो इन्होंने लुण्ठनवृति छोड़ी नहीं। शत्रु मित्र दोनोंसे वे सेना रखेंगे उसे अंगरेज-राज किसी हालत खोकारसे मन्यायपूर्वक अर्थ संग्रह करते थे। जब अंगरेजी। नहीं कर सकते तथा उनके और उनके भाई काशीरावमें जयवार्ता भारतवर्षके चारों ओर प्रतिध्वनित होने लगो, जो विवाद चला आ रहा है, अंगरेज गरमेण्ट पेशवासे तव इन्होंने स्वकपोलकल्पित दुरभिसन्धिको कार्य में परि- सलाह ले कर उसका निवटारा करेगी। तदनुसार णत करनेकी आशासे धीरे धोरे भरतपुरराज, रोहिला यशोविन्तराव अपनी सेनाको दूसरी जगह ले जानेके लिये गण, सिखसम्प्रदाय और राजपूत वीरोंसे सहायता मांग तैयार हो गये तथा उन्होंने रामगढ़ में सेनापति लेकके मेजी। वे चाहते थे, फि महाराष्ट्र और अंगरेज-युद्धमें स्थापित शिविरमें वकील भेजे। जब एक पक्ष कमजोर हो जायगा, तव दूसरे पर चढ़ाई वकीलोंने अंगरेजी शिविरमें आ फर कहा कि, 'यशो- कर अपनी प्रधानता लाभ करनेमें सुविधा होगी। किन्तु व पूर्व प्रथानुसार चौथ उगाहेंगे। बुन्देलखण्ड तथा इनका यह उद्देश्य सिद्ध नहीं हुआ। इन्होंने सिन्दे- | गङ्गा और यमुनाफे मध्यवत्ती इटावा आदि धारह जिले राजको दूतके हाथ कहला भेजा, कि अंगरेजोंके साथ जो उनके अधिकारमें ही रहेंगे। सिन्दराज के साथ अंग- सन्धि हुई है, उसे तोड़ कर फिरसे युद्धक्षेत्रमे कूद पड़े। रेजोंकी जो सन्धि हुई है, उस शर्त के अनुसार यशो- किन्तु सिन्दे-राजने इस प्रस्तावको स्वीकार न किया; वन्तके भी साथ मंगरेजोंको एक नई सन्धि करनी क्योंकि, एक वार रणक्षेत्रमें वे लाञ्छित हो चुके हैं, अव पड़ेगी और उनका पैतृक हरियाना प्रदेश उन्हें लौटा फिरसे चिरशन यशोवन्तके जाल में चे फसना न चाहते देना होगा।" थे। उन्होंने अंगरेज-गवमें एटके प्रति सहानुभूति दिख- होलकरका यह प्रस्ताव अंगरेजराजने स्वीकार नहीं लाने तथा उनका अनुग्रह पानेकी आशासे यशोचन्तकी / किया। क्योंकि उन्होंने जो सब प्रदेश जीते हैं वे सभी कूटनीति उन्हें लिख भेजी। अंगरेजरेसिडेण्टको यह इस समय दुसरेके हाथ हैं, अतः उनकी प्रार्थना स्वीकार संवाद देनेके बाद भी महाराष्ट्रीय प्रधान प्रधान अमा- न की गई। आखिर दोनों पक्षमें वाद-विवादके बाद त्योंने सिन्देराससे यशोवन्तके साथ मेल करने और यही तय हुआ, कि अगरेजी सीमा छोड़ कर यदि होल. अंगरेजों के विरुद्ध खड़े होनेरे लिये अनुरोध किया था। करन चले जायगे, तो उनके साथ अंगरेजोंकी मिलता क्योंकि, उनका विश्वास था, कि यशोवन्तके अमिततेजसे न रहेगी। महाराणशक्ति पुनः सोवित हो सकती है। · परन्तु दोनों पक्षकी सन्धिका प्रस्ताव ले कर प्रायः ६ सप्ताह सिन्देराजने किसी को भी बात पर कान नहीं दिया। | वीत गये। इसी समय यशोवन्तरावने जनरल