पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५६३

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५६० यवन-यवनदेशज 'वर्तमान चीनसाम्राज्य के दक्षिण इस यूनान यो यवन । प्राप्तिके लिये महादेवके आश्रयमें उन्हीं के प्रसन्नार्थ नामक प्रदेशको उत्तरी सीमा पर जिचुएन, पूर्वमें क्युचाउ तपस्या करने लगे। बारह दिनमें भगवान् महादेवने प्रसन्न और कोयांसी। दक्षिणमें ब्रह्म और लाउ जातिकी वास- हो कर उसे वरदान दिया। पीछे निःसन्तान यवनेश्वर भूमि तथा पश्चिममें ब्रह्म और भूटान अवस्थित है। इस- उसको आदरके साथ राजमहलमें ले गये। यवनेश्वरीके का वर्तमान क्षेत्रफल प्रायः १ लाख ८ हजार वर्गमील | सहवाससे गायके एक सन्तान उत्पन्न हुआ। इसका है। यूनानफू इसका प्रधान नगर है । मेइकन (मेकिय), नाम कालयवन पड़ा। पोछे कालयवनके जवान होने सालविन (सालुएन), किनसाकियां और सोङ्गका नदी पर यवनेश्वर उसी पर राज्यभार अर्पण कर आप अरण्य- ही यहांकी प्रधान नदियां हैं। शेपोक्त नदी वहती हुई वासी हुए। एक समय कालयवनने नारदसे यादवोंकी सागरमें मिल गई है। इसी नदीसे बाणिज्य- प्रसासनी। रमले उसलेaai प्रशंसा सुनी। इससे उसने ईर्ष्यावश बहुसंख्यक म्लेच्छ कार्य चलता था। यूनान ता-लो फू हो कर ब्रह्मके भामों ! फौजोंको एकत्र कर मथुरा आ यादवों पर चढ़ाई नगर तक एक बड़ा पथ है। यूनानी-वणिक् इसो पथसे कर दी। चीजें ले कर ब्रहमें आते और खरीद फरोख किया करते इसके बाद कृष्णने एक ओरसे कालयवनके आक्र- थे। यूनानसे काण्टन नगर तक एक प्राचीन वाणिज्य तथा दूसरी ओर जरासन्धके आक्रमणसे व्याकुल हो पथ गया है। इसी पथसे व्यवसायो अपनो चीजें पहले समुद्रके किनारे द्वारकापुरो नामकी एक नगरी वसाई । काएटन नगरमें, उसके वाद सम्भवतः जहाजसे समुद्रपथ इसी पुरीमें मथुरावासी लोगोंको रख कर स्वयं मथुरा में द्वारा भारत में ले आते थे। रहने लगे। यहां प्रचुर सोना और चांदी मिलती थी ; सीसा, पीछे कालयवनने मथुराको घेर लिया, तो कृष्ण लोहा, तांबा, दस्ता और मूल्यवान् माणिक्य आदि मथुरासे निकल उसके सामने आये। श्रीकृष्णको देखते पत्थरोंका भो अभाव नहीं। इन्हीं सव चोजोंका वहांके । कालयवन उनका अनुगामी हो गया। श्रीकृष्णने भी अधिवासी स्थल और जलपथसे व्यवसाय किया करते। मुचुकुन्द नामक राजा जहां शयन करता था, उसी गुहा- थे। चीन देखो। में प्रवेश किया।कालयवनने उस गुहामें प्रवेश कर कृष्ण जान कर सोये हुए मुचुकुन्द पर चरणप्रहार किया। डाकर चुकाननने ८वीं और वीं शताब्दीमें तुगभद्रा मुचुकुन्दको निद्रा भङ्ग हुई। क्रोधित हो मुचुकुन्दने नदीके तौर पर एक यवन-राजवंशका उल्लेख किया है। उठके उसको देखा। उनकी क्रोधाग्निसे ही कालयवन जोनकन नामक स्थानके अधिवासी वहांकी लव्वईजाति भस्म हो गया। (विष्णुपुराण ५॥२३ अ.) 'यवन' नामसे परिचित है। जोनकन भारतके दक्षिण- २ सिहक, सिलारस ।३ गोधूम, गेहूं ! ४ गजर; गजरा। पश्चिम प्रायद्वीप भागमें अवस्थित है। ५ तुरुष्क, तुर्क जाति । ६वेगाधिकाश्य, तेज घोड़ा। ३ एक प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् यवनाचार्य । ७वेग। "जातं दिन दूपयते वशिष्ठश्चाष्टौ च गर्गो यवनो दशाहम् । (त्रि०) यतौति पु(नन्दिग्रहीति । पा ३।१।१३४) . जन्माख्यमास किल भागुरिश्च ते विवाहे क्षुरकर्णवेधे ॥" इति ल्यु । ८ वेगविशिष्ट, वेगी । ६ यवनदेशीय भश्व, (तिथितत्त्व), अरवी घोड़ा। . . ४ कालयवन नामक असुरभेद। इसका उत्पत्ति- यवन--नक्षत्रचूड़ामणिके रचयिता। विवरण विष्णुपुराणमें इस तरह लिखा है, गोष्ठोमें सव | यवनक ( स० पु०) १ गोधूम, गेहूं। यवन स्वार्थे कन् । यादवोंके सामने गायको उसके सालेने नपुसक कह २ यवन देखो। कर उपहास किया था। इससे गाय॑ वहुत क्रोधित हो | यवनदेशज (स० वि०) यवनदेशे जातः जन-ड। दक्षिण समुद्रके किनारे यदुवंशियोंके भयकारी एक पुत्र: पवनदेशजात, यवनदेशमें जन्म लेनेवाला ।