पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५६२

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यवन ध्वजकृत ग्रन्थमैं 'यवन' उच् प्रयोग रहनेसे अनुमान यूक्लिड-यवन-गणितवेत्ता। ईसासे ४ शताब्द पून। होता है, कि वराहके पूर्व और तो क्या-शकारम्भके पूर्व हिपार्कस (Hipparchus-यवन ज्योतिपी ईसासे अनेक यवन जातक-ग्रन्थकार विद्यमान थे। री शतान्दो पूर्ण। ___ आज भी रमल, ताजिक आदि शब्दों को देखते हुए शपश्विम-भारतमें समागत यूनानी यवनके सिवा यह कहना पड़ता है, कि हमारे देश में यवन-सम्पदायका | भारत के पूर्वी किनारे भी हम यवनों के आनेका उल्लेख प्रणोदित ज्योतिःशास्त्र बहुत दिनों से चला आ रहा है। पाते हैं। राजा ययातिकेशरीके राजाकालमें उड़ीसेमें रमल फेकनेकी अपेक्षा विदेशीय ताजिक गणना इस देश-| यवन-विप्लव हुआ था । यह यवन कहांसे आये ? में अधिक प्रचलित है। अरवोमें ताजिक शब्दका अर्थ | पहले हो हम कह आये हैं, कि यूनानी यवन वौद्ध- अरदी तथा तुर्क जातिके भिन्न किसी गैर जातिके लोग प्राधान्य समय में हिन्दूके संग मिल कर हिन्दु भावापन्न हैं। अतएव पारस्यवालोंको ताजिक कहनेमें कोई हर्ज नहीं हो गये थे। अतः तब फिर इन साम्प्रदायिक यवनों का है । और भी देखा जाता है, कि दामोदरके पुत्र बलिभद्र ! अस्तित्व तक न रह गया। ईसाक यों शताब्दीमें कृत हायनरत्नमें लिखा है,--"यवनाचार्याने पारसी, अरवो यवन वणिक -सम्प्रदाय पश्चिम भारतके किनारे भाषामें ज्योतिशास्त्रके एकदेशरूप फलशास्त्र प्रणयन देशो में वाणिज्य व्यवसायके लिये आया करते थे। किया था। समरसिंह आदि ब्राह्मणो ने उसी ग्रन्थको सव मध्यभारत तक नाना स्थानों में वाणिज्य करनेक संस्कृत भाषामें लिखा।” दुण्डिराजतनय गणेशने (प्रायः । लिये फैल गधे थे वे सामान्य वणिक्वेशमें ही भारतमें १४८० शकमें) ताजिकभूपण-पद्धतिमें लिखा है,- । आते थे। भारतवासियों से प्रतिद्वन्द्विता कर उन सवों ने " गर्यवनैश्च रोमकमुखैः सत्यादिभिः कीतितम् । , कभी शत्रताचरण नहीं किया। महम्मद इवन कासिमके शास्त्र ताजिकसंज्ञक" अव देख पड़ता है, कि केवल डाहिरको पराजय कर पश्चिम भारत जीत लेने पर भी पारिभाषिक अरवी शब्दसे नहीं, वरं प्राचीन ग्रन्थ आदिके उसका अधिकार स्थायो न हो सका । गजनीके महमूदके प्रमाणसे भी ताजिक ग्रन्थका यावनिकत्व प्रमाणित होता आक्रमणके वादके सिवा भारतमें मुसलमान यवनों का है। ताजिक शास्त्रमें गर्गका नाम देख दीक्षितका कहना राज्याधिकार नहीं हुआ। फिर उस प्राचीन समयमें है, कि ताजिक शाखाको कोई कोई संज्ञा यवनसे प्राप्त त: उड़ीसमें जो यवन हिन्दुओं राजा द्वारा हराये जा कर यूनानी यवनों के भी बहुत पहलेसे ज्योतिर्वेत्ताओं- । भागे वे किस देशसे भारतवर्ण गाये थे? ___ इतिहास पढ़नेसे मालूम होता है, कि भारतके का विशेष आदर और यथेष्ट प्रभाव था । इन सब महा- पश्चिमी किनारेके देशों में जैसे अरवी वणिक, जहाजसे पुरुषों का केवल नाम लिखा गया।:-- | आ कर चीजों को खरीदते घेचते थे वैसे ही भारतके अरिष्टकोस् ( Aristarchus-ईसासे ४थी शताब्दी पहले) पूर्वाञ्चलमें भी चीनी वणिक 'जङ्क नामक जहाज द्वारा इरातस्थिनिस् ( Eratosthenis " श्री " आ कर व्यवसाय वाणिज्य किया करते थे। चीनके तलेमी (तुरमय ) ( Ptoleny-ई० सनकी पहली दक्षिण और ब्रह्मके उत्तर सालूइन नदी पर यूनान शताब्दीमें ) इसने मिजास्ति ( Almagest) रचा था। प्रदेश अवस्थित है। यह प्रदेश भारतके पूर्वोत्तर सोमान्त पौलस ( Paulus Alexandrius) यवन फलित पर बसा है, इससे इस देशके अधिवासियों ने ज्योतिर्वेत्ता। यह ईसासे पूर्ण तीसरी शताब्दीमें मौजूद | भारत आनेमें विशेष सुविधा थी। इस यूनानसे आविष्कृत थे। बहुतेरों का अनुमान है, कि पोलिससिद्धान्त भी | शिलालिपिमें और अनामसे प्राप्त पत्थर पर भो इस देश इसीका रचा हुआ है। के अधिवासी यवन नामसे लिखे गये हैं। कहनेका मड-(यवन) यूनानी ज्योतिपी। इसने जातककी | प्रयोजन नहीं, कि यह चोन प्रान्तवासी भी न्दुिभों को रचना की है। | इष्टिमें सच्छ ही समझ जाते थे।