पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५५७

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यवनं बन कर अपनेको राजा होनेको घोषणा कर दी। अन्ति- | पनिसस (ककेसस) पार कर भारतकी ओर आने लगा। ओकको मृत्यु, युवराज सैल्युकस कल्यानिकके साथ तुरमय) काबुलमें आ कर उसने उस देशके राजा सुभगसेनके वरगातका युद्ध और अपने भ्राता अन्तिभोक हीराक्षके गृह- साथ मित्रता स्थापित की। राजा सुभगसेन जलौक विवाद आदि घटनाओंसे वलसंग्रह करनेके लिये देवदत्त- | नामसे भी परिचित थे। को अपूर्व सुअवसर मिल गया था। सैल्युकस इस युथिदमासके राजत्वकालमें उसका पुत्र देवमित्र विषद्के समय शत्रुपक्षको वलवान् देख उसे दण्डविधान-! योनसेना ले कर भारतको जीतनेके लिये चला । भारतके के लिये आगे न बढ़ा, इसलिये राजा कबूल कर उसे| नाना स्थानोंसे मिले देवमित्रके चौकोन सिक्के से उसकी अपने पक्षमें मिला लिया जिससे वर्तमान युद्ध में उससे | भारतविजय प्रमाणित होती है ! इस चौकोन सिक्क में कुछ सहायता प्राप्त हो। इसका कोई उल्लेख नहीं है, खरोष्ठी वर्णमालामें लिखा है, 'महरजस अपराजितम कि सैल्यु कसकी ओरसे युद्ध करनेके लिये देवदत्त अर्स- | देवमिलियुस" अर्थात् “महाराज अपराजितस्य देवमित्रस्य' केदके राजा त्रिदत्तके विरुद्ध पारद-रणक्षेत्रमें अवतीर्ण सिवा इसके द्रावो, और जटिनकं लिखे इतिहासको हुआ था या नहीं। जप्टिनका कहना है, कि सम्भवतः पढ़नेसे मालूम होता है, कि वालिकस्थ यवन-राजाओ- उसकी मृत्युके वाद निदत्त द्वारा फिरसे पारद या के अभावसे भारतमें जो यवनराज्य स्थापित हुआ, पार्थिवराज्यका उद्धार हुआ था। सेल्युकस कल्याणिक वह अधिकांश मिलिन्द और देवमित्रके वोव्वलसे ईसाके २४६ वर्ष पहले सिंहासन पर बैठा था। अतएव अधिकृत हुआ था। उसके अन्ततः ३ या ४ वर्षे पीछे देवदत्तको स्वाधीनता ईसासे १६० वर्ष पूर्व देवमित्रने सिहासन लाभ और युद्धमें साहाय्य देनेकी कल्पना की जा सकती है। किया था। पोलिवियासके वर्णनानुसार मालूम होता सैल्युकसकी पहली या दूसरी पारदकी यात्राके है, कि वह जवानी में पितृवैरी अन्तिमोककी सभासे संधि- समय सम्भवतः देवदत्त (ईसाले २४०वर्ष पहले) वाहिक- प्रस्ताव ले कर गया था। उस समम उसकी सौम्य- सिंहासन पर बैठा होगा। सेल्युकसको सिरीया विद्रोह- | मूर्ति देख कर योनराज अन्तिमोक चकित हो उठे और दमनके लिये आगे बढ़ते देख त्रिदत्तने अपने राज्यका उसको अपनी कन्या देनेकी इच्छा प्रकट की। यही उद्धार किया। इस समय वाहिकराजके साथ पारद-/ यही जवान देवमित्रने पिताकी आज्ञासे परो. राजका सद्भाव स्थापित हुआ। किन्तु उनकी यह पनिसास ( निषध ), अराकोसिया ( आक्षोंद) और मित्रता अधिक दिनों तक टिक न सकी। त्रिदत्त द्वारा | द्रामियाना आदि देशोंको जीत लिया था। इसके बाद वाहिकका कुछ भाग अधिकृत होने पर वाहिकवासियोंने | उसने दक्षिणकी ओर जा कर यूक्रोटिस पर आक्रमण अपने राजाको पदच्युत कर दिया। इस समय वाहि | कर उसे घेर लिया। अन्तमें उसके हाथसे पराजित हो राज्यमें अशान्ति मच गई ; अन्तमें वैदेशिकोंने भाकर कर वह अपनी भारतीय राज्यको समर्पण करने पर वाध्य राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया। हुआ (ईसासे १७५ वर्ष पूर्ण )। उसने सम्भवतः ईसाके २२० वर्षसे १६० वर्ष पूर्व तक वाह लिक | ईसासे १६५ वर्ण पूर्ण तक राजत्व किया था। मिलिन्द राज्यमें योनराज युथिद्मासका राज्यकाल है। युथिद- 1 और देवमित्र दोनों ही बौद्धधर्मानुरागी ये।। मास मप्र सियाका रहनेवाला था। सलौकीवंशीय ३रे __ युक्रेटिस (ईसासे १६०-१६०वर्ण) पूर्ण वालिकराज्य- अन्तिोकके साथ अरिसस नदीके किनारे युथिदमासका | की दक्षिण ओर राजत्व करता था। यह देवमित्रका युद्ध हुआ। युद्ध में पराजित हो कर युथिदमासके | समसामयिक है । पीछे उक्तराज को राज्यच्युत कर युक्र. आत्मसमर्पण करने पर अन्तिउकने उससे कितने ही टिसने पहले वाइलिक सिंहासन और पीछे परोपनिसीय हाथी ले उसको वाह लिक सिंहासन पर बैठाया | (निषध ) भारत पर अधिकार किया ' थोड़ी-सी फौजों- (ईसासे २०६ वर्ष पूर्व )। इसके वाद अन्तिोक परो- को ले देवमित्रको पराजित करना • अवश्य ही उसकी