पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५५

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मुद्रातत्त्वे ,भारतीय) प्रस्तुत हुई है, मियूसको मुद्रा भी उसी श्रेणोको है,-1 किया था उस समय उनके अधीन लिअक-कुसुलकके इसमें नन्नया देवीका मुंह है। कनिष्क, हुक और पुत्र पतिक क्षत्रप थे। तक्षशिलासे उनका जो तान- वासुदेव इन तीनों कुशंन राजाओंकी मुद्रा में भो उसी शासन आविष्कृत हुआ उसे पढ़नेसे मालूम होता है, कि प्रकार देवीमूर्ति अङ्कित है। कासगरके निकट भी कुछ वे छहरात और चुक्ष-सम्प्रदायके क्षत्रप थे। उसी छह- शकमुद्रा आविष्कृत हुई है। उनमें भारतीय खरोष्ठी और रातवंशमें महाक्षत्रप नहपानका जन्म हुआ था। वे चोनलिपि विद्यमान रहनेके कारण वहुतोंकी धारणा है, समस्त महाराष्ट्र और सुराष्ट्र के अधिपति थे। सुराष्ट्रसे कि भारतीय शक्ति यहां तक फैली हुई थी। | जो सव शाक-मुद्रा पाई गई हैं उनमें नहपानको मुद्रा कुशन-बंशके जिन सव राजाओंने पञ्जाव पर अघि- प्रथम है। ये आन्ध्रराजसे पराजित और राज्यच्युत कार जमाया उनमें कुजुल-कसस (Kujula kadphises) | हुए थे। इन्होंके समय राजपूतानेमें शकाधिप चष्टनका प्रधान थे। उन्होंने ग्रोक-पति एरमैयस ( Hermaeus) अभ्युदय हुआ था। धीरे धीरे ये मालव और सुराष्ट्र- के राज्यको हड़प कर लिया था। इसी कारण उनको के अधिपति हो गये थे। इन्हींसे 'शकान्द' प्रचलित मुद्राके एक ओर प्रीकलिपिमें एरमैयसका नाम और हुआ है। इन्होंने मुद्रा-प्रचार किया तथा राज्यको सीमा दूसरी ओर खरोष्ठी अक्षरमे 'कुजुल-कसस' नाम देखा भी बहुत दूर तक बढ़ाई, परन्तु पीछे उनके मरने पर जाता है। प्रायः १० ई०सनमें कुजुलकससकी मृत्यु उनके लड़के जयदाम पितृगौरवको रक्षा न कर सके। हुई। पीछे उनके वंशधरने पञ्जावसे यमुना तकके जयदामके पुत्र रुद्रदामने अपने वाहु-वलसे विशाल राज्य- विस्तीर्ण जनपदको अपने अधिकारमें कर लिया। पुरा- को अधिकार कर 'महाक्षत्रप' की उपाधि प्राप्त की । उन- वित कनिहमका अनुमान है, कि वे ही 'कुजलकर कद्- को तथा उनके वंशनरोंकी मोहरोंमें 'रण्ण महाक्षपस' फिसेस' नामसे तथा 'देवपुत्र' उपाधिसे भूषित हुए हैं। ऐसा लिखा है। पोछे हम लोग हिम-कद्दफिसेसकी मुद्रा पाते हैं। इनके शकशासन-मुद्रा। उत्तराधिकारियोंकी चेष्टासे जो सव स्वर्ण मुद्रा प्रचलित | निषध ( Paropanisus ) पर्वतके ऊपर अक्षु प्रवा- हुई, वह ४थी शताब्दीमें गुप्तराजाओंके समय तक चलतो हित जनपदोंमें तथा कावुल उपत्यकामें शकशासनका रही । उस समय कुशनोंको वड़ो बड़ी स्वर्णमुद्रामें सुवर्ण मोहरादि पाई गई है। पारस्यके शासनराज २य होरम- की मिलावट थी। हिम-कदुफिसेसकी मोहरमे ग्रीक और जद्ने (३०१-३१० ई० सन्में) कावुलकी कुशन-राज- सरोष्ठी लिपि रहने पर भी उनके परवत्ती तीन कुशन कन्याका पाणिग्रहण किया। उस सूनसे दोनों जातिको राजाओंको मुद्रा पर केवल प्रोकलिपि देखो जाती है। मिलनसूचक मुद्रा प्रचलित हुई। शासनाधीन अक्षु इसके बाद हम लोग प्रवल पराक्रान्त शककुशनराज (Oxus ) प्रदेश हूणोंके अधिकारमे आने पर भी वहां कनिष्क और हुविष्कको मुद्रा देखते हैं। इन दोनों इस प्रकारको मिश्रितमुद्रा पाई गई थी। इस समयकी राजाओंकी मुद्रामें साम्य धर्मनीतिका चित्र है। वैदिक दूसरो दूसरो मोहरों में शासन-राजाका शिरोभूषण तथा आवस्तिक, बौद्ध, शाक और प्रोक देवदवियोंकी मूत्ति । भ्रष्ट प्रोकलिपिमे नाम और उपाधि अङ्कित हुई है। दोनोंकी मुद्रा पर अङ्कित है। शकाधिप वासुदेवकी किदार-कुशनमुद्रा। मुद्रा पोकलिपियुक्त होने पर भी पहलेकी मुद्रामें शिव ___चीन इतिहाससे मालूम होता है, कि महा युपति और नन्दिमूर्ति तथा पीछे की मुद्रामे बैठी हुई देवीमूर्ति | | (Vueti ) दलपति कि-तो-लो जव हूणोंसे तंग तंग आ चित्रित है। इनके बाद प्रोकलिपिके बदले में अस्पष्ट | गया, तब वह निषध पर्वतको पार कर गान्धारराज्य नागरीलिपि व्यवहत हुई। भारतवर्षमैं हूणके शासन- | आया और कावुल तथा पंजावका ( ४२५ ई०सन् ) काल तक इसी प्रकारकी मुद्रा प्रचलित रहो। अधिकारी वन वैठा। कि-तो-लो कुशनमुद्रोक 'किदार' शकक्षत्रपोंकी मुद्रा। माना गया है। किदारवंशकी मोहरोंका विबल और जिस समय शक-महाराजने मोग-आधिपत्य विस्तार