पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५४०

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ययाति-यलाइन्द '५३७ राजा शिविने भी ययातिसे कई प्रश्न किये और ठीक देवगण इनके यक्षमें हमेशा उपस्थित रहते थे। ठोक उत्तर पा कर अपना पुण्य उन्हें देनेको तैयार हो गये, ययातिकेशरी-उडीसाके एक राजा। उन्होंने उत्कलसे किन्तु ययातिने अङ्गीकार न किया। । यवनोंको भगा कर केशरीवंशकी प्रतिष्ठाकी थी। श्री- ___ अनन्तर भष्टकने ययातिके ऐसे कार्य पर आश्चर्या- जगन्नाथदेवको पुरीके मन्दिर में लाना तथा भुवनेश्वर- न्वित हो उनसे पूछा, 'राजन् ! सच सच कहें, आप का विख्यात शिवमन्दिरका मूल घर बनाना, इनके जीवन- कहांसे आये हैं, किनके लड़के हैं और आप स्वयं कौन का मुख्यकार्य था । याजपुरमें उनको राजधानी थी। हैं ? आपने जैसा किया है, वैसा जगत्में कोई भी ११वीं सदीमें घे राज्य करते थे। जिस समय वौद्ध- ब्राह्मण वा क्षत्रिय नहीं कर सकता।' उत्तरमें ययातिने धर्मको प्रज्वलित आग हिन्दूधर्मको धाय धाय करके कहा, 'मैं नहुषका लड़का और पुरुका पिता हूं, ययाति जला रही थी, उस समय मगधराज ययातिकेशरी मेरा नाम है। मैं इस पृथिवी पर सार्वभौम राजा था।। उत्कलदेशमें गये और उन्होंने उत्कलमें पुनः हिन्दूधर्म- तुम मेरे परम आत्मीय हो इसलिये तुमसे कहता हूं, की प्रतिष्ठा को। वीर और धर्मप्रेमी ययातिकेशरोके कि मैं तुम लोगोंका मातामह हूँ। मैंने सारी पृथिवी प्रभावसे असंख्य बौद्धमन्दिरों में हिन्दू देवताओंकी मूर्तियां जीत कर ब्राह्मणोंको पत्र दिये तथा पवित और सुरूप । स्थापित की गई। सोमव श देखो। एक सौ घोड़े देवताके उद्देशसे उत्सर्ग किये थे। जो ययातिपतन ( सं० क्लो०) महाभारतके अनुसार एक मैं एक बार कह देता था, वह निष्फल नहीं जाता था।' तीर्थका नाम । मेरे हो सत्य द्वारा आकाशमण्डल और वसुन्धरा अव- 'ययातिपुर-यानपुर देखो। स्थित है तथा मर्त्यलोकमें अग्नि प्रज्वलित होती है। । ययातोश्वर (सं० पु०) शिव । यही कारण है, कि साधु लोग सत्यकी ही पूजा करते ययावर (सं० पु० ) १ नानास्थान-भ्रमणकारी, वह जो . हैं। जितने मुनि और देवगण हैं, वे सभी एक सत्य- बहुत जगह घूमता हो । २ अनियताश्रम तापसभेद । • निष्ठा द्वारा ही पूज्यतम होते हैं। | ययि (सं० वि०) या-कि द्वित्वश्च । गमनयुक, इसके बाद ययातिने अपने नातियोंसे मुक्तिलाभ कर | जानेयोग्य । कीर्ति द्वारा पृथिवीको व्याप्त करते हुए मित्रोंके सहित ययी (सं० पु०) यायते प्राप्यते भक्तै-रिति या ( ययोःकित् स्वर्ग गये । जो राजा ययातिका वृत्तान्त पढ़ता च ।उण ॥१५६ ) इति ईद्वित्वञ्च । १ शिव, महादेव । है उसकी सभी विपद् दूर हो जाती है। २ अश्व, घोड़ा। ३ मार्ग, रास्ता । (भारत ११७८-९३ म०) ययु (सं० पु० ) यातीति या (योद्धे च। उण १।२२) इति जगत्के आदि ग्रन्थ ऋग्वेदसंहितामें भी हम लोग उ, द्वित्वञ्च, यजत्यनेनेति यज-3 पृषोदरादित्वात् यस्य राजा ययातिका उल्लेख पाते हैं। यत्वमित्यमरटीकायां रघुनाथः । १ अश्वमेधीयाश्व, . 'मनुषदग्ने अङ्गिरस्वदझिरो ययातिवत् अश्वमेध यज्ञका घोड़ा। ३ सामान्यघोटक, साधारण सदने पूर्ववन्छुचे ।" (ऋक् १।३१।३७) । घोड़ा 'ययातिवित् यया ययाति म राजा गच्छति' (सायण) | यहि (स' अव्य ) जब, यदि। यह ययाति राजा नहुषके पुत्र थे। “ययाते] नहु- | यलधीस (स० पु० ) राजा।। पस्य वर्हिषि देवा आसते तेऽधिन्न वन्तु नः। . | यलनाथ (संपु०) राजा। (ऋक् १०६२१) यलमलय-मद्रासप्रदेशके मदुरा जिलान्तर्गत एक नगर। 'ये देवा नहुषस्य नहुपपुत्रस्य ययातेरेतन्नामकस्य | यला (सं० स्त्री०) पृथ्वी । राजर्षिर्गहिषि यज्ञ आसते ।' (सायणा); यलाहन्द (सं० पु०) राजा। Vol. xviil, 135