पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/५३८

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ययाति ५५ लिये प्रार्धाना को थी, अतः धर्मसङ्गात जान कर ही मैंने ! लिये तुम्हे शाप देता हूँ, तुम्हारे वंशमें कोई भी राजा ऐसा किया, कामवशवत्ती हो कर नहीं। किसी गम्या, न होगा। कामिनोके ऋतुरक्षाके लिये प्रार्थना करने पर जो व्यक्ति ' पीछे राजाने तुर्तासुको बुला कर अपना बुढ़ापा उसीकी ऋतुरक्षा नहीं करता, ब्रह्मवादी ब्राह्मण उसे लेने कहा। दुर्गसुन भी यदुको तरह अस्वीकार कर भ्रूणहा कहते हैं । इस पर शुक्राचार्य वोले, 'तुम मेरे ! दिया। इस पर ययातिने शाप दिया कि, मेरे हृदयसे अधीन हो, अतएव तुम्हें मुझसे पूछ लेना था, लेकिन ' जम्म ले कर तुमने मेरी बात न सुनी, यह जो पाप ऐसा किया नहीं। धर्मविषयमें जो इस प्रकार मिथा-' हुआ, उससे तुम्हारी सभी प्रजा नाश होगी। जिनके चार करता है वह चोरोके दोषसे दोपित होता है।' आचार और धर्म नहीं, जो प्रतिलोमाचारी, मांसासी, शुकाचार्याके शाप देने पर ययाति अपनी यौवनावस्था - अन्त्यज और गुरुपत्नीमें आसक्त हैं, जो तिर्यक योनिको का परित्याग कर वाक्यको प्राप्त हुए । अनन्तर उन्होंने तरह आचरण करते तथा जो पापिष्ठ और म्लेच्छ हैं, तुम बड़े कातर भावमें ऋषिसे कहा, 'मैं यौवनावस्थामें देव-, उन्हीं के राजा होगे।" यानीसे परितृप्त नहीं हुआ। हे ब्राह्मण, यदि आपकी : अनन्तर राजाने द्रुह्यु को बुला कर उससे यौवन मांगा। कृपा हो, तो ऐसा उपाय कर दीजिये जिससे बुढ़ापा द्रा भी अपने दोनों भाईकी तरह इन्कार कर गया। मुझमें घुस न सके।' ऋपिने उत्तर दिया, 'राजन् ! इस पर ययातिने शाप देते हुए कहा, 'तुम्हारा प्रिय अभि- मेरा वचन मिथ्या होनेको नहीं । तुम जरूर वृढ़े होगे। लाप कहीं भी सिद्ध नहीं होगा। जहां घोड़े, रथ, पर हां, यदि तुम चाहो, तो किसी दूसरेको अपना बुढापा हाथी, राजाको योग्य सवरी, गाय, गदहे, वक, पालकी दे सकते हो।' ययाति बोले, 'ब्राह्मण ! मेरा जो पुत्र आदि द्वारा गमनागमन नहीं हो सकता। जहां वेडे अपनी जवानी मुझे देगा, मैं उसीको राजा बनाऊंगा, आदि द्वारा पार करना होता है, जहां राजशब्द प्रसिद्ध और वह यशस्वी होगो ।' शुक्राचार्याने ऐसा ही करनेकी नहीं, तुम उस देशमे वास करोगे।" अनुमति दी। ___पीछे उन्होंने अनुके निकट अपना अभिप्राय प्रकट ___ अनन्तर राजा ययाति अपने देशमें लौटे और बड़े किया। अनुने इसे अस्वीकार करते हुए उत्तर दिया, कि लड़के यदुको बुला कर पाहा, 'शुक्रके शापसे बुढ़ापेने) जो बूढ़ा होता उसका चमड़ा झुलस जाता है, वह अस- मुझे आ घेरा है, परन्तु यौवन उपभोगसे मेरो तृप्ति नहीं मयम वञ्चेकी तरह अशुचि शरीरसे भोजन करता है। हुई, इसलिये तुम मेरा बुढ़ापा और पाप लो और अपनो वह यथासमय हुताशनमें आहुति नहीं दे सकता, इस- जवानी मुझे दो जिससे मैं कामविषयका उपभोग कर लिये जवानी दे कर बुढ़ापा नहीं लेना चाहता है।" सफू। हजार वर्ष पूरने पर तुम्हारी अवस्था लौटा। ययातिने कहा, "तुमने मुझसे उत्पन्न हो कर मेरी वातकी दूंगा और अपनो वृद्धावस्थाके साथ पाप भोग करूंगा। अवहेला कर दी, इस कारण तुमने जिस वुढापेका दोष इस पर यदुने उत्तर दिया, 'राजन् ! बुढ़ापेमें खाने पीनेमे | बखान किया, वह तुम्हें बहुत जल्द आ घेरेगा, तुम्हारी भनेक दोष देखे जाते हैं, इसलिये बुढ़ापा ले कर अपना प्रजा यौवनकालमें ही विनष्ट होगी और तुम श्रौतस्मात- जवानी नहीं दे सकता । जिस बुढ़ापेमें लोगोंको दाढ़ी सम्मत अग्निकार्यसे रहित होगे।" मूंछ सफेद हो जाती, वे निरानन्द, शिथिल, वलीवि-! अनन्तर राजाने पुरुसे कहा, "शुक्रके शापते मैं वृद्धा शिष्ट, शंकुचितगात्र, कुत्सित, दुर्गल और कृश होते, हो गया, पर यौवनकालसे मेरी तृप्ति न हुई। इसलिये कोई कार्य करनेकी उनमें शक्ति न रह जाती, वैसी दोष- तुम बुढ़ापा ले कर यदि अपनी जवानी दो, तो कुछ .युक्त अवस्था मैं लेना नहीं चाहता, अपने किसी दूसरे समय और विपय-भोग करू। पीछे हजार वर्ष पूरे होने प्रिय पुत्रको लेने कहिये।' ययाति पुनकी इस बात पर पर मैं तुम्हारो जवानो लौटा कर अपना पाप सहित क्रुद्ध हो बोले, 'तुमने यौवनमदसे मेरी वात उठा दो, इस । बुढ़ापा ले लूंगा।"